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केरल में मिला बेहद दुर्लभ प्रजाति का विशालकाय कछुआ, लुप्त हो रही प्रजाति को लेकर हुआ ये बड़ा खुलासा

अध्ययन में आगे कहा गया है कि रिसर्चर्स की टीम ने उन स्थानीय लोगों से बातचीत की जो उन्हें नदी तक ले गए थे. इसे ओरिक्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है.

केरल में मिला बेहद दुर्लभ प्रजाति का विशालकाय कछुआ, लुप्त हो रही प्रजाति को लेकर हुआ ये बड़ा खुलासा
केरल में मिला बेहद दुर्लभ कछुआ

केरल (Kerala) में एक दुर्लभ प्रजाति के कछुए (Turtle) की खोज संरक्षणवादियों ने की है. बीबीसी के अनुसार, टीम में पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय के संरक्षणवादी शामिल थे और उन्होंने कैंटर के जाइंट सॉफ्टशेल कछुए (Cantor Giant Turtle) के घोंसले का पता लगाया. दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की नदियों की मूल निवासी इस प्रजाति को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है. पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय ने एक विज्ञप्ति में कहा कि कछुआ केरल में चंद्रगिरि नदी के तट पर पाया गया था. अध्ययन में आगे कहा गया है कि रिसर्चर्स की टीम ने उन स्थानीय लोगों से बातचीत की जो उन्हें नदी तक ले गए थे. इसे ओरिक्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है.

इस स्टडी का नेतृत्व इंग्लैंड में पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय और जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन, मियामी विश्वविद्यालय, जर्मनी में सेनकेनबर्ग सोसाइटी फॉर नेचर रिसर्च में जूलॉजी संग्रहालय, अमेरिका में फ्लोरिडा म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री और भारतीय वन्यजीव संस्थान के संरक्षणवादियों ने किया था.

लुप्त हो रही ये प्रजाति

रिसर्चर्स ने स्टडी में कहा, "अपनी दुर्लभता और गुप्त प्रकृति के लिए जानी जाने वाली यह प्रजाति लंबे समय से संरक्षणवादियों के बीच आकर्षण और चिंता का विषय रही है." इसमें कहा गया है, "आवास के विनाश ने इसे इसके पर्यावरण से गायब कर दिया है. मांस के लिए स्थानीय लोगों द्वारा इन्हें मार भी दिया जाता है और अक्सर मछली पकड़ने के गियर में फंसने पर मछुआरों द्वारा इन्हें मार दिया जाता है."

विश्वविद्यालय के एक विशेषज्ञ डॉ. फ्रेंकोइस कैबाडा-ब्लैंको ने बीबीसी को बताया, "वर्षों से, कैंटर कछुए का अस्तित्व भारत की हलचल भरी जैव विविधता की पृष्ठभूमि में बमुश्किल एक अफवाह रही है, इसे देखना इतना दुर्लभ है कि कछुए की उपस्थिति ही भूत जैसी लगती है." विशेषज्ञ ने आगे कहा कि टीम "समुदाय को वास्तव में प्रभावी ढंग से जोड़ने में सक्षम थी".

विश्वविद्यालय ने कहा कि इस खोज से मादा घोंसले का पहला दस्तावेजीकरण हुआ और बाढ़ वाले घोंसलों से अंडों को बचाया गया. "बाद में बच्चों को नदी में छोड़ दिया गया."

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