विज्ञापन

Alauli Chunav Result: अलौली सीट पर NDA का कब्जा, JDU के रामचंद्र सदा ने RJD उम्मीदवार को हराया

Alauli Seat Result: अलौली विधानसभा सीट NDA के खाते में आ गई है. यहां की जनता ने इस बार RJD को नकारकर जेडीयू पर भरोसा जताया है. यह वही सीट है जहां से 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान जीते थे. उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता मिश्री सदा को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं.

Alauli Chunav Result:  अलौली सीट पर NDA का कब्जा, JDU के रामचंद्र सदा ने RJD उम्मीदवार को हराया
Bihar Assembly Election 2025: खगड़िया की अलौली विधानसभा सीट पर JDU का कब्जा.
  • बिहार की अलौली विधानसभा सीट पर जेडीयू के रामचंद्र सदा ने 35,732 वोटों के अंतर से जीत हासिल की है.
  • 2020 में यह सीट आरजेडी के कब्जे में थी, लेकिन अब जेडीयू ने अपना दबदबा कायम कर लिया है.
  • अलौली में सदा (मुसहर) समुदाय की संख्या लगभग 65,000 है, जो चुनाव परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाता है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
खगड़िया:

बिहार की अलौली विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम सामने आ गए हैं. अलौली सीट पर एनडीए ने कब्जा जमा लिया है. जेडीयू के रामचंद्र सदा ने अलौली सीट 35,732 वोटों के अंतर से जीत ली है. उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार  रामवृक्ष सदा को 35732 वोटों के अंतर से हरा दिया है. जेडीयू उम्मीदवार को 93208 वोट मिले हैं. वहीं जन सुराज के अभिषेक कुमार का जादू भी अलौली में नहीं चल सका. 2020 में यह सीट आरजेडी ने जीती थी, लेकिन अब जेडीयू ने बाजी मार ली है. 

Latest and Breaking News on NDTV

अलौली: मुख्य मुकाबला इन उम्मीदवारों के बीच था

खगड़िया जिले की अलौली एससी सीट पर पहले चरण में 67.13 प्रतिशत वोटिंग हुई है. इस सीट पर मुख्य मुकाबला जेडीयू के रामचंद्र सदा, आरजेडी के रामवृक्ष सदा और जन सुराज के अभिषेक कुमार के बीच था.

ये भी पढ़ें- अब NDA की जीत को कोई रोक नहीं सकता... पवन सिंह से मुलाकात कर गदगद दिखे कुशवाहा

 अलौली विधानसभा सीट पर कब कौन जीता?

  • अलौली विधानसभा सीट की चुनावी कहानी रोचक है.
  • इस सीट पर कांग्रेस ने 1962, 1967, 1972 और 1980 में जीत हासिल की.
  • समाजवादी विचारधारा के दलों ने यहां 11 बार कब्जा जमाया है.
  • जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने दो-दो बार जीत हासिल की.
  • संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल ने एक-एक बार जीत दर्ज की.
  • 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के रामवृक्ष सदा ने जेडीयू की साधना देवी को हराकर जीत दर्ज की
  • 2025 विधानसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार राम चंद्र सदा ने जीत हासिस की है.

2020 में अलौली सीट पर था RJD क कब्जा

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के रामवृक्ष सदा ने जेडीयू की साधना देवी को महज 2,773 वोटों से हरा दिया था. वहीं, 2015 में महागठबंधन के दम पर आरजेडी-जेडीयू गठजोड़ ने LJP के पशुपति पारस को हरा दिया था.  2020 में चिराग पासवान की अगुवाई में  LJP के एनडीए से अलग होने से वोटों का बिखराव हुआ, जिसका फायदा आरजेडी उम्मीदवार को मिला था.

अलौली विधानसभा क्षेत्र में कितने मतदाता?

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां कुल 2,52,891 मतदाता थे, जो अब बढ़कर 2,67,640 हो गए हैं. इनमें अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं की हिस्सेदारी 25.39 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 7.6 प्रतिशत है. क्षेत्र की जनसांख्यिकीय और जातीय संरचना इसे एक रोचक राजनीतिक प्रयोगशाला बनाती है, जहां हर समुदाय का प्रभाव चुनावी परिणामों को आकार देता है.

  • इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी जातीय आबादी सदा (मुसहर) समुदाय की है, जिसकी संख्या लगभग 65,000 है.
  • यह समुदाय अनुसूचित जाति के तहत आता है, जो जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका में रखता है.
  • यहां यादव समुदाय की आबादी करीब 45,000 है, जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मानी जाती है. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15,000 है, जो 7.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ अल्पसंख्यक वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

अलौली विधानसभा सीट पर किन जातियों का दबदबा?

अगर  कोयरी और कुर्मी समाज की बात करें तो सामूहिक रूप से इनकी संख्या 35,000 है, जिनका अपना राजनीतिक प्रभाव है. यह समाज संगठित और शिक्षित छवि की वजह से राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम मानी जाती है. इसके साथ ही पासवान समुदाय की आबादी 10,000, राम समुदाय की 6,000, और मल्लाह समुदाय की आबादी 12,000 है. इसके अलावा, अगड़ी जातियों (सवर्ण) की संख्या 8,000 और अन्य समुदायों (अन्य पिछड़ा वर्ग, सामान्य आदि) की संख्या 70,000 है. ऐसे में जातियों का यह समीकरण अलौली को एक ऐसी विधानसभा सीट बनाता है, जहां कोई भी राजनीतिक दल किसी एक समुदाय पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकता.

अलौली की सियासी जमीन ने देश के दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान को 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार बिहार विधानसभा में जगह दी. उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता मिश्री सदा को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं.

आजादी के 7 दशक बाद भी क्यों पिछड़ा है अलौली?

अलौली एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र है, जो विकास की बुनियादी जरूरतों में पिछड़ा हुआ है. आजादी के सात दशक बाद भी यह इलाका बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है. यह क्षेत्र बाढ़ और कटाव की चपेट में रहता है, जिससे आधी से ज्यादा कृषि योग्य जमीन जलमग्न रहती है. वहीं, रोजगार के अभाव में पलायन एक गंभीर मुद्दा है, जिसके कारण युवा आबादी को बाहर जाना पड़ता है.

अलौली की सबसे बड़ी चुनौती है बुनियादी ढांचे का अभाव और प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार आना. ऐसे में बाढ़ और कटाव से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की जरूरत है. इसके अलावा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की जरूरत है, ताकि पलायन रोका जा सके.

इनपुट-IANS
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com