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This Article is From Oct 07, 2015

डिप्रेशन से बचना है तो कॉल-ईमेल छोड़ें, दोस्तों संग गुजारें समय

डिप्रेशन से बचना है तो कॉल-ईमेल छोड़ें, दोस्तों संग गुजारें समय
प्रतीकात्मक तस्वीर
न्यू यॉर्क: पुराने जमाने के अपेक्षाकृत आरामदायक और शांत जीवन जीने वालों के लिए यह खबर हवा के एक ताजे झोंके के समान है। शोध करने वालों ने आखिरकार माना है कि अवसाद यानी डिप्रेशन से बचने के लिए फोन कॉल करने और ईमेल भेजने से कहीं बेहतर है कि दोस्तों या परिवार के साथ आमने-सामने की मुलाकात की जाए।

ओरेगन हेल्थ ऐंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि जो लोग अपने परिवार और दोस्तों से नियमित रूप से मिलते रहते हैं, उनमें उन लोगों के मुकाबले अवसाद के लक्षण कम पाए गए जो लोगों से फोन या ई-मेल के जरिए बात करते हैं।

लोगों से आमने-सामने मिलने से होने वाले फायदे...
अध्ययन में यह भी पता चला कि लोगों से आमने-सामने मिलने से होने वाले फायदे काफी बाद तक अपना असर दिखाते हैं। मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर एलन टिओ ने कहा, 'यह लोगों को अवसाद से बचाने के लिए अपने खास रिश्तेदारों और दोस्तों से संवाद के तौर तरीके के बारे में मिली जानकारी का पहला रूप है।'

टीम ने शोध में पाया कि सामाजिक रूप से मिलने जुलने के सभी तरीके एक समान असर नहीं छोड़ते। टिओ ने कहा, 'परिवार या दोस्तों के साथ फोन कॉल या डिजिटल संवाद का अवसाद से बचाने में उतना असर नहीं है जितना प्रत्यक्ष मिलने-जुलने में है।'

11 हजार वयस्कों पर किया गया अध्ययन...
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के लांगीट्यूडनल हेल्थ ऐंड रिटायरमेंट स्टडी में टिओ और उनके सहयोगियों ने 50 और इससे अधिक उम्र के 11000 व्यस्कों का अध्ययन और परीक्षण किया। अध्ययन करने वालों ने फोन और ई-मेल से लोगों से संपर्क रखने वालों पर ध्यान केंद्रित किया। दो साल तक देखा कि ये कितने अंतराल पर इन जरियों से संवाद करते हैं। उन्होंने पाया कि लोगों से आमने-सामने न मिलने वाले इन लोगों के दो साल बाद अवसादग्रस्त होने की संभावना दोगुनी हो गई है।

ऐसे बचा जा सकता है अवसाद से...
अध्ययन में पाया गया कि हफ्ते में कम से कम तीन बार परिवार और दोस्तों से प्रत्यक्ष मिलने वालों में दो साल बाद अवसाद का शिकार होने की संभावना न्यूनतम स्तर पर होती है। जो लोग प्रत्यक्ष तो मिलते हैं लेकिन कम मिलते हैं उनमें इसकी संभावना बढ़ जाती है। यह अध्ययन अमेरिकन जेरिएट्रिक्स सोसाइटी के आनलाइन जरनल में प्रकाशित हुआ है।

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