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आबादी 17%, भागीदारी 4.5 फीसदी... बिहार चुनाव के इतिहास में इस बार सबसे कम मुस्लिम उम्मीदवार जीते

2025 में अलग-अलग दलों ने अलग संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे. एआईएमआईएम ने सबसे ज्यादा, यानी लगभग 23 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे. जिनमें से 5 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. राजद और कांग्रेस ने मिलकर लगभग 30 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया.

आबादी 17%, भागीदारी 4.5 फीसदी... बिहार चुनाव के इतिहास में इस बार सबसे कम मुस्लिम उम्मीदवार जीते
  • बिहार चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत की संख्या घटकर 11 रह गई, जो पिछले चुनावों से काफी कम है
  • मुस्लिम समुदाय की आबादी राज्य में लगभग 17 फीसदी है, लेकिन विधानसभा में उनकी हिस्सेदारी केवल 4.5% रह गई है
  • सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम वोट बंटने के कारण कई मुस्लिम उम्मीदवार हार गए, जहां कई दलों के बीच मुकाबला हुआ
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने इस बार कई नई राजनीतिक तस्वीरें दिखाईं. इनमें सबसे बड़ी और चर्चा में रहने वाली बात यह रही कि इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत सबसे कम रही. पूरे राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 11 मुस्लिम उम्मीदवार ही जीत दर्ज कर सके. यह संख्या पिछले चुनावों के मुकाबले काफी कम है और इसे बिहार की राजनीति में मुस्लिम प्रतिनिधित्व में आई ऐतिहासिक गिरावट माना जा रहा है.

साल 2020 के चुनाव में कुल 19 मुस्लिम विधायक जीते थे. उससे पहले 2015 में यह संख्या 24 थी, लेकिन इस बार यानी 2025 में यह घटकर केवल 11 रह गई. यानी पांच साल में मुस्लिम विधायकों की संख्या लगभग आधी हो गई. राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर बड़ी चर्चा है, क्योंकि बिहार की आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 17 फीसदी है, जबकि विधानसभा में अब उनकी हिस्सेदारी महज 4.5 फीसदी तक सिमट गई है.

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस गिरावट के कई कारण हैं. सबसे पहले, प्रमुख दलों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को इस बार बहुत कम टिकट दिए. एनडीए की ओर से केवल 5 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से सिर्फ जेडीयू का एक उम्मीदवार ही जीत पाया. बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा.

दूसरा बड़ा कारण रहा सीमांचल क्षेत्र में वोटों का बिखराव. किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, कोचाधामन, अमौर, बैसी और जोकीहाट जैसे इलाकों में मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं. लेकिन इस बार यहां मुस्लिम वोट कई दलों में बंट गया. एआईएमआईएम (AIMIM), राजद, कांग्रेस और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रहा. इस बिखराव के कारण कई सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार हार गए.

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तीसरा कारण जातीय और राजनीतिक समीकरणों में बदलाव है. कई जगहों पर गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों ने जातीय आधार और स्थानीय नेटवर्क के ज़रिए बढ़त बना ली. मुस्लिम उम्मीदवारों को अपने पारंपरिक वोटों के अलावा अतिरिक्त समर्थन नहीं मिल पाया. इसका सीधा असर उनकी जीत की संभावना पर पड़ा.

2025 में अलग-अलग दलों ने अलग संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे. एआईएमआईएम ने सबसे ज्यादा, यानी लगभग 23 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे. जिनमें से 5 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. एआईएमआईएम की यह सफलता सीमांचल में केंद्रित रही, जहां पार्टी की पकड़ पिछले कुछ सालों में मज़बूत हुई है.

राजद और कांग्रेस ने मिलकर लगभग 30 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. राजद के तीन मुस्लिम उम्मीदवार फैसल रहमान (ढाका), आसिफ अहमद (बिस्फी) और ओसामा शहाब (राघुनाथपुर) जीतने में सफल रहे. कांग्रेस के दस मुस्लिम प्रत्याशियों में से दो ने जीत हासिल की- क़मरुल हुदा (किशनगंज) और आबिदुर रहमान (अररिया).

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एनडीए की तरफ से मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बहुत कम थी. जेडीयू के जमा खान (चैनपुर) ही अकेले मुस्लिम प्रत्याशी रहे, जिन्होंने जीत दर्ज की. बीजेपी की ओर से कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं था.

इस चुनाव में जिन 11 मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, उनमें से 5 एआईएमआईएम, 3 राजद, 2 कांग्रेस और 1 जेडीयू से थे. सीमांचल और उत्तर बिहार के कुछ इलाकों में ये जीतें दर्ज हुईं. एआईएमआईएम के मुर्शिद आलम (जोकीहाट), तौसीफ आलम (बहादुरगंज), सरवर आलम (कोचाधामन), अख्तरुल ईमान (अमौर) और गुलाम सरवर (बैसी) ने मजबूत प्रदर्शन किया. राजद के तीन उम्मीदवारों ने सीमित अंतर से जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने किशनगंज और अररिया में अपनी पारंपरिक सीटें बचाए रखीं. जेडीयू के जमा खान ने चैनपुर से जीतकर एनडीए में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का अकेला चेहरा बने.

मुस्लिम समुदाय बिहार की राजनीति में हमेशा एक प्रभावी वर्ग माना गया है. राज्य की कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. लेकिन 2025 के नतीजे बताते हैं कि अब विधानसभा में उनकी आवाज़ काफी कमजोर हो गई है. जहां पहले 19 या 24 मुस्लिम विधायक होते थे, अब संख्या केवल 11 रह गई है. इससे न केवल राजनीतिक संतुलन प्रभावित हुआ है, बल्कि यह सवाल भी उठने लगा है कि सरकार की नीतियों और विकास योजनाओं में क्या मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी पहले जैसी रह पाएगी?
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2025 का चुनाव इस लिहाज से ऐतिहासिक रहा कि बिहार विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. यह नतीजे बताते हैं कि बिहार की राजनीति अब पुराने जातीय और धार्मिक समीकरणों से आगे बढ़ रही है. मुस्लिम समुदाय की यह घटती मौजूदगी पार्टियों के लिए एक चेतावनी है . उन्हें अब केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं, बल्कि वास्तविक भागीदारी और नेतृत्व पर ध्यान देना होगा.

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