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बिहार चुनाव: सहरसा में कम हुआ भाजपा का दबदबा, IIP उम्‍मीदवार ने आलोक रंजन को 2 हजार से अधिक मतों से हराया

सहरसा सीट इंडियन इंक्‍लूसिव पार्टी के खाते में गई है. पार्टी उम्‍मीदवार इंद्रजीत प्रसाद गुप्‍ता ने भाजपा के आलोक रंजन को 2,038 मतों से हराया. इंद्रजीत प्रसाद गुप्‍ता को 1,15,036 मत मिले तो भाजपा उम्‍मीदवार आलोक रंजन को 1,12,998 मत मिले.

बिहार चुनाव: सहरसा में कम हुआ भाजपा का दबदबा, IIP उम्‍मीदवार ने आलोक रंजन को 2 हजार से अधिक मतों से हराया
  • सहरसा सीट पर इंडियन इंक्लूसिव पार्टी के इंद्रजीत प्रसाद गुप्ता ने भाजपा के आलोक रंजन को हराया.
  • इंडियन इंक्‍लूसिव पार्टी के इंद्रजीत प्रसाद गुप्‍ता ने भाजपा के आलोक रंजन को 2,038 मतों से हराया.
  • इंद्रजीत प्रसाद गुप्‍ता को 1,15,036 मत मिले तो भाजपा उम्‍मीदवार आलोक रंजन को 1,12,998 मत मिले.
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पटना :

बिहार विधानसभा चुनाव में सहरसा विधानसभा सीट इंडियन इंक्‍लूसिव पार्टी के खाते में गई है. पार्टी उम्‍मीदवार इंद्रजीत प्रसाद गुप्‍ता ने भाजपा के आलोक रंजन को कड़े मुकाबले में शिकस्‍त दी. इस चुनाव में गुप्‍ता ने भाजपा उम्‍मीदवार को 2,038 मतों से हराया. इंद्रजीत प्रसाद गुप्‍ता को 1,15,036 मत मिले तो भाजपा उम्‍मीदवार आलोक रंजन को 1,12,998 मत मिले. जन सुराज पार्टी के किशोर कुमार तीसरे स्‍थान पर रहे और उन्‍हें 12,786 मत मिले जबकि चौथे स्‍थान पर निर्दलीय उम्‍मीदवार देवचंद्र यादव रहे. बिहार चुनाव के पहले चरण में सहरसा विधानसभा सीट पर मतदान हुआ था. इस दौरान सहरसा में 69.92 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया.

सहरसा मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है, जहां मैथिली और हिंदी प्रमुख भाषाएं हैं. हालांकि बिहार का 15वां बड़ा शहर होने के बावजूद यहां की साक्षरता दर केवल 54.57 फीसदी है.

पिछले पांच में से 4 चुनावों में भाजपा की जीत 

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो यह सीट शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का गढ़ रही, लेकिन समय के साथ यहां भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली. पिछले पांच चुनावों में चार बार भाजपा विजयी रही है, जबकि राजद को केवल 2015 में जीत मिली. इससे पहले जनता दल ने दो बार और जनता पार्टी तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक-एक बार यहां प्रतिनिधित्व किया था.

2008 की परिसीमन प्रक्रिया के बाद सहरसा लोकसभा सीट को खत्म कर मधेपुरा में मिला दिया गया, इस बदलाव के बाद मधेपुरा जदयू का गढ़ बन गया. 

मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ की भूमि 

सहरसा न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है. यह कभी मिथिला साम्राज्य का हिस्सा रहा, जहां राजा जनक का उल्लेख मिलता है. महिषी में मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ इसी भूमि पर हुआ था. यहां चंडी मंदिर, कात्यायनी मंदिर और तारा मंदिर की धार्मिक मान्यता दूर-दूर तक फैली है. बाबाजी कुटी और मत्स्यगंधा का रक्तकाली मंदिर यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जो चुनावी रुझानों में भी अपनी छाप छोड़ते हैं.

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