नई दिल्ली:
एक नई किताब में कहा गया है कि यदि पाकिस्तान और उसके परमाणु शस्त्रागार पर जिहादियों का कब्जा हुआ, तो ऐसी सूरत में भारत, अमेरिका उसपर हमला कर सकते हैं और इस तरह पाकिस्तान को भारत में फिर से मिलाए जाने का रास्ता साफ हो सकता है।
'द अनरैवलिंग-पाकिस्तान इन द एज ऑफ जिहाद' शीर्षक वाली किताब में कहा गया है, "यदि किसी जिहादी कब्जे के तहत पाकिस्तानी सेना समाप्त होती है, तो सभी मौजूदा परमाणु सुरक्षा तंत्र छिन्न-भिन्न हो जाएंगे।"
लेखक जॉन आर. श्मिट, 9/11 की घटना से पहले के कुछ वर्षो के दौरान इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास में राजनीतिक वाणिज्यदूत के रूप में काम कर चुके हैं।
किताब में कहा गया है, "यदि इन दिनों वहां इस बात की चिंता है कि आतंकवादी किसी मुखास्त्र को कब्जे में लेकर उसे परमाणु ब्लैकमेल करने में या अमेरिका में कहीं फोड़ने में इस्तेमाल कर सकते हैं, तो उस समय पैदा होने वाली चिंता के स्तर की जरा कल्पना कीजिए जब इस्लामाबाद में वाकई में जिहादियों का राज होगा।"
किताब कहती है कि ऐसी स्थिति में अमेरिका विशेष रूप से प्रशिक्षित अपनी कमांडो इकाई की तैनाती कर पहले हमला करने का निर्णय लेगा।
किताब में कहा गया है, "स्थिति की नजाकत सम्भवत: इस बात की मांग करे कि अमेरिका पाकिस्तान को जिहादियों के चंगुल से मुक्त कराने की कोशिश करे।"
किताब में आगे कहा गया है, "हो सकता है इस प्रक्रिया में वायु सेना के जरिए पाकिस्तानी सशस्त्र बलों की बची-खुची शक्ति को नष्ट कर दिया जाए। लेकिन कट्टरपंथी इस्लामवादियों के हाथों से देश का जमीनी नियंत्रण छीनने में पर्याप्त मदद की जरूरत होगी।"
किताब ने कहा है कि जाहिरतौर पर इसमें भारत का सहयोग लिया जाएगा। पुस्तक में लिखा गया है, "भारत-अमेरिका गठबंधन, अफगानिस्तान की स्थायी स्वतंत्रता के अनुभव को एक बड़े पैमाने पर दोहराते हुए देख सकता है। इसमें अमेरिका हवाई शक्ति मुहैया कराएगा और भारत जमीनी संघर्ष की जिम्मेदारी सम्भालेगा।"
फिलहाल एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे श्मिट का कहना है कि इस बात का कयास लगा पाना फिलहाल कठिन है कि भारतीय सेना, पाकिस्तान में कितनी दूर तक जाना चाहेगी। "क्या वे पूरे देश पर कब्जा करना चाहेंगे, या सिंधु तक ही अपना अभियान रोक देना चाहेंगे?"
'द अनरैवलिंग-पाकिस्तान इन द एज ऑफ जिहाद' शीर्षक वाली किताब में कहा गया है, "यदि किसी जिहादी कब्जे के तहत पाकिस्तानी सेना समाप्त होती है, तो सभी मौजूदा परमाणु सुरक्षा तंत्र छिन्न-भिन्न हो जाएंगे।"
लेखक जॉन आर. श्मिट, 9/11 की घटना से पहले के कुछ वर्षो के दौरान इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास में राजनीतिक वाणिज्यदूत के रूप में काम कर चुके हैं।
किताब में कहा गया है, "यदि इन दिनों वहां इस बात की चिंता है कि आतंकवादी किसी मुखास्त्र को कब्जे में लेकर उसे परमाणु ब्लैकमेल करने में या अमेरिका में कहीं फोड़ने में इस्तेमाल कर सकते हैं, तो उस समय पैदा होने वाली चिंता के स्तर की जरा कल्पना कीजिए जब इस्लामाबाद में वाकई में जिहादियों का राज होगा।"
किताब कहती है कि ऐसी स्थिति में अमेरिका विशेष रूप से प्रशिक्षित अपनी कमांडो इकाई की तैनाती कर पहले हमला करने का निर्णय लेगा।
किताब में कहा गया है, "स्थिति की नजाकत सम्भवत: इस बात की मांग करे कि अमेरिका पाकिस्तान को जिहादियों के चंगुल से मुक्त कराने की कोशिश करे।"
किताब में आगे कहा गया है, "हो सकता है इस प्रक्रिया में वायु सेना के जरिए पाकिस्तानी सशस्त्र बलों की बची-खुची शक्ति को नष्ट कर दिया जाए। लेकिन कट्टरपंथी इस्लामवादियों के हाथों से देश का जमीनी नियंत्रण छीनने में पर्याप्त मदद की जरूरत होगी।"
किताब ने कहा है कि जाहिरतौर पर इसमें भारत का सहयोग लिया जाएगा। पुस्तक में लिखा गया है, "भारत-अमेरिका गठबंधन, अफगानिस्तान की स्थायी स्वतंत्रता के अनुभव को एक बड़े पैमाने पर दोहराते हुए देख सकता है। इसमें अमेरिका हवाई शक्ति मुहैया कराएगा और भारत जमीनी संघर्ष की जिम्मेदारी सम्भालेगा।"
फिलहाल एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे श्मिट का कहना है कि इस बात का कयास लगा पाना फिलहाल कठिन है कि भारतीय सेना, पाकिस्तान में कितनी दूर तक जाना चाहेगी। "क्या वे पूरे देश पर कब्जा करना चाहेंगे, या सिंधु तक ही अपना अभियान रोक देना चाहेंगे?"
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