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This Article is From Apr 28, 2011

'सरकार को पीएसी की रिपोर्ट को गंभीरता से लेना होगा'

नई दिल्ली: टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता मामले में लोक लेखा समिति (पीएसी) की मसौदा रिपोर्ट पर उठे विवाद के बीच संसदीय मामलों के विशेषज्ञों की इस बारे में एकराय है कि संसदीय समिति की सिफारिशों को आमतौर पर स्वीकार किया जाता है या कम से कम सरकार की ओर से गंभीरता से लिया जाता है। संविधान एवं संसदीय मामलों के विशेषज्ञों का हालांकि कहना है कि पीएसी का स्वरूप सिफारिश पेश करने का है जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती है। लेकिन पारंपरिक तौर पर सरकार इस समिति की ओर से प्रस्तुत अधिकांश रिपोर्ट को स्वीकार करती है। सरकार को इसकी रिपोर्ट पर तीन महीने के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट पेश करनी होती है। जाने माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष काश्यप ने कहा, यह बात लिखित में बतानी होती है कि सरकार पीएसी की कुछ सिफारिशों को क्यों नहीं स्वीकार कर रही है, इसके बाद पीएसी फिर इस पर विचार करती है। अगर संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है तो पीएसी अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को भेजती है, इसके अलावा इसकी एक प्रति सरकार को भी भेजी जाती है। काश्यप ने कहा, आमतौर पर सरकार इसकी सिफारिशों को स्वीकार करती है। उन्होंने कहा कि पीएसी सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित संसदीय समिति है। इस विचार से सहमत होते हुए, लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने कहा कि संसदीय आचार और पारंपरा के मुताबित पीएसी की अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार किया जाता है या कम से कम गंभीरता से लिया जाता है। उन्होंने कहा कि पीएसी किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के खिलाफ कार्रवाई की कानूनी या कोई अन्य तरह कर सिफारिश कर सकती है या भविष्य के संबंध में प्रणालीगत बदलाव का सुझाव दे सकती है। उनका मनना है कि टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामला समिति के समक्ष आए सबसे संवेदनशील मामलों में है। गौरतलब है कि इस समिति का गठन 1921 में ब्रिटिश शासन के दौरान मेंटेग्यू.चेम्सफोर्ड सुधार के मद्देनजर किया गया था। देश में 26 जनवरी 1950 को संविधान के गठन के साथ ही इसके स्वरूप में काफी बदलाव किये गए। आचारी ने कहा, समय के साथ पीएसी की भूमिका में काफी विस्तार हुआ है। गौरतलब है कि 21 सदस्यीय पीएसी में कांग्रेस के सात प्रतिनिधि, भाजपा के चार, अन्नाद्रमुक और द्रमुक के दो-दो तथा शिवसेना, बीजद, जदयू, सपा, बसपा और माकपा के एक-एक सदस्य हैं। मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में तैयार मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री को घेरे में लेते हुए कहा गया है कि पीएमओ ने परोक्ष रूप से राजा को उसके कार्यो को आगे बढ़ाने की हरी झंडी दे दी। मसौदा रिपोर्ट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को अपनी सिफारिशों में राजस्व नुकसान के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने की बजाए इस विषय को समाप्त माने जाने की सिफारिश की। सत्तारूढ पक्ष के सदस्यों ने इसे दुर्भावना से प्रेरित बताते हुए इसे खारिज कर दिया।

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