मजदूर इदरीस की पोस्ट फेसबुक पर वायरल हो रही है....
नई दिल्ली:
"मैंने अपने बच्चों को कभी नहीं बताया कि मैं क्या करता हूं. मैंने कभी नहीं चाहता था कि उन्हें इसके बारे में पता चले क्योंकि उन्हें भी मेरी तरह शर्मिंदगी महसूस होगी." ये दास्तां एक ऐसे मजदूर की है जिसने पाई-पाई जोड़कर अपनी बेटी को पढ़ाया. इस मजदूर की पोस्ट फेसबुक पर वायरल हो रही है. उसकी मर्मस्पर्शी कहानी फेसबुक पर हजारों लोगों के दिल को छू गई है. इस मजदूर की संघर्ष भरी दास्तां और बेटी के प्रति अगाध प्रेम को कहानी को सामने लाने का प्रयास मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट जीएमबी आकाश ने अपने फेसबुक पेज पर किया है. 6 मई को जब से पोस्ट शेयर की गई, तब से लाखों लोगों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है. एक लाख से ज्यादा बार इस पोस्ट को शेयर किया जा चुका है.
पोस्ट में इदरीस ने अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए की गई हाड़तोड़ मेहनत के बारे में बताया है. वह अपनी बेटियों को बताया करता था कि वह मजदूरी का काम करता है जबकि वह सफाई मजदूर था और घर पहुंचने से पहले सार्वजनिक शौचालय में स्नान करके घर पहुंचता था ताकि उसके परिवार के सदस्य यह न जान सकें कि वह पैसे कमाने के लिए क्या करता है. उसने अपनी गाढ़ी कमाई से बेटियों को पढ़ाया.
उसने बताया, "मैं चाहता था कि मेरे बच्चे सम्मान के साथ दूसरों के सामने खड़े हों. मैं नहीं चाहता था कि कोई उन्हें नीचा दिखाए जैसा कि मुझे प्रतिदिन देखना पड़ता था. लोग हमेशा मुझे अपमानित करते थे."
हालांकि एक दिन ऐसा आया जब उसने अपने पेशे के बारे में अपनी बेटियों को बता दिया. यह दिन था जब उसे अंतिम बार अपनी बेटी के कॉलेज की फीस जमा करनी थी लेकिन पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया था. यह सोचकर कि अपनी बेटी को वह क्या बताएगा, उसने उस दिन काम नहीं किया.
इदरीस ने याद करते हुए बताया, सौभाग्य से उस दिन उसके साथी ने अपनी मजदूरी उसे दे दी. जब उसने लेने से इनकार किया तो दोस्त ने कहा, "यदि जरूरत हुई तो हम दोनों भूखे रह लेंगे लेकिन बेटी को स्कूल जाना चाहिए." उस दिन मैं दिनभर नहा नहीं पाया और सफाई मजदूर की तरह घर पहुंचा. तब तक उसकी मेहनत सफल हो गई थी. सभी बेटियों की शिक्षा पूरी होने वाली है. सभी बेटियां पार्ट टाइम जॉब करके घर का खर्च चलाने लगी हैं और अब उसे काम करने के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है.
हालांकि उसकी बेटी उन लोगों को शुक्रगुजार है जिन्होंने उसकी पढ़ाई में मदद की. इदरीस ने बताया कि अब उसकी बेटी उसके सभी साथियों को घर से खाना ले जाकर खिलाती है. उसका कहना है, "वे हंसते हैं और पूछते हैं कि वह उन्हें क्यों खिलाती है." इस पर मेरी बेटी का कहना है, "आज मैं जो कुछ भी हूं, आप सभी की बदौलत हूं. भगवान से प्रार्थना करती हूं कि मुझे आप सभी को हर दिन इसी तरह खिलाने का मौका मिले."
अंत में, वह बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से लिखते हैं, "अब मुझे लगता है कि मैं गरीब आदमी नहीं हूं. जिसके पास ऐसे बच्चे हों, वह गरीब कैसे हो सकता है."
हालांकि हम इस कहानी की सत्यता की पुष्टि नहीं करते.
पोस्ट में इदरीस ने अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए की गई हाड़तोड़ मेहनत के बारे में बताया है. वह अपनी बेटियों को बताया करता था कि वह मजदूरी का काम करता है जबकि वह सफाई मजदूर था और घर पहुंचने से पहले सार्वजनिक शौचालय में स्नान करके घर पहुंचता था ताकि उसके परिवार के सदस्य यह न जान सकें कि वह पैसे कमाने के लिए क्या करता है. उसने अपनी गाढ़ी कमाई से बेटियों को पढ़ाया.
उसने बताया, "मैं चाहता था कि मेरे बच्चे सम्मान के साथ दूसरों के सामने खड़े हों. मैं नहीं चाहता था कि कोई उन्हें नीचा दिखाए जैसा कि मुझे प्रतिदिन देखना पड़ता था. लोग हमेशा मुझे अपमानित करते थे."
हालांकि एक दिन ऐसा आया जब उसने अपने पेशे के बारे में अपनी बेटियों को बता दिया. यह दिन था जब उसे अंतिम बार अपनी बेटी के कॉलेज की फीस जमा करनी थी लेकिन पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया था. यह सोचकर कि अपनी बेटी को वह क्या बताएगा, उसने उस दिन काम नहीं किया.
इदरीस ने याद करते हुए बताया, सौभाग्य से उस दिन उसके साथी ने अपनी मजदूरी उसे दे दी. जब उसने लेने से इनकार किया तो दोस्त ने कहा, "यदि जरूरत हुई तो हम दोनों भूखे रह लेंगे लेकिन बेटी को स्कूल जाना चाहिए." उस दिन मैं दिनभर नहा नहीं पाया और सफाई मजदूर की तरह घर पहुंचा. तब तक उसकी मेहनत सफल हो गई थी. सभी बेटियों की शिक्षा पूरी होने वाली है. सभी बेटियां पार्ट टाइम जॉब करके घर का खर्च चलाने लगी हैं और अब उसे काम करने के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है.
हालांकि उसकी बेटी उन लोगों को शुक्रगुजार है जिन्होंने उसकी पढ़ाई में मदद की. इदरीस ने बताया कि अब उसकी बेटी उसके सभी साथियों को घर से खाना ले जाकर खिलाती है. उसका कहना है, "वे हंसते हैं और पूछते हैं कि वह उन्हें क्यों खिलाती है." इस पर मेरी बेटी का कहना है, "आज मैं जो कुछ भी हूं, आप सभी की बदौलत हूं. भगवान से प्रार्थना करती हूं कि मुझे आप सभी को हर दिन इसी तरह खिलाने का मौका मिले."
अंत में, वह बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से लिखते हैं, "अब मुझे लगता है कि मैं गरीब आदमी नहीं हूं. जिसके पास ऐसे बच्चे हों, वह गरीब कैसे हो सकता है."
हालांकि हम इस कहानी की सत्यता की पुष्टि नहीं करते.
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