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    नई पीढ़ी के साथ बदल रही है शिवसेना

    शिवसेना की स्थापना 19 जून 1966 को महाराष्ट्र की अस्मिता और मराठी भाषियों के अधिकार और न्याय दिलाने के लिए हुई थी. साठ के दशक में मुम्बई में गुजराती और दक्षिण भाषियों का वर्चस्व बढ़ रहा था. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने मराठी मन की उस व्यथा को देखा उसे समझा और अपने ओजस्वी भाषणों से मराठी मन को आकर्षित कर न सिर्फ एक मजबूत संगठन खड़ा किया बल्कि मराठियों की खोई अस्मिता को फिर से स्थापित किया. आज बाल ठाकरे भले जीवित नही हैं लेकिन शिवसैनिक आज भी उनके लिए सब कुछ समर्पित करने को तैयार रहते हैं. पर अब शिवसेना बदल रही है खासकर ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले आदित्य ठाकरे की सोच अलग है.

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    13 साल में 3-3 जांच एजेंसियों और अदालती मुकदमे के बाद भी नहीं उठ पाया सोहराबुद्दीन की मौत से पर्दा!

    इतना ही नहीं तो जज ने तुलसी प्रजापति की पुलिस मुठभेड़ में मौत को सही पाया लेकिन सोहराबुद्दीन शेख के कथित एनकाउंटर को अनसुलझा ही छोड़ दिया. दोनों मुठभेड़ों में कोई लिंक नहीं साबित होने का हवाला दे कथित साजिश की पूरी कहानी को ही दरकिनार कर दिया. पर ये नहीं बताया कि सोहरबुद्दीन को किसने मारा और कौसर बी की मौत कैसे हुई? अलबत्ता तीनों की मौत का दुख जरूर जताया. सवाल है जब मौत हुई है तो किसी ने तो मारा है पर 13 साल में सीआईडी, सीबीआई की जांच और अदालती मुकदमे के बाद भी इसका खुलासा नहीं हो पाया. आखिर क्यों?

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    महाराष्ट्र एटीएस को मीडिया से क्यों डर लगता है?

    शुक्रवार 10 अगस्त को मुंबई में जो हुआ वो मुंबई में बहुत कम होता है. अपनी व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता के चलते पत्रकारों में एक राय कम ही बन पाती है जिसका फायदा नेता और पुलिस अक्सर उठाते हैं. लेकिन महाराष्ट्र एटीएस के बेरुखी भरे रवैये ने शुक्रवार को एटीएस प्रमुख अतुल चंद्र कुलकर्णी की प्रेस ब्रीफिंग का बहिष्कार करने को मजबूर कर दिया.

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    मुंबई भगदड़ : यह महज हादसा नहीं, गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज हो

    रेल प्रशासन यहां की बढ़ती भीड़ और होने वाली अनहोनी की आशंका से भली-भांति परिचित था. लेकिन उसे पुल बनाने के लिए जितनी तेजी दिखानी चाहिए थी, उतनी तेजी नहीं दिखाई.

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