सुप्रीम कोर्ट ने गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ गैंगरेप के मामले में FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं.
इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव में एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत है जो सर्वाधिक चर्चा का विषय रही है. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपा के इस नेता के माध्यम से राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला है. यहां बात हो रही है गायत्री प्रसाद प्रजापति की. जी हां, आज पांचवें चरण में अमेठी में चुनाव हो रहे हैं और प्रजापति यहीं से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार है. पिछले दिनों गैंगरेप और धमकी देने के मामले में उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए भी कहा है. फिलहाल गिरफ्तारी से बचे प्रजापति को पीएम नरेंद्र मोदी राज्य की लचर कानून व्यवस्था का जीता-जागता नमूना करार देते हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रजापति के साथ चुनावी मंच साझा करने से इनकार कर दिया. वैसे भी ये जगजाहिर है कि अखिलेश उनको पसंद नहीं करते.
इसके अलावा अमेठी सीट पर भी वह चारों तरफ से घिरे हैं. कांग्रेस की अमिता सिंह उनके खिलाफ खड़ी हैं जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन के चलते इस सीट से गायत्री प्रसाद प्रजापति को ही अधिकृत उम्मीदवार बनाया गया लेकिन अमिता सिंह ने पीछे हटने से मना कर दिया. इस तरह विभिन्न विवादों के केंद्र बिंदु गायत्री प्रसाद प्रजापति के राजनीतिक सफर पर आइए डालते हैं एक नजर:
फर्श से अर्श तक
जब गायत्री प्रसाद प्रजापति पहली बार चुनाव लड़े थे तो उनको महज 1500 वोट मिले थे. उस दौर में उनके पास बीपीएल कार्ड था. 2012 में पहली बार गायत्री प्रसाद प्रजापति सपा के टिकट पर अमेठी से कांग्रेस की अमिता सिंह को हराकर जीते. उसके बाद उनका सितारा बुलंद होता चला गया. कांग्रेस के गढ़ में जीतने की वजह से वह सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की नजर में आए. उनको फरवरी 2013 में सिंचाई राज्य मंत्री बनाया गया और उसी जुलाई में खनन विभाग का स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया. उसके चंद महीनों के बाद जनवरी, 2014 में वह कैबिनेट मंत्री बन गए. फरवरी में उनके खिलाफ आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति एकत्र करने और राज्य में अवैध खनन को प्रश्रय देने के आरोप लगे.
सितंबर, 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई से अवैध खनन मामले में रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया. नतीजतन कुछ समय बाद उनको अखिलेश ने कैबिनेट से हटा दिया. हालांकि उसके बाद मुलायम के हस्तक्षेप के चलते उनकी वापसी हुई.
कथित गैंगरेप का मामला
बुंदेलखंड की एक महिला ने गायत्री प्रसाद प्रजापति और उनके सहयोगियों पर 2014 में कथित रूप से गैंगरेप का आरोप लगाया. उसके मुताबिक उसको खनन का ठेका देने की बात हुई थी लेकिन उसकी चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर गैंगरेप किया गया. उसको ब्लैकमेल करने के लिए उसकी तस्वीरें ली गईं और महीनों दुष्कर्म किया जाता रहा. पीडि़ता के मुताबिक उसकी नाबालिक बेटी पर भी उनकी बुरी नजर थी. उसके बाद जब उसने मामला दर्ज कराया तो मंत्री समेत उनके सहयोगियों की तरफ से उसको जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. लिहाजा उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
इसके अलावा अमेठी सीट पर भी वह चारों तरफ से घिरे हैं. कांग्रेस की अमिता सिंह उनके खिलाफ खड़ी हैं जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन के चलते इस सीट से गायत्री प्रसाद प्रजापति को ही अधिकृत उम्मीदवार बनाया गया लेकिन अमिता सिंह ने पीछे हटने से मना कर दिया. इस तरह विभिन्न विवादों के केंद्र बिंदु गायत्री प्रसाद प्रजापति के राजनीतिक सफर पर आइए डालते हैं एक नजर:
फर्श से अर्श तक
जब गायत्री प्रसाद प्रजापति पहली बार चुनाव लड़े थे तो उनको महज 1500 वोट मिले थे. उस दौर में उनके पास बीपीएल कार्ड था. 2012 में पहली बार गायत्री प्रसाद प्रजापति सपा के टिकट पर अमेठी से कांग्रेस की अमिता सिंह को हराकर जीते. उसके बाद उनका सितारा बुलंद होता चला गया. कांग्रेस के गढ़ में जीतने की वजह से वह सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की नजर में आए. उनको फरवरी 2013 में सिंचाई राज्य मंत्री बनाया गया और उसी जुलाई में खनन विभाग का स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया. उसके चंद महीनों के बाद जनवरी, 2014 में वह कैबिनेट मंत्री बन गए. फरवरी में उनके खिलाफ आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति एकत्र करने और राज्य में अवैध खनन को प्रश्रय देने के आरोप लगे.
सितंबर, 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई से अवैध खनन मामले में रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया. नतीजतन कुछ समय बाद उनको अखिलेश ने कैबिनेट से हटा दिया. हालांकि उसके बाद मुलायम के हस्तक्षेप के चलते उनकी वापसी हुई.
कथित गैंगरेप का मामला
बुंदेलखंड की एक महिला ने गायत्री प्रसाद प्रजापति और उनके सहयोगियों पर 2014 में कथित रूप से गैंगरेप का आरोप लगाया. उसके मुताबिक उसको खनन का ठेका देने की बात हुई थी लेकिन उसकी चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर गैंगरेप किया गया. उसको ब्लैकमेल करने के लिए उसकी तस्वीरें ली गईं और महीनों दुष्कर्म किया जाता रहा. पीडि़ता के मुताबिक उसकी नाबालिक बेटी पर भी उनकी बुरी नजर थी. उसके बाद जब उसने मामला दर्ज कराया तो मंत्री समेत उनके सहयोगियों की तरफ से उसको जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. लिहाजा उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
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