
- चनपटिया चीनी मिल के बंद होने से गन्ने की खेती क्षेत्र में भारी गिरावट आई है, जो अब केवल कम जमीन पर होती है.
- मिल बंद होने के कारण किसान गन्ना बाहर के मिलों में ले जाकर लागत बढ़ने और मुनाफा कम होने से परेशान हैं.
- चनपटिया चीनी मिल 1932 में स्थापित हुई थी और यह बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिलों में शामिल थी.
Chanpatia Sugar Mill: पश्चिमी चंपारण के चनपटिया इलाके में कभी गन्ने की हरियाली दूर-दूर तक फैली रहती थी. किसान इस फसल को नकदी फसल मानकर बोते थे और पास की चीनी मिल उनकी मेहनत को सीधा बाजार से जोड़ देती थी. लेकिन चनपटिया चीनी मिल के बंद हो जाने से किसानों के सामने संकट खड़ा हो गया है. गन्ने की खेती धीरे-धीरे सिमट रही है और किसान अब मजबूरी में वैकल्पिक फसलों की ओर रुख कर रहे हैं.
पहले गन्ने की खेती थी कमाई का जरिया
किसानों की मानें तो पहले चनपटिया और आसपास के गांवों की लगभग 60-70 प्रतिशत जमीन पर गन्ने की खेती होती थी. स्थानीय चीनी मिल की वजह से लागत और मुनाफा दोनों संतुलित रहते थे. गन्ने का कटाई कर ट्रैक्टर या बैलगाड़ी से सीधे चीनी मिल तक पहुंचा देते थे, जिससे समय और लागत दोनों बच जाते थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं.
अब मात्र 20-25 फीसदी हो गई गन्ने की खेती
चीनी मिल बंद होने के बाद गन्ना की खेती में भारी गिरावट आई है. अनुमान है कि अब महज 20-25 प्रतिशत जमीन पर ही गन्ना बोया जा रहा है. किसानों का कहना है कि जब पास में खरीदार नहीं रहा तो खेती करना घाटे का सौदा बन गया. गन्ना की खेती अगर करेंगे तो गाना नरकटियागंज, रामनगर और लौरिया चीनी मिल ले जाना पड़ता है, जिसमें लागत ज्यादा लगती है और मुनाफा घट जाता है. ऐसे में गन्ने की खेती करना घाटे का सौदा बन गया है.

स्थानीय किसान ने बताई अपनी परेशानी
चनपटिया के किसान राजेश प्रसाद बताते हैं कि “पहले गन्ना बेचकर धान और गेहूं की पूरी खेती का खर्च निकल जाता था. अब तो गन्ना बोने से पहले ही लगता है घाटा होगा. फिर भी परंपरा और मजबूरी में थोड़ी खेती कर लेते हैं. लेकिन मुनाफा ज्यादा नहीं होता है क्योंकि पहले घर के पास चीनी मिल था अब गन्ना दूर दराज ले जाना पड़ता है".
दूसरे चीनी मिल में गन्ना भेजने पर फायदा नहीं
वहीं चनपटिया के रहने वाले किसान रामेश्वर यादव कहते हैं कि मिल बंद होने के बाद हमें नरकटियागंज, लौरिया और रामनगर तक गन्ना भेजना पड़ता है. ट्रैक्टर किराया और मजदूरी में ही आधा पैसा खत्म हो जाता है. ऊपर से गन्ना देर से पहुंचा तो मिल वाले वजन काट देते हैं. यही कारण है कि हमारे क्षेत्र में गन्ने की खेती अब कुछ ही किसान करते हैं.

बीते कुछ दिनों में हुई है चालू होने की चर्चा
वहीं किसान शिवनंदन सिंह को अभी भी उम्मीद हैं कि चनपटिया चीनी मिल फिर से शुरू हो सकती हैं. उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि सरकारी स्तर पर भी कई बार इस चीनी मिल को चालू करने की बातें उठी हैं. स्थानीय जनप्रतिनिधि विधानसभा और संसद दोनों में आवाज उठाते रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में मिल चालू करने को लेकर बैठकें भी हुईं, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया. किसानों का कहना है कि सिर्फ आश्वासन से अब बात नहीं बनेगी, उन्हें ठोस कदम चाहिए.
बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिल है चनपटिया की मिल
मालू हो कि चनपटिया चीनी मिल की स्थापना 1932 में हुई थी. यह बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिलों में शामिल था. 1990 से इस चीनी मिल की दुर्गति शुरू हुई और 1994 के आते-आते इसमें पूरी तरह ताला लग गया.
1998 में एक बार फिर कोऑपरेटिव के माध्यम से इस चीनी मिल को चालू किया, लेकिन यह प्रयोग मिल प्रबंधन एवं किसानों के बीच सामंजस्य नहीं होने से बुरी तरह विफल हो गया. 1998 में फिर से एक बार यह चीनी मिल हमेशा के लिए बंद हो गया.

कंगाली के दौर से गुजर रहे किसान
चनपटिया के किसान इसके चालू रहने पर खुश थे. इनकी खुशहाली का राज इनके गन्ने की खेती थी. यह इनकी नकदी फसल थी, जो इन्हें संपन्न बनाये हुए थी. चनपटिया चीनी मिल बंद होने के बाद ये संपन्न किसान परिवार फिलहाल कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं. चीनी मिल में ताला लगा, तो चनपटिया प्रखंड के कई गांवों में गन्ना की खेती भी बंद हो गयी.
20 हजार किसानों की आय का जरिया ठप
इन सैकडों गांवों के लगभग 20 हजार से ज्यादा किसान परिवारों की नकदी फसल छिन गई. साथ ही करीब हजार मजदूरों की नौकरी और दिहाड़ी भी हाथ से निकल गई. ऐसी स्थिति में चनपटिया से पलायन भी शुरू हो गया.
चनपटिया विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
बता दें कि चनपटिया विधानसभा में चनपटिया का चीनी मिल चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा होता है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त यह चीनी मिल चालू करने का हमेशा वादा किया जाता है, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है, चीनी मिल का मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.

हर रैली से मिल चालू कराने का होता है वादा
लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान जो भी नेता चनपटिया में आते हैं वह अपनी चुनावी सभा में इस फैक्ट्री की चिमनी से धुआं उगलवाने का वादा करके चले जाते हैं. यहां के बीस हजार से अधिक किसान परिवारों में एक बारफिर आस जगती हैं लेकिन बार-बार उनका वादा भी छलावा साबित होता हैं.
किसानों का दर्द साफ झलकता है. उनका कहना है कि सरकार अगर चाहे तो चनपटिया चीनी मिल फिर से चालू हो सकती है. मिल शुरू हो जाएगी तो यहां के हजारों किसानों की जिंदगी बदल जाएगी. रोजगार मिलेगा, खेत फिर से गन्ने से लहलहा उठेंगे.
आज हालत यह है कि चनपटिया के किसान गन्ने की जगह धीरे-धीरे मक्का, धान और सब्जी जैसी दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. गन्ना खेती की परंपरा टूट रही है और किसानों की मीठी उम्मीदें कड़वाहट में बदल रही हैं.
(बेतिया से जीतेंद्र कुमार की रिपोर्ट)
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