
- पीएम मोदी के दौरे को लेकर एनडीए कार्यकर्ता उत्साहित हैं, चुनावी नजरिये से ये दौरा महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
- पूर्णिया की 7 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन का स्ट्राइक रेट अधिक रहा है, जो AIMIM की एंट्री से प्रभावित हुआ है.
- सीमांचल की राजनीति में आगे बढ़ने के लिए पूर्णिया अहम स्थान रखता है. इस बार एनडीए ने जोर लगाया हुआ है.
PM Modi Purnea Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे को लेकर पूर्णिया के सियासी गिलयों में गहमागहमी भरा माहौल है. सोमवार को वो पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन करेंगे और मखाना बोर्ड की स्थापना भी करेंगे. चुनावी नजरिए से देखें तो ये दौरा खास है, क्योंकि पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली सात विधानसभा सीटें, अमौर, बायसी, कसबा, बनमनखी, रूपौली, धमदाहा और पूर्णिया पर महागठबंधन का पलड़ा भारी माना जाता है. हालांकि एआईएमआईएम ने पिछली बार सेंधमारी कर डाली थी. ओवैसी की इस पार्टी ने 7 में से 2 सीटें जीती थी, जिनमें से एक, बायसी विधायक रुकनुद्दीन वापस राजद में आ गए.
अब इसे जरूरत कहें या फिर मजबूरी... सीमांचल की राजनीति, पूर्णिया पर पकड़ बनाए बिना आगे नहीं बढ़ सकती है. ऐसे में बीजेपी और एनडीए के लिए पूर्णिया में किला फतह करना बहुत जरूरी होगा. हालांकि सियासी समीकरण इस ओर इशारा करते हैं कि ये किला भेदना बहुत आसान नहीं है. आइए जानते हैं, सातों सीटों पर क्या है समीकरण.
पूर्णिया: पप्पू यादव फैक्टर अहम
पूर्णिया सीट इस बार काफी दिलचस्प हो सकती है. यहां पप्पू यादव का प्रभाव हमेशा चर्चा में रहता है. वे गाहे-बगाहे आरजेडी पर भी हमला बोलते रहते हैं. राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा जब पूर्णिया पहुंची थी तो
2020 में यहां जेडीयू ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2025 के चुनाव में पप्पू यादव किस तरह का रुख अपनाते हैं, इससे मुकाबले की दिशा तय होगी.

बनमनखी: बीजेपी का किला सुरक्षित
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बनमनखी सीट पर पिछले चार चुनावों से बीजेपी के कृष्ण कुमार ऋषि लगातार जीत रहे हैं. 2020 में उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी को 27 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. हालांकि इससे पहले कई चुनावों में कांटे की टक्कर रही. यहां पासवान, रविदास और यादव मतदाता निर्णायक हैं. एनडीए का ये किला फिलहाल सुरक्षित दिख रहा है.
रूपौली: बीमा भारती की सीट, शंकर सिंह भारी
रूपौली सीट पर बीमा भारती का लंबा राजनीतिक सफर रहा है. कभी आरजेडी से और बाद में जेडीयू से उन्होंने कई बार जीत दर्ज की. 2020 में भी वे जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर जीतीं. हालांकि बाद में वो आम चुनाव से पहले आरजेडी में शामिल हो गईं. उपचुनाव हुए तो ये सीट निर्दलीय शंकर सिंह के खाते में चली गई. शंकर सिंह यहां लगातार चुनौती देते रहे हैं. अगर 2025 में शंकर सिंह को जेडीयू का टिकट मिला तो समीकरण पूरी तरह बदल सकता है. फिलहाल यहां एनडीए की स्थिति मजबूत मानी जा रही है.

