- मोकामा बाहुबलियों की राजनीति के लिए विख्यात है. इस बार यहां अनंत सिंह और सूरजभान की पत्नी के बीच टक्कर है.
- दुलार चंद यादव की हत्या ने मोकामा के बाहुबली और अपराध से जुड़े इतिहास को फिर से उजागर किया है.
- दुलार चंद यादव का राजनीतिक सफर 1980 के दशक से शुरू होकर लालू परिवार और बाद में जदयू तक फैला था.
मोकामा... बिहार की वो विधानसभा सीट, जो 90 के दशक से हर चुनाव में सर्वाधिक चर्चित रहती है. कारण बाहुबली अनंत सिंह. इस बार तो मोकामा की चर्चा और अधिक हो रही है क्योंकि यहां इस बार दो बड़े बाहुबलियों की भिड़ंत है. एक तरफ अनंत सिंह है तो दूसरी ओर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी. इन दोनों की सियासी लड़ाई में बीते दिनों दुलार चंद यादव की हत्या के बाद माहौल और गर्म हो गया. मोकामा में गुरुवार को मतदान होना है. दुलार चंद की हत्या के आरोप में अनंत सिंह जेल जा चुके हैं. अब इसका क्या असर होगा, यह देखने वाली बात होगी.
दुलारचंद की हत्या से बिहार का रक्तरंजित इतिहास आया सामने
जैसे ही मोकामा में दुलारचंद यादव का मर्डर हुआ, बिहार का रक्त रंजित इतिहास एक बार फिर सामने आ गया. इसके बाद जो बयान आए वो पॉलिटिकल किलिंग की तरफ इशारे करने लगे. जिस जगह मर्डर हुआ ये गंगा का वो तराई का इलाका है, जिसे लेकर जानकार बताते है कि आस-पास का पूरा इलाका बाहुबल और अपराध के साये में रहा है.
दुलारचंद की हत्या पर कई बातें चल रही हैं
लेकिन इस बार दुलार चंद का कत्ल क्यों हुआ, इसे लेकर अलग-अलग बाते हैं. इस मर्डर को लेकर कई वीडियो भी सर्कुलेट हुईं, इसमें एक शख्स दावा करता है कि उनके काफिले पर हमला हुआ था. वो कहता है कि गुंडे तो मुझे मारना चाहते थे गोली चाचा को लगी.

दुलारचंद का बाहुबल 80 के दशक में हुआ शुरू
बिहार चुनाव से ठीक पहले जिस दुलारचंद की हत्या की गई, उनके बाहुबल की कहानी अस्सी के दशक में शुरू हुई. रंगदारी, मर्डर जैसे कई संगीन इल्जाम लगे. जैसे-जैसे संख्या बढ़ती गई दुलार चंद यादव का बाहुबल बढ़ता गया. टाल के जिस तारतर गांव में दुलारचंद यादव के वर्चस्व का सूरज क्षितिज पर चमका उसी तारतर गांव में उसकी हत्या हो गई.
दुलार की हत्या के पीछे अनंत सिंह का हाथ!
पहलवानी का शौक रखने वाले दुलारचंद यादव लोक गीतों में जब गला आजमाते थे, तो माहौल बन जाता था. आज उसी धरा पर मातम छाया है. इस मातम के पीछे जिस किरदार का चेहरा होने का दावा किया जा रहा है वो बाहुबली अनंत सिंह का है. जिसके बाहुबल का एक छत्र राज दो दशकों से मोकामा में कायम है.

