
- दरभंगा जिले की जाले सीट 2020 के चुनाव में कांग्रेस और राजद के बीच विवाद का केंद्र बनी हुई है.
- 2025 के चुनाव में राजद जाले सीट चाहता था, लेकिन कांग्रेस ने इसे छोड़ने से इनकार कर दिया था.
- कांग्रेस ने शुरुआत में नौशाद को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन विवाद के कारण उनका नाम वापस लिया गया.
दरभंगा जिले की जाले विधानसभा सीट इस बार बिहार की राजनीति में एक बड़ा सियासी विवाद बनकर उभरी है. यह सीट न केवल कांग्रेस और राजद (RJD) के बीच टकराव की वजह बनी, बल्कि महागठबंधन की आंतरिक खींचतान की मिसाल भी पेश कर रही है. दरअसल, 2020 के विधानसभा चुनाव में जो गलती हुई, उसका असर आज तक दोनों दलों के रिश्तों पर साफ दिखता है.
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष मशकूर उस्मानी को जाले सीट से उम्मीदवार बनाया था. उस्मानी अपनी छात्र राजनीति के दिनों से ही विवादों में रहे हैं, खासकर जिन्ना की तस्वीर वाले मुद्दे को लेकर. बीजेपी ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया और प्रचार के दौरान इसे ‘राष्ट्रवाद बनाम जिन्ना' की लड़ाई में तब्दील कर दिया.
जाले सीट राजद के खाते में चाहते थे तेजस्वी
राजद नेताओं का मानना है कि उस्मानी की उम्मीदवारी ने दरभंगा समेत उत्तर बिहार के कई इलाकों में भाजपा को ध्रुवीकरण का अवसर दिया. इसके कारण जाले सीट ही नहीं बल्कि आसपास की कई सीटों पर महागठबंधन को नुकसान हुआ. तेजस्वी यादव कैंप का आरोप था कि यदि कांग्रेस उस्मानी को टिकट न देती तो राजद की सरकार बनने से बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को रोका जा सकता था.
अब 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी के बीच, जाले की सीट एक बार फिर चर्चा में है. तेजस्वी यादव इस सीट को अपनी पार्टी यानी राजद के खाते में चाहते थे. उनका मानना था कि पिछले अनुभवों को देखते हुए यह सीट राजद के उम्मीदवार के हाथ में होनी चाहिए, लेकिन कांग्रेस इस सीट को छोड़ने को तैयार नहीं थी. यही से विवाद शुरू हुआ.
कांग्रेस के खाते में सीट, राजद उम्मीदवार
देर रात कांग्रेस ने अपने स्तर पर इस सीट के लिए युवा नेता मोहम्मद नौशाद का नाम लगभग तय कर लिया था. हालांकि, इसकी औपचारिक घोषणा नहीं हुई थी. नौशाद वही व्यक्ति हैं जो राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान मंच से कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां को लेकर विवादित टिप्पणी करने के आरोप में सुर्खियों में आए थे. इस मामले में पुलिस जांच भी चल रही थी और बीजेपी ने इस घटना को कांग्रेस और महागठबंधन दोनों के खिलाफ बड़े सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया.
जैसे ही पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को नौशाद के नाम की भनक लगी, कांग्रेस के अंदर बगावत शुरू हो गई. कई नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ऐसा विवादित चेहरा चुनाव में उतारना पार्टी के लिए आत्मघाती कदम होगा. दबाव बढ़ने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने नौशाद को टिकट देने का फैसला वापस ले लिया. अंदरखाने सहमति बनी कि यह सीट कांग्रेस के खाते में तो रहेगी लेकिन उम्मीदवार राजद का होगा, जिससे तेजस्वी यादव की नाराजगी भी शांत की जा सके और विवाद का समाधान भी निकल आए.
जाले सीट से ऋषि मिश्रा उम्मीदवार
अब तय हुआ है कि जाले सीट से ऋषि मिश्रा उम्मीदवार होंगे, जो एक बार पहले भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि ऋषि मिश्रा कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उन्हें मैदान में उतारने की सिफारिश तेजस्वी यादव ने की है. इस तरह से यह सीट तकनीकी रूप से कांग्रेस के खाते में है, लेकिन राजनीतिक रूप से आरजेडी की पसंद झलकती है.
ऋषि मिश्रा का राजनीतिक परिवार बिहार की राजनीति में बेहद प्रभावशाली रहा है. उनके पिता विजय मिश्रा लंबे समय तक सांसद और विधायक रहे हैं. उनके दादा ललित नारायण मिश्रा इंदिरा गांधी सरकार में रेल मंत्री थे, जिनकी 1975 में बम धमाके में मौत हो गई थी. ललित नारायण मिश्रा बिहार के दरभंगा और मिथिलांचल क्षेत्र में एक बड़े नाम के रूप में जाने जाते हैं.
राजनीतिक परिवार से जुड़े हैं ऋषि मिश्रा
यही नहीं ऋषि मिश्रा के परिवार के रिश्ते जगन्नाथ मिश्रा से भी जुड़े हैं, जो बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और कांग्रेस राजनीति के अहम स्तंभ थे. वर्तमान में ऋषि मिश्रा के चाचा नीतीश मिश्रा नीतीश कुमार सरकार में मंत्री हैं यानी मिश्रा परिवार कांग्रेस, जेडीयू और आरजेडी — तीनों राजनीतिक ध्रुवों से किसी न किसी रूप में जुड़ा रहा है.
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने औपचारिक रूप से ऋषि मिश्रा को अपना सिंबल जारी कर दिया. यह फैसला कांग्रेस और आरजेडी दोनों के लिए एक सामंजस्य का प्रतीक माना जा रहा है.
हालांकि, अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि यह “समझौता” दोनों दलों के बीच भविष्य में सीट बंटवारे पर तनाव बढ़ा सकता है. तेजस्वी यादव की पार्टी अब साफ संकेत दे रही है कि 2025 में गठबंधन के सीट शेयरिंग फॉर्मूले में उनका पलड़ा भारी रहेगा. वहीं, कांग्रेस चाहती है कि जिन सीटों पर उसने परंपरागत रूप से चुनाव लड़ा है, उन पर उसका अधिकार बरकरार रहे.
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