अमौर: AIMIM ने बनाया गढ़
अमौर सीट का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है. कभी कांग्रेस का दबदबा था तो कभी निर्दलीयों ने जीत दर्ज की. 2010 में यहां से बीजेपी के सबा जफर जीते थे, लेकिन 2020 में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अख्तरुल इमान ने शानदार जीत हासिल कर इसे अपना गढ़ बना लिया. मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं लेकिन कैंडिडेट फेस भी यहां बड़ा फैक्टर है. कांग्रेस और आरजेडी यहां पिछड़ गए हैं. एनडीए के पास एक मौका रहेगा, यहां भारी साबित होने का.
बायसी: रुकनुद्दीन का दबदबा
बायसी सीट पर 2020 में AIMIM के सैयद रुकनुद्दीन अहमद ने बाजी मारी. बाद में उन्होंने आरजेडी का दामन थाम लिया. इससे यहां का समीकरण और दिलचस्प हो गया है. हालांकि वो पहले भी आरजेडी में ही थे. मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के वोट यहां मुख्य फैक्टर हैं. बीजेपी ने 2010 में जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद लगातार कमजोर पड़ती गई. इस बार रुकनुद्दीन को AIMIM से कड़ी चुनौती मिलने वाली है.

कसबा: कांग्रेस का मजबूत गढ़
कसबा सीट पर कांग्रेस नेता मोहम्मद अफाक आलम का दबदबा लगातार बना हुआ है. 2010, 2015 और 2020 – तीनों बार उन्होंने जीत दर्ज की. 2020 में एलजेपी और बीजेपी गठजोड़ ने अच्छी टक्कर दी थी, लेकिन अफाक आलम 17 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए. यहां मुस्लिम वोटरों के साथ यादव, कोरी और रविदास समुदाय भी बड़ा असर डालते हैं. अगर मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता है, तो एनडीए उम्मीदवार को मौका मिल सकता है.
धमदाहा: लेसी सिंह की पकड़
धमदाहा सीट पर जेडीयू की वरिष्ठ नेता और मंत्री लेसी सिंह का दबदबा है. 2010 से अब तक वे लगातार जीत रही हैं. 2020 में भी उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी को 34 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. यादव और अति पिछड़े मतदाता यहां प्रमुख हैं, लेकिन लेसी सिंह का मजबूत संगठन और कैबिनेट मंत्री का दर्जा उनकी स्थिति को और मजबूत करता है.
पीएम मोदी के दौरे को लेकर पूर्णिया में उत्साह
पीएम मोदी का यह दौरा क्षेत्र के विकास और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
पूर्णिया हवाई अड्डे का उद्घाटन इस यात्रा का मुख्य आकर्षण होगा. कोलकाता के बाद यह पूर्वी भारत और बिहार का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है. 2,800 मीटर लंबा रनवे बड़े विमानों जैसे एयरबस और बोइंग के संचालन के लिए उपयुक्त है, जो क्षेत्र में हवाई यातायात को सुगम बनाएगा. 4,000 वर्ग मीटर में फैला टर्मिनल भवन अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है और इसे अगले 40 वर्षों तक बढ़ते यातायात को संभालने के लिए डिजाइन किया गया है. यह हवाई अड्डा न सिर्फ पूर्णिया बल्कि आसपास के क्षेत्रों के लिए भी कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा, जिससे व्यापार, पर्यटन और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.

स्थानीय लोगों में इस हवाई अड्डे को लेकर उत्साह है. पूर्णिया के एक निवासी ने कहा, 'हवाई अड्डा बनने से बहुत अच्छा लग रहा है. पहले हमें पटना या कोलकाता जाना पड़ता था, जो समय और पैसे की बर्बादी थी. अब यात्रा करना सुविधाजनक हो जाएगा.' एक अन्य स्थानीय ने बताया, 'यह हवाई अड्डा हमारे लिए बहुत बड़ी बात है. इससे न केवल यात्रा आसान होगी, बल्कि पूर्णिया का नाम भी देशभर में होगा.'
वहीं, एक अन्य शख्स ने कहा कि राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की स्थापना मखाना उद्योग को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. पूर्णिया और आसपास का क्षेत्र मखाना उत्पादन का प्रमुख केंद्र है, और यह बोर्ड किसानों को बेहतर तकनीक, बाजार और संसाधन उपलब्ध कराएगा. इसके अलावा, नई रेलवे लाइन और ट्रेन का शुभारंभ क्षेत्र की रेल कनेक्टिविटी को मजबूत करेगा, जिससे लोगों और सामानों का आवागमन और आसान होगा.
पीएम मोदी का ये दौरा केवल विकास परियोजनाओं तक सीमित नहीं है. जाहिर तौर पर इसके राजनीतिक मायने भी हैं. यहां की सात सीटें जीतना बिहार में एनडीए की राह आसान बनाने की कुंजी हो सकती हैं.
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