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Analysis: नीतीश या तेजस्वी... बिहार चुनाव में महिलाओं की बंपर वोटिंग का किसे नफा-किसे नुकसान?

Bihar Assembly Elections 2025: 2010 के चुनाव में महिला मतदान पुरुषों से 3.35% अधिक था. 2015 में यह अंतर बढ़कर 7.2% हो गया. फिर 2020 में कोरोना के समय हुए मतदान में इसमें गिरावट आई, लेकिन तब भी महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले 5.3 फीसदी मतदान किया. इस बार भी महिला वोटरों ने जमकर मतदान किया है.

Analysis: नीतीश या तेजस्वी... बिहार चुनाव में महिलाओं की बंपर वोटिंग का किसे नफा-किसे नुकसान?
बिहार में पहले चरण में बंपर वोटिंग हुई, महिलाओं ने जमकर वोट डाले, इसका किसे फायदा होगा. समझिए.
  • बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान प्रतिशत रिकॉर्ड 65.08% रहा, जो पिछले चुनाव से अधिक है.
  • महिला मतदान 69.04% जबकि पुरुष मतदान 61.56% रहा, जिससे महिला मतदान में सात प्रतिशत से अधिक का अंतर दिखा.
  • नीतीश कुमार के शासनकाल में महिला सशक्तिकरण योजनाओं से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और मतदान में वृद्धि हुई है.
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नई दिल्ली:

Female Voter Trunout in Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान प्रतिशत ने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए. इस चुनाव में 65.08 प्रतिशत का अभूतपूर्व मतदान दर्ज किया गया है. जो अब तक के सर्वाधिक 62.57% प्रतिशत से काफी अधिक है. लेकिन इस बढ़े हुए मतदान के पीछे की असली कहानी तब सामने आती है, जब हम महिला और पुरुष मतदान के आंकड़ों का अलग-अलग विश्लेषण करते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि मतदाता सूची से नामों की कटौती (SIR Deletions) के कारण मतदान प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन यह धारणा गलत है. वास्तविकता यह है कि 2025 में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 7.42 करोड़ हो गई है, जबकि 2020 में यह 7.36 करोड़ थी.

बंपर वोटिंग का मतलब है कि पहले चरण में डाले गए वोटों की पूर्ण संख्या 2020 के मुकाबले 35 लाख अधिक है. यदि कोई कटौती नहीं भी होती, तब भी मतदान में 4% की वृद्धि हुई होती.

महिला मतदान की प्रभावशाली उपस्थिति

रिपोर्ट के अनुसार पहले चरण की वोटिंग में महिला मतदान 69.04% और पुरुष मतदान 61.56% रहा है. यह 7.5% का अंतर बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण रुझान को दर्शाता है. बिहार में पिछले तीन चुनावों में महिला मतदान पुरुषों से 3% से 7% तक अधिक रहा है. हालांकि चुनाव आयोग के अंतिम आंकड़ों का इंतजार है, लेकिन यह प्रवृत्ति लगातार मजबूत हो रही है.

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नीतीश कुमार के कार्यकाल में आया परिवर्तन

2005 अक्टूबर में जब नीतीश कुमार ने चुनाव जीता था, तब महिला मतदान पुरुषों से 2.6% कम था. लेकिन उनके शासनकाल में कानून व्यवस्था में सुधार और महिला-केंद्रित योजनाओं ने इस स्थिति को पूरी तरह बदल दिया. पोषण योजनाएं, साइकिल वितरण, नौकरियों में आरक्षण, स्थानीय निकायों में आरक्षण, जीविका दीदी कार्यक्रम और शराबंदी जैसी पहलों ने महिलाओं को चुनावी प्रक्रिया में अधिक सक्रिय भागीदार बनाया.

2010 में महिला मतदान पुरुषों से 3.35% अधिक था. 2015 में यह अंतर बढ़कर 7.2% हो गया. फिर 2020 कोरोना के समय हुए मतदान में इसमें गिरावट आई, लेकिन तब भी महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले 5.3 फीसदी मतदान किया. अब 2025 के पहले चरण में यह अंतर 7.5% तक पहुंच गया है, जो एक महत्वपूर्ण उछाल को दर्शाता है.

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बिहार के मतदान पर प्रवासन का प्रभाव

महिला मतदान में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण पुरुषों का काम के लिए प्रवास भी है. कई पुरुष रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं और वोट डालने के लिए वापस आने का खर्च वहन नहीं कर पाते. पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाएं घर का प्रबंधन करती हैं और सभी निर्णय लेती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक जागरूकता और भागीदारी बढ़ी है.

