
- बिहार चुनाव के लिए आरएसएस ने इस बार बिल्कुल अलग रणनीति बनाई है. दो अलग-अलग रणनीतियां तैयार की गई हैं
- रणनीति पर अमल के लिए संघ ने हजारों स्वयंसेवक उतार दिए हैं. बीजेपी ने भी नेताओं की फौज भेजनी शुरू कर दी है
- राजनीतिक स्थिति और डेमोग्राफी में बदलाव को देखते हुए संघ मुस्लिम क्षेत्रों पर फोकस के साथ ज्यादा सक्रिय है
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आरएसएस ने इस बार बिल्कुल अलग हटकर रणनीति बनाई है. संघ ने दो अलग-अलग रणनीतियां तैयार की हैं. बिहार में सीमांचल के मुस्लिम बाहुल्य जिलों के लिए अलग स्ट्रैटिजी बनाई गई है. पूरे बिहार के लिए अलग रणनीति तैयार की है. इसे अमली जामा पहनाने के लिए संघ ने अपने स्वयंसेवक मैदान में उतार दिए हैं. बीजेपी ने भी अपने नेताओं की फौज भेजनी शुरू कर दी है.
बिहार में BJP को RSS का पूरा साथ
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी को आरएसएस का भरपूर सहयोग मिल रहा है. बिहार की राजनीतिक स्थिति और डेमोग्राफी में हुए बदलाव को देखते हुए इस बार संघ ज्यादा सक्रिय है. खासतौर पर बिहार के उन जिलों में, जो सीमावर्ती हैं और जहां मुस्लिम आबादी बहुत ज्यादा है. जैसे कि किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, अररिया आदि. इन जिलों के लिए संघ की अलग रणनीति पर पिछले दिनों राजस्थान के जोधपुर में हुई बैठक में मुहर लगाई गई.
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए अलग रणनीति
सीमांचल के किशनगंज में मुसलमानों की आबादी 68% है. इसके अलावा, अन्य जिलों में भी मुसलमानों की आबादी 30 फीसदी से अधिक ही है, जैसे कि कटिहार में लगभग 44.5% मुस्लिम हैं. अररिया में करीब 43% और पूर्णिया में लगभग 38.5% मुस्लिम आबादी है. दूसरे जिलों में मुसलमानों की आबादी 23% से नीचे है, जैसे दरभंगा (22.4%), पश्चिम चंपारण (22%). इन जिलों में मुस्लिम आबादी ज्यादा होने की वजह से बीजेपी की यहां पकड़ काफी कमजोर है. घुसपैठ को भी बढ़ावा मिला है.
जहां मुस्लिम निर्णायक, वहां संघ सक्रिय
आरएसएस ने सिर्फ सीमांचल के जिलों के लिए ही अलग रणनीति नहीं बनाई है, बल्कि उन सभी सीटों पर अपने राष्ट्रवादी उम्मीदवार फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया है जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं और जो सीट बीजेपी के लिए कमजोर बन चुकी हैं. सूत्रों के मुताबिक, ऐसी 52 सीटों को चिह्नित किया गया है. इनमें पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज की 24 सीटें भी हैं. 52 चिह्नित सीटों में से 47 ऐसी मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं जिन्हें संघ डेमोग्राफी बदलने का नतीजा मानता है. ऐसे इलाकों में संघ ने पहले ही अपने स्वयंसेवकों को तैनात कर दिया है. बीजेपी ने भी अपने नेताओं को दो महीने की ड्यूटी पर लगा दिया है.
3 कैटिगरी में वोटरों को बांटकर काम
आरएसएस ने तीन हिस्सों में बिहार के वोटर्स को बांटा है और इन्हीं कैटेगरी को ध्यान में रखकर आरएसएस अपना काम कर रहा है.
1. बीजेपी के पक्के वोटर
ये बीजेपी के ऐसे पक्के वोटर हैं, जिन्हें बाहरी बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. इन पर संगठन को ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है.
