लालू प्रसाद यादव एक स्वतः जागृत छात्र क्रांति के उपज रहे हैं. एक विशुद्ध छात्र नेता जो बिहार के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से निकले, जिन्हें अवसर मिला तो महज 29 वर्ष में लोकसभा सांसद बन गए. फिर विधानसभा में चुने गए. कर्पूरी जी के देहांत के बाद नेता प्रतिपक्ष भी बने और सन 1990 में मुख्यमंत्री.
यहां एक गौर करने वाली बात है कि मुख्यमंत्री बनने के पहले लालू कभी सरकार में शामिल नहीं रहे. सरकार एक अलग व्यवस्था है, जिसका सिर कोई दल या गठबंधन होता है, लेकिन उसका शरीर अलग एक व्यवस्था है. मेरा यह मानना है कि लालू जी को सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं होना, उनके लिए एक दिक्कत का कारण है. विपक्ष जो कुछ भी कि आरोप लगाता है कि उसके जड़ में सरकार चलाने की अनुभवहीनता थी. जब तक उन्हें अनुभव होता वो चारा घोटाले में फंस गए. हालांकि कई वरिष्ठ पूर्व अधिकारियों का मानना है कि सार्वजनिक जीवन से दूर रहने वाली राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी तो उनके पास फाइल पेंडिंग नहीं ही रहती थी. लालू जब सरकार चलाने में परिपक्व हुए और केंद्र में रेलवे मंत्री बने तो उस वक्त को एक बेहतरीन काल कहा जा सकता है .
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नीतीश जी भी उसी छात्र राजनीति की उपज रहे, लेकिन शुरुआती हार और फिर सामाजिक राजनीतिक संघर्ष ने उन्हें वापस जीत की राह दिखाई. वाजपेयी जी और आडवाणी जी उनके मेंटर बने . केंद्रीय राज्य मंत्री से लेकर रेल मंत्रालय तक का अनुभव नीतीश कुमार के पास था, जो उन्हें वापस बिहार में सरकारी कामकाज चलाने में जबरदस्त काम आया. सरकार और अधिकारियों की महत्ता और उनके ऊपर पकड़ का ज्ञान लेकर ही नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. शुरुआती दौर में उनके साथ काम कर चुके पूर्व वरिष्ठ अधिकारी यह अवश्य मानते हैं कि नीतीश कुमार 18-19 घंटे तक काम करते थे. आज ही देख लीजिए, मौसम खराब होने पर जब हेलिकॉप्टर में दिक्कत हुई तो वो स्वयं गाड़ी से चुनावी सभा में निकल गए.
प्रशांत किशोर के पास चुनाव में लड़ने वालों के लिए काम करने का अनुभव है, लेकिन स्वयं के दल का चुनाव लड़ाने का अनुभव उन्हें पहली बार हो रहा है. पदयात्रा करना, अच्छी-अच्छी बातें करना और चुनावी मैदान में उतरना , दोनों अलग-अलग बातें हैं. यह गैप उन्हें समझ में आ गया होगा. सरकार चलाने का अनुभव तो लगभग शून्य है. हालांकि सन 2015 में वो मुख्यमंत्री आवास में ही अपने दफ्तर से निर्देश देते होंगे लेकिन वह चुनावी मौका था, सरकार चलाना नहीं .
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शायद यही वजह रही होगी कि सन 2015 में जब लालू नीतीश की सरकार बनी तो लालू अपने दोनों बेटों को मंत्रालय की समझ देने की भरपूर कोशिश की. उनके साथ अपने पसंद के अधिकारी ही नहीं लगाए, बल्कि सरकारी फाइल व्यवस्था को समझने का मौका दिया. दूसरी बार अगस्त 2022 में तेजस्वी ने जब उप मुख्यमंत्री के साथ वजन वाले मंत्रालय अपने पास रखे तो कई मामलों में त्वरित कारवाई देखी गई .
सोशल मीडिया या मीडिया पर बढ़िया बातें बोलना, दल चलाना, चुनाव लड़ना और सरकार चलाने की समझ रखना, यह सब अलग अलग बातें हैं. आगे जनता मालिक है, जो उसे पसंद वही सरकार है.
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