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राजनीतिक प्रभाव: NDA और JDU को फायदा

उच्च महिला मतदान NDA और विशेष रूप से JDU के लिए लाभकारी रहा है. NDA ने 2010 और 2020 में पुरुषों की तुलना में अधिक महिला मतदान के आधार पर जीत हासिल की. JDU की सफलता दर उन सीटों पर 70%-90% रही है, जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा.

  • 2020 में 43 में से 37 सीटें
  • 2015 में 71 में से 61 सीटें
  • 2010 में 115 में से 79 सीटें

2020 में जिन 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया, उनमें से 99 सीटें NDA ने जीतीं. इसके विपरीत, जिन 76 सीटों पर पुरुषों का मतदान अधिक था, वहां MGB ने 49 सीटें जीतीं. 2020 में महिलाओं ने NDA की नजदीकी जीत में अहम भूमिका निभाई. NDA को महिलाओं में 1% की बढ़त मिली थी, जबकि MGB को पुरुषों में 2% की बढ़त थी.

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2025 के रुझान: VoteVibe ट्रैकर का विश्लेषण

VoteVibe ट्रैकर के अनुसार, अक्टूबर के शुरुआत में NDA को महिलाओं में 6% की बढ़त थी, जबकि MGB को पुरुषों में 2% की बढ़त थी. युवा पुरुष मतदाताओं में Ascendia Strategies के प्री-पोल रिसर्च पेपर के हिसाब से MGB 7% आगे है, लेकिन JSP भी वोट बांट रहा है - MGB को 41%, NDA को 34% और JSP को 18% समर्थन मिल रहा है.

हालांकि, युवा महिलाओं में NDA को 14% की मजबूत बढ़त है. NDA को 48%, MGB को 34% और JSP को केवल 8% समर्थन मिल रहा है. यह विभाजन लैंगिक आधार पर मतदान व्यवहार में महत्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है.
 

महिलाओं की जन सुराज में कम विश्वास की सबसे बड़ी वजह शराबबंदी है. PK ने घोषणा की है कि अगर वो चुनाव जीते तो शराबबंदी खत्म कर देगे. यह घोषणा महिला वोटरों को लुभाने में अड़चन पैदा कर रहा है.

संख्या का खेल

महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाएं संख्या में कम हैं, इसलिए उच्च मतदान के बावजूद डाले गए कुल वोटों में पुरुष अभी भी अधिक रहते हैं. इस बार रिपोर्ट के अनुसार दोनों की संख्या समान है - प्रत्येक 1.22 करोड़ ने मतदान किया है.

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जीविका दीदियों को मिले 10 हजार रुपए का असर

महिलाओं का 7.5 प्रतिशत अधिक मतदान ये दर्शाता है कि महिला रोजगार योजना जिसमें 1.5 करोड़ वोटरों को 10 हजार रुपए की सहायता राशि दी गई है, इसका अच्छा प्रभाव हो रहा है. कई लोग इस चुनाव को 10 हजारी चुनाव भी कह रहे हैं. कहीं न कहीं नीतीश जाति से ऊपर उठकर महिलाओं को अपना वोट बैंक बनाने में सफल हुए हैं.

कई महिलाओं में 6 महीने बाद 2 लाख रुपए की भी उम्मीद

Votevibe ट्रैकर के अनुसार 58 फीसदी महिलाओं ने पैसे का उपयोग किसी ना किसी छोटे रोजगार को शुरू करने के लिए किया है. कई लोगों को यह भी आस है कि 6 महीने बाद 2 लाख रुपए भी मिल सकते हैं. ये एक बहुत बड़ा महिला सशक्तीकरण का उदाहरण है. महिलाओं में नीतीश के लिए अच्छा गुडविल है. जीविका दीदियां अपने दीदी की पहचान, जो उनके पत्नी या पुत्री के पहचान अलग है, काफि काम करता दिख रहा है.

यदि चुनाव आयोग के आंकड़े में भी महिला मतदान पुरुषों से अधिक रहा तो यह NDA के लिए फायदेमंद हो सकता है. यदि इसका उलट हुआ, तो MGB को लाभ मिल सकता है.

2025 का चुनाव बताएगा किस गठबंधन को मिलेगा अधिक लाभ

बिहार में महिला मतदान की बढ़ती प्रवृत्ति राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है. महिला सशक्तीकरण योजनाओं, बेहतर कानून व्यवस्था और महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक जागरूकता ने उन्हें निर्णायक मतदाता समूह बना दिया है. 2025 के चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि क्या यह प्रवृत्ति जारी रहती है और किस गठबंधन को इसका अधिकतम लाभ मिलता है.

महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी न केवल लोकतंत्र के लिए एक स्वस्थ संकेत है, बल्कि यह बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में आए सकारात्मक बदलाव को भी प्रदर्शित करती है.

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