मोदी जी, सूचना क्रांति से पहले इन बंदरों से निपटना होगा!

 

वाराणसी : सूचना क्रांति को भारत की जद में पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने भले ही 1800 करोड़ डॉलर लगाने की योजना बनाई हो, लेकिन समस्याएं जिनसे निपटने में उसे एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, वे हैं- ट्रैफिक से लदे पड़े अस्त-व्यस्त शहर, बिजली की कमी और बंदर।

3 हजार साल पुराने शहर वाराणसी में कई हिन्दू यह सोचकर आते हैं कि यहां मौत हुई तो मोक्ष मिलेगा। सांस्कृतिक रूप से संपन्न यह शहर बंदरों का भी गढ़ है। ये बंदर मंदिरों में रहते हैं और उन्हें यहीं पर खाना-पीना मिलता रहता है। भक्तों द्वारा दी गईं खाने-पीने की चीजों के चलते पेट भरने की इन्हें कोई दिक्कत नहीं होती।

ऐसे में यही बंदर फाइबर ऑप्टिक तारों से लटके-झूलते भी रहते हैं। यहां तक कि तारों को खा भी जाते हैं। ये गंगा नदी के किनारों से लेकर पूरे शहर में उत्पात मचाए रहते हैं। कम्युनिकेशन्स इंजीनियर एपी श्रीवास्तव ने कहा, 'हम मंदिरों को यहां से नहीं हटा सकते, न ही यहां पर किसी चीज को मॉडिफाई कर सकते हैं। सबकुछ अच्छा खासा बना बनाया है। लेकिन बंदर अपने उत्पात से तार बरबाद कर देते हैं और तारों को खा भी जाते हैं।

श्रीवास्तव लोकल जिलों में नए कनेक्शन्स का एक्सपेंशन प्लान देख रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी टीम को नदी के पास लगे केबल के तारों को 2 महीने के भीतर रिप्लेस करना पड़ गया, क्योंकि बंदर इन्हें चबा चुके थे। अब उनकी टीम कोई विकल्प तलाश रही है। 20 लाख से अधिक की आबादी वाले इस शहर में अंडरग्राउंड केबल डालना टेढ़ी खीर है। बंदरों को भगाने या पकड़ने की कोशिशों से लोग बुरा मानेंगे और मंदिर जाने वाले लोगों की इससे अच्छी खासी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।

वाराणसी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है। 2014 के लोकसभा चुनावों में वह यहां से जीते थे। यहां बिजली की कमी के चलते वैसे ही सार्वजनिक स्थलों पर स्टेबल वाई-फाई दिए जाने में दिक्कत आ रही है, ऊपर से बंदरों के उत्पात से हालात और बदतर हुए हैं। भारत के अन्य शहरों समते वाराणसी में गर्मियों में कई कई घंटों तक पावर कट आम बात है।

मोदी सरकार ने तीन साल में देश के 2,50,000 गांवों को 7,00,000 किलोमीटर के ब्रॉडबैंड केबल से जोड़ने का वादा किया है। इसके अलावा 100 स्मार्ट सिटीज बनाने का वादा किया है, वह भी 2020 तक। एजुकेशन और हेल्थ जैसी सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म तक लाने का वादा किया गया है, ताकि इन तक लोगों की ज्यादा से ज्यादा पहुंच हो सके और जिम्मेदारी भी बने। लेकिन वाराणसी में यह सब मुहैया करवाया कैसे जाए।

विदेशी टेक्नॉलजी कंपनियां मोदी के इन सब वादों में डिजिटल फ्यूचर देख रही हैं और भारतीय जरूरतों के मुताबिक अपने प्रॉडक्ट ढाल रही हैं। सिस्को इंडिया के कंट्री हेड दिनेश मल्कानी के मुताबिक, हमने भारतीय पर्यावरणीय जरूरतों के मुताबिक आउटडोर वाई-फाई-एक्सेस रूटर तैयार किए हैं। देश के अस्त व्यस्त शहरों को टेक्नॉलजी के लिहाज से अपग्रेड करना अपने आप में एक उलझाऊ टास्क तो है ही। वाराणसी के अर्बन प्लानिंग एक्सपर्ट विनोद कुमार त्रिपाठी के मुताबिक, मोदी सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उनके साथ जरूरी है कि अच्छी खासी इन्वेस्टमेंट भी की जाए ताकि हाउसिंग, रोड्स और कूड़े-कचरे का मैनेजमेंट हो सके।

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फरवरी से मिल रही फ्री वाई फाई सेवा के चलते लोगों को आर्थिक हालत तो बेहतर हो रही है। बोट चलाने वाले संदीप मांझी इसके जरिए अपना स्थानीय बिजनस प्रमोट कर रहे हैं। उनके मुताबिक, वाराणसी आज भी सीवरेज के लिए 500 साल पुराने खस्ताहाल ड्रेनेज सिस्टम पर डिपेंड है। कार, रिक्शा और बैलगाड़ियां संकरी गलियों में निकलने के लिए अच्छे खासे संघर्ष से जूझती रहती हैं। गंदगी और कूड़े की भरमार है और सरकार को इन चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए। नदी के पास खड़े 20 साल के एक युवक ने कहा, 'टूरिस्ट्स के लिए फ्री वाई फाई अच्छी बात है लेकिन मुझे लगता है कि अधिकारियों को घाटों की साफ सफाई के बारे में भी सोचना चाहिए।'