Mirza Ghalib Shayari: ऊर्दू के सबसे मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) की आज 221वीं जयंती (Mirza Ghalib's 221th Birthday) है. 'इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के' या फिर 'दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है'. जैसी प्रसिद्ध शायरी के लिए पहचाने जाने वाले मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) ने इससे बढ़कर शेर, शायरियां, रुबाई, कसीदा और किताबें लिखें हैं. आप भी इस खास मौके पर पढ़ें उनकी ये बेहद ही खूबसूरत नज्में पढ़ें, जिन्हें पढ़कर आपको एक बार फिर मिर्ज़ा ग़ालिब से प्यार हो जाएगा.
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बता दें, साल 2017 में गूगल (Google) ने शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 220वीं जयंती (Mirza Ghalib 220th Birthday) पर उन्हें डूडल (Doodle) से श्रद्धांजलि दी थी. वहीं, उन पर बॉलीवुड में सोहराब मोदी (Sohrab Modi) की ‘मिर्ज़ा ग़ालिब (1954)' नाम की फिल्म (Mirza Ghalib Film, 1954) बनीं. इसके साथ ही टेलीविजन पर गुलज़ार का टीवी सीरियल ‘मिर्ज़ा ग़ालिब (1988)' (Mirza Ghalib TV Serial, 1988) भी काफी प्रसिद्ध रहा.
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बता दें, मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ ग़ालिब (Mirza Asadullah Baig Khan Ghalib) था. इस महान शायर का जन्म 27 दिसंबर 1796 में उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ. वहीं, इन्होंने आखिरी सांस 15 फरवरी 1869 में अपनी ग़ालिब की हवेली, चांदनी चौक (Ghalib ki Haveli, Chandni Chowk) में ली.
यहां पढ़ें उनकी शायरियां... (Mirza Ghalib Shayari)
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी की हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है
अक़्ल वालों के मुक़द्दर में यह जुनून कहां ग़ालिब
यह इश्क़ वाले हैं, जो हर चीज़ लूटा देते हैं...
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूंढ़ते रहे
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा
नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख
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