प्रतीकात्मक तस्वीर
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                अहमदाबाद: 
                                        मंगलवार को 12वीं में विज्ञान में बी ग्रुप में पढ़े हजारों छात्रों ने गुजरात में मेडिकल में प्रवेश के लिए राज्य की कॉमन एन्ट्रेंस टेस्ट में हिस्सा लिया। ये जानते हुए भी कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक इस परीक्षा के कोई मायने नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश के जरीये ये स्पष्ट कर दिया था कि मेडिकल में प्रवेश के लिए सिर्फ नीट (NEET) ही मान्य होगा। मंगलवार को फिर भी करीब 67,000 छात्रों ने राज्य की परीक्षा दी सिर्फ इसी उम्मीद पर कि शायद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे और इस परीक्षा को महत्व मिले।
आखिर गुजरात बोर्ड के छात्रों को नीट में सफलता की उम्मीद कम ही है क्योंकि गुजरात बोर्ड के सिलेबस में करीब 30 प्रतिशत अंतर है। बच्चों ने परीक्षा तो दी लेकिन उनके परिवार में ये गुस्सा साफ झलका कि उनकी समस्या न राज्य सरकार ने सुलझाई न सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही सुलझी।
उन्हें लगता है कि दो महिनों में ही 30 प्रतिशत नया कोर्स पढ़ना मुश्किल है। उनका कहना है कि इसके चलते छात्रों में मानसिक दबाव बढ़ जाता है, डिप्रेस्ड लगने लगे हैं। महाराष्ट्र समेत देश के दूसरे राज्यों में भी जहां इस तरह की परीक्षाएं हुई हैं वहां पर भी राज्य बोर्ड के छात्रों में ऐसा ही असमंजस है।
                                                                        
                                    
                                सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश के जरीये ये स्पष्ट कर दिया था कि मेडिकल में प्रवेश के लिए सिर्फ नीट (NEET) ही मान्य होगा। मंगलवार को फिर भी करीब 67,000 छात्रों ने राज्य की परीक्षा दी सिर्फ इसी उम्मीद पर कि शायद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे और इस परीक्षा को महत्व मिले।
आखिर गुजरात बोर्ड के छात्रों को नीट में सफलता की उम्मीद कम ही है क्योंकि गुजरात बोर्ड के सिलेबस में करीब 30 प्रतिशत अंतर है। बच्चों ने परीक्षा तो दी लेकिन उनके परिवार में ये गुस्सा साफ झलका कि उनकी समस्या न राज्य सरकार ने सुलझाई न सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही सुलझी।
उन्हें लगता है कि दो महिनों में ही 30 प्रतिशत नया कोर्स पढ़ना मुश्किल है। उनका कहना है कि इसके चलते छात्रों में मानसिक दबाव बढ़ जाता है, डिप्रेस्ड लगने लगे हैं। महाराष्ट्र समेत देश के दूसरे राज्यों में भी जहां इस तरह की परीक्षाएं हुई हैं वहां पर भी राज्य बोर्ड के छात्रों में ऐसा ही असमंजस है।
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