90 के दशक में शुरू हुई दुलार की राजनीति
लेकिन मोकामा में वर्चस्व और बाहुबल की इस कहानी में एक दबंग किरदार दुलारचंद का था. अस्सी के दशक में टाल से ही दुलारचंद यादव की दबंगई के किस्सों ने सिर उठाना शुरू किया. नब्बे के दशक में वो दौर भी आया जब दुलारचंद यादव का नाम सियासी गलियारों में गूंजने लगा.
क्या दुलार की हत्या के पीछे अनंत सिंह?
टाल में सियासत की नई जमीन तैयार हो रही है. कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि अनंत सिंह को कभी दुलारचंद का ये रुतबा कबूल नहीं हुआ और इसी अदावत में दुलारचंद यादव के कत्ल की स्क्रिप्ट लिखी गई. क्या वाकई दुलारचंद की हत्या के पीछे अनंत सिंह का हाथ है?
लालू परिवार से दुलार का लंबे समय तक रहा संपर्क
90 के दशक में दुलार चंद ने लालू प्रसाद यादव का हाथ थामा. ये यादव कनेक्शन उनकी सियासी राह का अहम मोड़ बना, उन्होंने चुनाव भी लड़ा, भले ही जीत ना मिली हो लेकिन उनका सियासी प्रभाव कभी कम नहीं हुआ. दुलारचंद यादव का सियासी सफर सिर्फ एक पार्टी तक सीमित नहीं रहा. सत्ता और प्रभाव बनाए रखने के लिए उन्होंने वक्त वक्त पर अपनी निष्ठाए बदली जो बिहार की अवसरवादी सियासत का एक बड़ा हिस्सा रही है.
2017 में जदयू और नीतीश के साथ आए दुलार
दुलार चंद ने राजद के साथ एक लंबा राजनीतिक सफर तय किया. वो लंबे समय तक लालू परिवार के साथ रहे. लेकिन 2017 के बाद वो JDU और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भी करीब आए. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें JDU की रैलियों में प्रचार करते देखा गया. जो उनके राजनीतिक लचीलेपन को दर्शाता था.
2022 के उपचुनाव में अनंत के साथ थे दुलार
2022 के मोकामा उपचुनाव में उन्होंने बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी का समर्थन किया जो उनके राजनीतिक समीकरणों को साधने की क्षमता का सबूत है. एक तरफ दुलारचंद यादव का बढ़ता राजनीतिक गढ़ था तो दूसरी तरफ दबंग और बाहुबली की छवि.

एक समय दुलार और अनंत की दोस्ती भी खूब चर्चा में रही
पटना जिले के घोसवारी और बाढ़ थानों में दुलारचंद पर कई मामले पहले से दर्ज थे. जिनमें रंगदारी और मर्डर जैसे संगीन मामले होने भी थे. फिर वक्त का पहिया घुमा तो एक दौर वो भी आया जब अनंत सिंह और दुलारचंद की दोस्ती के किस्से टाल की फिजाओं में गूंजने लगी.
मोकामा का सियासी इतिहास, दिलीप सिंह, सूरजभान और अनंत सिंह
1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए. 1995 में दूसरी बार भी जीतने में कामयाब रहे. साल दो हज़ार में दिलीप सिंह चुनाव हार गए. उन्हें बाहुबली सूरजभान सिंह ने चुनाव हराया था. पाँच साल बाद 2005 में अनंत सिंह की सियासी एंट्री होती है वो जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं और जीत कर विधानसभा पहुँचते हैं.

मोकामा भूमिहारों की राजधानी, 1992 से अब तक सभी भूमिहार विधायक
अनंत सिंह भूमिहार समुदाय से आते हैं. उनकी अपनी सजातीय वोटों पर जबरदस्त पकड़ है. बिहार के दबंग जातियों में भूमिहार का नाम आता है. मोकामा भूमिहारों की राजधानी कहलाती है. क्योंकि यहां तीस फीसद से ज्यादा आबादी भूमिहारों की है. यही वजह है कि 1992 से लेकर अभी तक जितने विधायक बने वो सभी भूमिहार समाज से हैं.
सूरजभान सिंह का नाम 90 के दशक में बिहार के अपराध जगत और सियासत दोनों में गूंजता था. मोकामा विधानसभा सीट से दो हज़ार में सूरजभान में विधायक रह चुके हैं. इस बार सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को राजद के टिकट पर मोकामा से उतारा है.
मोकामा में क्या होगा इस बार?
मोकामा में अनंत सिंह और सूरजभान सिंह की टक्कर के बीच दुलारचंद की हत्या का असर चुनावी नतीजों पर भी पड़ सकता है. यदि पिछड़ी जातियों के वोटर एकजुट होकर अनंत के खिलाफ मतदान करते हैं तो छोटे सरकार का विजय रथ रुक सकता है. लेकिन यदि पिछड़ी जातियों के वोटर में फुट हुई तो अनंत को हराना मुश्किल होगा.
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