- आर्कटिक क्षेत्र ने अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 के बीच अपने इतिहास का सबसे गर्म साल दर्ज किया है
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से नदियों का रंग लाल-नारंगी हो रहा है, जिससे पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है
- मार्च 2025 में समुद्री बर्फ का स्तर पिछले 47 वर्षों में सबसे कम पाया गया और बर्फ की मोटाई 28 प्रतिशत घट गई है
आर्कटिक क्षेत्र, जिसे दुनिया का सबसे ठंडा इलाका माना जाता है, अब एक अभूतपूर्व जलवायु संकट के मुहाने पर खड़ा है. NOAA (नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन) की 2025 की सालाना रिपोर्ट कार्ड ने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को चौंका दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, आर्कटिक में अब 'सर्दी' के मायने बदल रहे हैं और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है. आर्कटिक की सैकड़ों नदियों और धाराओं का रंग अचानक चमकदार लाल-नारंगी (Rusting) होने लगा है. वैज्ञानिक इसके पीछे किसी केमिकल प्रदूषण को नहीं, बल्कि पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) के पिघलने को जिम्मेदार मान रहे हैं.
125 सालों का टूटा रिकॉर्ड: गर्मी की चपेट में आर्कटिक
अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 के बीच आर्कटिक ने अपने इतिहास का सबसे गर्म साल दर्ज किया है. पिछले 125 वर्षों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए, यह क्षेत्र अब वैश्विक औसत से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है. बीते 10 साल आर्कटिक के इतिहास के सबसे गर्म दशक रहे हैं. मार्च 2025 में समुद्री बर्फ का स्तर पिछले 47 सालों में सबसे कम पाया गया. पिछले दो दशकों में बर्फ की मोटाई में 28% की कमी आई है.

क्या है रस्टिंग?
जमीन में हजारों सालों से जमे हुए लोहे के खनिज, तापमान बढ़ने और बर्फ पिघलने के कारण अब रिसकर नदियों में मिल रहे हैं. इसके कारण पानी की क्वालिटी खराब हो रही है और 200 से ज्यादा नदियां इसकी चपेट में हैं.
'एटलांटिफिकेशन' और बदलता इकोसिस्टम
आर्कटिक में न केवल बर्फ पिघल रही है, बल्कि समुद्र का मिजाज भी बदल रहा है. अटलांटिक महासागर का गर्म पानी अब उत्तर की ओर आर्कटिक में प्रवेश कर रहा है. गर्म पानी के कारण प्लैंकटन की उत्पादकता तो बढ़ी है, लेकिन आर्कटिक की मूल प्रजातियों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है. अकेले 2025 में ग्रीनलैंड से 129 अरब टन बर्फ बह गई, जो वैश्विक समुद्र स्तर (Sea Level) को बढ़ाने के लिए पर्याप्त है.

वैश्विक तबाही की आहट
सीनियर वैज्ञानिक मैथ्यू ड्रुकनमिलर के अनुसार, आर्कटिक का पिघलना सिर्फ एक क्षेत्रीय समस्या नहीं है. इसके परिणाम पूरी दुनिया को भुगतने होंगे. तटीय शहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा. जंगली जानवरों (जैसे पोलर बियर और रेंडियर) के लिए खाना ढूंढना मुश्किल होगा. बेमौसम बारिश, बाढ़ और भूस्खलन (Landslides) की घटनाओं में भारी वृद्धि होगी.
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