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This Article is From Oct 11, 2019

नई पीढ़ी के साथ बदल रही है शिवसेना

Sunil Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 11, 2019 22:49 pm IST
    • Published On अक्टूबर 11, 2019 22:49 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 11, 2019 22:49 pm IST

शिवसेना की स्थापना 19 जून 1966 को महाराष्ट्र की अस्मिता और मराठी भाषियों के अधिकार और न्याय दिलाने के लिए हुई थी. साठ के दशक में मुम्बई में गुजराती और दक्षिण भाषियों का वर्चस्व बढ़ रहा था. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने मराठी मन की उस व्यथा को देखा उसे समझा और अपने ओजस्वी भाषणों से मराठी मन को आकर्षित कर न सिर्फ एक मजबूत संगठन खड़ा किया बल्कि मराठियों की खोई अस्मिता को फिर से स्थापित किया. आज बाल ठाकरे भले जीवित नही हैं लेकिन शिवसैनिक आज भी उनके लिए सब कुछ समर्पित करने को तैयार रहते हैं. पर अब शिवसेना बदल रही है खासकर ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले आदित्य ठाकरे की सोच अलग है.

आदित्य ठाकरे ने ना सिर्फ मराठी मुद्दे पर पार्टी की सोच बदलनी शुरू की है बल्कि चुनाव मैदान में भी उतरे हैं.
ऐसा पहली बार हुआ है जब ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ रहा है. जिस दिन वर्ली से उनके चुनाव लड़ने का ऐलान हुआ, दूसरे ही दिन वर्ली विधानसभा इलाके में मराठी के साथ  हिंदी, गुजराती, उर्दू और दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी होर्डिंग लग गए थे. राजनीतिक हलकों में उन होर्डिंगों की चर्चा हुई. कुछ हलकों में निंदा भी की गई. एनडीटीवी से बात करते हुए आदित्य ने बताया कि शिवसेना भले ही क्षेत्रीय पार्टी है लेकिन हमेशा से देश की भी बात करती रही है. सबका विचार करती रही है, सबको साथ में लेकर चलती रही है. होर्डिंग तो बस एक कैम्पेन बस है. इसका राज आगे चलकर पता चलेगा?

राज जो भी हो लेकिन हिंदुत्व के मुद्दे पर बाल ठाकरे भी भाषा और प्रांत से ऊपर उठकर ही बोलते रहे हैं.
इसलिए उनको हिन्दू हृदय सम्राट कहा जाता था. बाल ठाकरे अपने समय में चंद्रिका केनिया, प्रीतिश नंदी और संजय निरुपम को राज्यसभा भेज चुके हैं. उन्होंने उत्तर भारतीय नेता घनश्याम दुबे को भी विधान परिषद सदस्य बनाया था.

बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जरूर भाषा वाद को ज्यादा तवज्जो दी और भूमिपुत्रों का हक दिलाने के नाम पर मुंबई में उत्तर भारतीयों का विरोध भी किया. पर बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे हमेशा से सबको साथ में लेकर ही चलने की बात करते रहे हैं. जब आज के कांग्रेसी नेता संजय निरुपम 'दोपहर का सामना' के कार्यकारी संपादक और राज्यसभा सांसद हुआ करते थे तब उत्तर भारतीय महा सम्मेलन का आयोजन भी किया था. हालांकि बाद में निरुपम उद्धव ठाकरे के साथ कुछ मतभेद के चलते शिवसेना छोड़ कांग्रेस में चले गए.

उध्दव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना मराठी अस्मिता की बात जरूर करती रही है लेकिन पर प्रांतियों के खिलाफ कोई विशेष मुहिम नहीं चलाई. बावजूद इसके पार्टी को जोड़े रखने और राज्य में एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में शिवसेना को बनाए रखा. शिवसेना के पार्टी अध्यक्ष आज भी उद्धव ठाकरे ही हैं लेकिन ज्यादातर फैसले उनके बेटे आदित्य ठाकरे लेते हैं. आदित्य के चुनाव मैदान में उतरने पर जब उद्धव ठाकरे से पूछा गया तो उहोंने बड़ी ही बेबाकी से कहा कि समय बदल रहा है, आदित्य युवा हैं, आज के युवाओं की सोच अलग है. आदित्य को विधायक कामों में ज्यादा रुचि है. अच्छी बात है पूरा परिवार और पार्टी उसके साथ है.

मतलब साफ है जो ठाकरे परिवार रिमोट के बल पर सत्ता चलाने की नीति पर चलता आ रहा था, उसे समझ आ गया है कि बदलते वक्त के साथ राजनीति भी बदल रही है. ताकत अब सत्ता की कुर्सी में ज्यादा है. पार्टी में बढ़ रहे क्षत्रपों को अगर नियंत्रण में रखना है तो सरकार में बड़ी कुर्सी पर आसीन होना जरूरी है. पार्टी फंड के स्रोतों की जानकारी और नियंत्रण के बिना आज की राजनीति मुश्किल है. इसलिए आदित्य को साल भर पहले से ही भावी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था. बीजेपी के साथ सीटों के बंटवारे में सिर्फ 124 सीटों पर लड़कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना भले ही आसान नहीं है लेकिन असंभव भी नहीं है. चुनाव परिणाम क्या होगा और राजनीति किस करवट बैठेगी, ये कहना अभी मुश्किल है.

बात सिर्फ आदित्य के चुनाव लड़ने और अलग-अलग भाषाओं में होर्डिंग लगाने तक सीमित नहीं है. हमेशा उग्र हिंदुत्व और किसी भी हालत में अयोध्या में राम मंदिर बनाने की वकालत करने वाली शिवसेना अब मुसलमानों के अधिकार के लिए लड़ने की बात भी करने लगी है. शिवाजी पार्क में पार्टी के दशहरा सम्मेलन में उद्धव ठाकरे ने मंच से ऐलान किया कि उनकी पार्टी सिर्फ धनगर ,ओबीसी और दूसरे  पिछड़े वर्गों के साथ ही नहीं है, देशभक्त मुसलमानों के अधिकारों की लड़ाई में भी साथ देगी. उन्होंने याद दिलाया कि छत्रपत्री शिवाजी महाराज की सेना में भी मुसलमान सैनिक थे.

(सुनील सिंह एनडीटीवी के मुंबई ब्यूरो में कार्यरत हैं)

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