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Alauli Vidhan Sabha Seat: अलौली विधानसभा सीट पर कौन बनेगा किंग, लड़ाई काफी दिलचस्प, जातीय समीकरण के आंकड़े जान लीजिए

Alauli Vidhan Sabha Seat Update: अलौली की सियासी जमीन ने देश के दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान को 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार बिहार विधानसभा में जगह दी. उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता मिश्री सदा को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं. इस सीट का पूरा सियासी समीकरण यहां समझें.

Alauli Vidhan Sabha Seat: अलौली विधानसभा सीट पर कौन बनेगा किंग, लड़ाई काफी दिलचस्प, जातीय समीकरण के आंकड़े जान लीजिए
Bihar Assembly Election 2025: खगड़िया की अलौली विधानसभा सीट के बारे में जानें.
  • अलौली विधानसभा सीट 1962 में बनी थी. यह जातीय और भौगोलिक मुद्दों के कारण राजनीतिक दृष्टि से अहम है.
  • इस सीट पर कांग्रेस ने 4 बार, समाजवादी दलों ने 11 बार चुनाव जीत कर अपना दबदबा बनाया.
  • अलौली क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं में पिछड़ा हुआ है. बाढ़ तथा रोजगार गंभीर मुद्दे हैं.
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खगड़िया:

बिहार विधानसभा चुनाव में हर एक सीट अहम है. खगड़िया जिले की अलौली (सुरक्षित) विधानसभा सीट की सूबे की सियासत में खास पहचान है. साल 1962 में गठित यह निर्वाचन क्षेत्र हमेशा चर्चा का केंद्र रहा है. यह सीट न सिर्फ जातीय समीकरणों की वजह से बल्कि अपने भौगोलिक और सामाजिक मुद्दों की वजह से भी सुर्खियों में है.

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 अलौली विधानसभा सीट पर कब कौन जीता?

  • अलौली विधानसभा सीट की चुनावी कहानी रोचक है.
  • इस सीट पर कांग्रेस ने 1962, 1967, 1972 और 1980 में जीत हासिल की.
  • समाजवादी विचारधारा के दलों ने यहां 11 बार कब्जा जमाया है.
  • जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने दो-दो बार जीत हासिल की.
  • संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल ने एक-एक बार जीत दर्ज की.

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के रामवृक्ष सदा ने जेडीयू की साधना देवी को महज 2,773 वोटों से हरा दिया था. वहीं, 2015 में महागठबंधन के दम पर आरजेडी-जेडीयू गठजोड़ ने LJP के पशुपति पारस को हरा दिया था.  2020 में चिराग पासवान की अगुवाई में  LJP के एनडीए से अलग होने से वोटों का बिखराव हुआ, जिसका फायदा आरजेडी उम्मीदवार को मिला था.

अलौली विधानसभा क्षेत्र में कितने मतदाता?

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां कुल 2,52,891 मतदाता थे, जो अब बढ़कर 2,67,640 हो गए हैं. इनमें अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं की हिस्सेदारी 25.39 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 7.6 प्रतिशत है. क्षेत्र की जनसांख्यिकीय और जातीय संरचना इसे एक रोचक राजनीतिक प्रयोगशाला बनाती है, जहां हर समुदाय का प्रभाव चुनावी परिणामों को आकार देता है.

  • इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी जातीय आबादी सदा (मुसहर) समुदाय की है, जिसकी संख्या लगभग 65,000 है.
  • यह समुदाय अनुसूचित जाति के तहत आता है, जो जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका में रखता है.
  • यहां यादव समुदाय की आबादी करीब 45,000 है, जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मानी जाती है. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15,000 है, जो 7.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ अल्पसंख्यक वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

अलौली विधानसभा सीट पर किन जातियों का दबदबा?

अगर  कोयरी और कुर्मी समाज की बात करें तो सामूहिक रूप से इनकी संख्या 35,000 है, जिनका अपना राजनीतिक प्रभाव है. यह समाज संगठित और शिक्षित छवि की वजह से राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम मानी जाती है. इसके साथ ही पासवान समुदाय की आबादी 10,000, राम समुदाय की 6,000, और मल्लाह समुदाय की आबादी 12,000 है. इसके अलावा, अगड़ी जातियों (सवर्ण) की संख्या 8,000 और अन्य समुदायों (अन्य पिछड़ा वर्ग, सामान्य आदि) की संख्या 70,000 है. ऐसे में जातियों का यह समीकरण अलौली को एक ऐसी विधानसभा सीट बनाता है, जहां कोई भी राजनीतिक दल किसी एक समुदाय पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकता.

अलौली की सियासी जमीन ने देश के दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान को 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार बिहार विधानसभा में जगह दी. उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता मिश्री सदा को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं.

आजादी के 7 दशक बाद भी क्यों पिछड़ा है अलौली?

अलौली एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र है, जो विकास की बुनियादी जरूरतों में पिछड़ा हुआ है. आजादी के सात दशक बाद भी यह इलाका बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है. यह क्षेत्र बाढ़ और कटाव की चपेट में रहता है, जिससे आधी से ज्यादा कृषि योग्य जमीन जलमग्न रहती है. वहीं, रोजगार के अभाव में पलायन एक गंभीर मुद्दा है, जिसके कारण युवा आबादी को बाहर जाना पड़ता है.

अलौली की सबसे बड़ी चुनौती है बुनियादी ढांचे का अभाव और प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार आना. ऐसे में बाढ़ और कटाव से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की जरूरत है. इसके अलावा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की जरूरत है, ताकि पलायन रोका जा सके.

इनपुट-IANS
 

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