2. कन्फ्यूज वोटर
ये ऐसे वोटर हैं जो आरजेडी, कांग्रेस, जनसुराज के भाषणों और वादों को सुनकर कन्फ्यूज हो गए हैं. ऐसे वोटरों के लिए आरएसएस ने अलग रणनीति बनाई है. स्वयंसेवक घर-घर जाकर और बूथ लेवल पर मीटिंग करके लोगों को समझाते हैं, उनके कन्फ़्यूजन दूर करते हैं और बीजेपी के पक्ष में कन्वर्ट करते हैं.
3. रूठे वोटर
ये वोटर अपने क्षेत्रीय बीजेपी विधायक, सांसद और नेताओं से नाखुश हैं. वादे पूरे न होने, क्षेत्र में काम ना हो पाने, सरकार के रवैये और अधिकारियों के कामकाज से नाराज हैं. स्वयंसेवकों की कोशिश है कि इनकी बातों को धैर्य से सुनें और उनकी नाराजगी दूर करें.
संघ ने उतारे 16 हजार स्वयंसेवक
पूरे बिहार के लिए संघ ने एक पोस्टिंग स्ट्रैटिजी तैयार की है. इसे अमली जामा पहनाने के लिए अपने 16 हजार स्वयंसेवकों को मैदान में उतार दिया है. करीब 5 हजार स्वयंसेवक पहले से ही काम कर रहे हैं. बीजेपी ने भी अन्य राज्यों के अपने सांसदों और कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारना शुरू कर दिया है. अभी चुनिंदा 45 सांसदों को जिम्मेदारी देकर बिहार भेजा गया है. इनमें दिल्ली से बांसुरी स्वराज, मनोज तिवारी, कमलजीत सेहरावत, गौतमबुद्धनगर से महेश शर्मा शामिल हैं.
गांव-गांव, घर-घर जा रहे स्वयंसेवक
आरएसएस की हर गांव में दस से पंद्रह लोगों की टीम काम कर रही है. ये हर ब्लॉक में हर हफ़्ते लगभग 100 मीटिंग कर रही है. लोगों से मिलना, घर-घर जाकर लोगों की राय लेना कि उनको कैसी सरकार चाहिए, मौजूदा सरकार से क्या दिक्कत है, किसको पसंद करते हैं और क्यों... इस तरह का फीडबैक लिया जा रहा है. इसके अलावा ये टीम लोगों से राम मंदिर, जातिवाद के खिलाफ, सरकार की योजनाओं और आरएसएस के बारे में उनकी राय जान रही है.
महिला वोटर्स पर भी RSS का फोकस
बिहार में महिला वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. उनके लिए आरएसएस ने अलग से रणनीति तैयार की है. राष्ट्रीय महिला स्वयंसेवक समिति इस काम में लगी है. उसकी टीमें अलग-अलग उम्र की महिलाओं से मिल रही हैं. घरेलू महिलाओं के लिए अलग टीम है तो कामकाजी महिलाओं के लिए अलग. आरएसएस अपना सर्वे भी कर चुकी है. कैटेगरी के साथ महिलाओं की लिस्ट तैयार की गई है. महिलाओं से पूछा जा रहा है कि उन्हें कैसा नेता, कैसी सरकार चाहिए. उनकी सीट पर कौन-सा नेता उन्हें बेहतर लगता है आदि आदि.
महिलाएं घर के अंदर और घर के बाहर की कई चीजों से प्रभावित होती हैं. जैसे कि घर का राशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सड़कों का हाल वगैरा वगैरा. महिलाओं से इन सब मुद्दों पर राय ली जा रही है और उनके जवाब के आधार पर रणनीति तैयार की जा रही है. माना जा रहा है कि आरएसएस का यह फीडबैक बीजेपी कैंडिडेट फाइनल करने में काम आएगा.
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