- महागठबंधन ने पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण सीमा बढ़ाकर 30 फीसदी करने और ब्याजमुक्त स्वरोजगार राशि देने की घोषणा
- निषाद, पान और धानुक जातियों को विशेष फोकस देते हुए महागठबंधन ने इनके नेताओं को महत्वपूर्ण पद दिए हैं
- मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम उम्मीदवार बनाकर निषाद मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की रणनीति अपनाई गई है
महागठबंधन इस बार के चुनाव में अत्यंत पिछड़ी जातियों को साधने के लिए विशेष रणनीति बना रहा है. अपनी घोषणा पत्र में महागठबंधन ने अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए कई ऐलान किए हैं. इनमें EBC एक्ट, पंचायती राज और निकायों में आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 20 से 30 फीसदी करने, आरक्षण की सीमा बढ़ाने और नाई, कुम्हार, बढ़ई, लोहार, मोची, माली जाति के स्वरोजगार के लिए 5 साल तक के लिए 5 लाख रुपए ब्याजमुक्त राशि देने का ऐलान शामिल हैं. हालांकि, इनमें से कई घोषणाएं अति पिछड़ा न्याय संकल्प के दौरान भी किए गए थे. घोषणापत्र में निषाद, पान, धानुक जाति के लिए आरक्षण न्याय सुनिश्चित करने की घोषणा की गई है.
निषाद, पान, धानुक पर विशेष फोकस!
यूं तो महागठबंधन पूरे EBC वर्ग को साधने की कोशिश कर रहा है लेकिन तीन जातियों का विशेष रूप से उल्लेख कर इन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश की है. यह जातियां अब तक एनडीए को वोट करते रही हैं. ऐलान से पहले भी महागठबंधन ने इन 3 जातियों को अपने पाले में लाने के लिए कई कदम उठाए हैं. पान जाति की आबादी 2 फीसदी है. महागठबंधन ने इस जाति के नेता आईपी गुप्ता को महागठबंधन में शामिल किया. उनकी पार्टी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
निषाद समुदाय को साधने के लिए मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का उम्मीदवार घोषित किया. उनकी पार्टी महागठबंधन में शामिल है. उनके जरिए 3.3 फीसदी निषाद मतदाताओं को साधने की कोशिश है. महागठबंधन ने मछुआरा कारोबारों के लिए लीन पीरियड के दौरान प्रति माह 5 हजार देने का ऐलान किया है.
धानुक समाज से आने वाले मंगनीलाल मंडल को राजद ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इस बात को प्रचारित किया कि पहली बार बिहार में किसी दल ने अति पिछड़े नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. घोषणापत्र लॉन्च करने के दौरान मंच की अध्यक्षता भी उन्हें ही सौंपी गई. बिहार में धानुक आबादी भी 2 फीसदी है. पार्टी धनिकलाल मंडल के जरिए इस पर नजर बनाए हुए है.
कितना फायदेमंद होगा महागठबंधन का दांव
महागठबंधन के पास मुस्लिम यादव के रूप में एक बड़ा वोट आधार जुड़ा हुआ है. यह संख्या 32% है. इसके अलावा अनुसूचित जाति का भी एक तबका, खासकर रविदास वोटर महागठबंधन को वोट करते रहे हैं. अति पिछड़े मतदाताओं की संख्या 36% है, इनमें 26 फीसदी हिन्दू अति पिछड़े शामिल हैं. जो एनडीए के साथ जाते हैं. साथ ही अगड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा भी एनडीए के साथ जाता है जिनकी आबादी 10 फीसदी से अधिक है.
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को 37.26 फीसदी वोट मिले थे. वहीं महागठबंधन को 37.23 फीसदी वोट मिले थे. इस बार मुकेश सहनी और चिराग पासवान ने खेमा बदला है. इससे सामाजिक आधार पर एनडीए को बढ़त है. इसी बढ़त को पाटने के लिए अति पिछड़ा मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश महागठबंधन कर रहा है. निषाद, पान और धानुक जातियों की संख्या 7 फीसदी है. गठबंधन को उम्मीद है कि इसका आधा हिस्सा भी उनके पाले में आया तो वे एनडीए पर निर्णायक बढ़त हासिल कर लेंगे.
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