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पहले इनकार, फिर इकरार... नीतीश के टोपी पहनने के पीछे क्या संदेश?

नीतीश कुमार ने न केवल टोपी पहनी, बल्कि एक दरगाह में जाकर चादर भी चढ़ाई, जो मुस्लिम समुदाय में आस्था का प्रतीक है. इस घटना को लेकर सियासी विश्लेषक अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं.

पहले इनकार, फिर इकरार... नीतीश के टोपी पहनने के पीछे क्या संदेश?
  • नीतीश कुमार के दो वीडियो में मुस्लिम समुदाय के प्रति उनके दृष्टिकोण और राजनीतिक रणनीति पर सवाल उठे हैं.
  • पहले वीडियो में नीतीश कुमार टोपी पहनने से इनकार करते हैं जबकि दूसरे में दरगाह में चादरपोशी करते दिखे.
  • जदयू ने मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए बसपा से आए जमा खान को मंत्री बनाया था.
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पटना:

बिहार के CM नीतीश कुमार के दो हालिया वीडियो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं, खासकर मुस्लिम वोट बैंक को लेकर. इन वीडियो के जरिए यह सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार एक बार फिर उस मुस्लिम मतदाता वर्ग को अपने पाले में लाना चाहते हैं जो कभी उनके साथ मजबूती से जुड़ा रहा था. पहले वीडियो में, नीतीश कुमार अपने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान के साथ दिख रहे हैं. वीडियो में जमा खान नीतीश कुमार को एक जालीदार टोपी पहनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन नीतीश खुद टोपी पहनने से इनकार कर देते हैं और उसे वापस जमा खान को पहना देते हैं.

इसके कुछ ही दिनों बाद एक और वीडियो सामने आया जिसमें नीतीश कुमार खुद टोपी पहनकर बिहार शरीफ स्थित खानकाह में चादरपोशी करते नजर आ रहे हैं. यह वीडियो पिछले वीडियो के बिल्कुल विपरीत है. इसमें नीतीश कुमार ने न केवल टोपी पहनी, बल्कि एक दरगाह में जाकर चादर भी चढ़ाई, जो मुस्लिम समुदाय में आस्था का प्रतीक है. इस घटना को लेकर सियासी विश्लेषक अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं. कुछ का मानना है कि यह नीतीश कुमार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. वे संभवतः यह संदेश देना चाहते हैं कि वे दिखावे की राजनीति से दूर रहते हैं. लेकिन साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के साथ खड़े हैं.

बिहार का चुनावी रण और मुस्लिम समीकरण

  • 87 सीटों पर 20 % से अधिक मुस्लिम आबादी
  • 47 सीटों पर 15 से 20 % मुस्लिम आबादी तय करती है MLA
  • जदयू को मिलता रहा है मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन
  • 2015 में जदयू के 7 में से 5 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे
  • 2020 में जदयू के 11 मुस्लिम उम्मीदवारों में कोई नहीं जीता
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पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू का कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका था. इसी स्थिति को देखते हुए, बसपा से जीते जमा खान को जदयू में शामिल कर उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया था. यह कदम साफ तौर पर मुस्लिम मतदाताओं को साधने की रणनीति का हिस्सा माना गया. जदयू के विधान पार्षद खालिद अनवर ने नीतीश कुमार का बचाव करते हुए कहा कि वे हमेशा से मुसलमानों के लिए काम करते रहे हैं. उन्होंने मनेर शरीफ और फुलवारी शरीफ की खानकाहों के जीर्णोद्धार के लिए करोड़ों रुपये देने का हवाला दिया और कहा कि जो लोग नीतीश कुमार पर अब मुस्लिमों को साधने का आरोप लगा रहे हैं, वे गलतफहमी में हैं.

जदयू के इन दावों के बावजूद, विपक्ष लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जब नीतीश कुमार टोपी नहीं पहनते, तो उनकी आलोचना होती है, और फिर जब वे टोपी पहनते हैं, तो यह केवल सियासी फायदे के लिए होता है. तिवारी ने तंज कसते हुए कहा, "अब कितना अल्पसंख्यक भाइयों को टोपी पहनाएंगे." विपक्ष का आरोप है कि यह सरकार जाने वाली है और इसलिए नीतीश कुमार अब अपनी छवि चमकाने की कोशिश कर रहे हैं.

सेक्युलर छवि और नाराजगी
हालांकि, इन आरोपों के बीच भी नीतीश कुमार अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखने की कोशिश करते दिख रहे हैं. फिर भी, वक्फ बिल पर पार्टी के रुख से मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग उनसे नाराज भी हुआ था. यह नाराजगी इस बात का संकेत देती है कि नीतीश कुमार के लिए मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तरह से वापस अपने पाले में लाना एक चुनौती हो सकती है.

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