
नासा ने 1948 से टेस्टिंग के तौर पर बंदरों को स्पेस में भेजना शुरू कर दिया था.
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नासा ने 1948 में ही बंदरों को स्पेस में भेजना शुरू कर दिया था.
नासा को पहली सफलता1959 में मिस बेकर के स्पेस से लौटने पर मिली.
मिस बेकर इस घटना के 15 साल बाद 1984 तक जिंदा रहीं.
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ऐसे की जाती थी लॉंचिंग
1959 के दौर की कुछ फोटोज भी सामने आई हैं, जिनमें अलग-अलग बंदरों को स्पेस में जाने से पहले ट्रेनिंग लेते हुए दिखाया गया है. कुछ फोटोज में स्पेस से सही-सलामत वापस धरती पर पहुंचने वाले पहले बंदर मिस बेकर को भी दिखाया गया है. स्पेस की दुनिया में अपने प्रतिद्वंदी रोसकॉस्मस से आगे रहने के लिए नासा ने 1948 में ही बंदरों को स्पेस में भेजना शुरू कर दिया था.
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हालांकि, नासा को पहली सफलता 28 मई 1959 में मिस बेकर के स्पेस से सही-सलामत लौटने पर मिली. स्पेस से लौटने के बाद मिस बेकर के साथ भेजे गए एक और बंदर मिस एबल की सर्जरी के दौरान मौत हो गई, लेकिन मिस बेकर इस घटना के 15 साल बाद 1984 तक जिंदा रहीं. मिस बेकर को अमेरिकी सरकार ने सम्मान के तौर पर स्पेस एंड रॉकेट सेंटर में दफनाया था.
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इस एक्सपेरिमेंट के बाद ही नासा को स्पेस में इंसानों के जाने की उम्मीद दिखी. 1961 में हैम नाम के चिंपांजी को भेजने से पहले बकायादा ट्रेनिंग मुहैया कराई गई थी. यहां तक कि हैम को रॉकेट के लीवर्स तक ऑपरेट करने के लिए ट्रेन्ड किया गया था ताकि स्पेस की ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाई जा सके. करीब 9500 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलने वाले रॉकेट में हैम ने 16 मिनट बिताए थे. कुछ कॉम्पलिकेशन के बावजूद हैम सही-सलामत धरती पर लौट पाया था.
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