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This Article is From Aug 03, 2017

हैती में समलैंगिक विवाहों पर लगी रोक, भारत में मान्यता के लिए कानूनी लड़ाई जारी

हैती में कानून से समलैंगिकता के समर्थकों पर भी गिरी गाज, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने पर रोक

हैती में समलैंगिक विवाहों पर लगी रोक, भारत में मान्यता के लिए कानूनी लड़ाई जारी
हैती की संसद ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दे दी है.
नई दिल्ली: हैती में समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. इसके साथ ही समलैंगिकता के समर्थन में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने पर भी रोक लगा दी गई है.  हैती के सीनेट में इस बारे में कानून पारित कर दिया गया है. सीनेट के अध्यक्ष का कहना है कि यह कानून लोगों की इच्छा को दर्शाता है. भारत में भी समलैंगिक विवाहों को मान्यता की मांग को लेकर कानूनी लड़ाई जारी है. यहां सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध माना है.

हैती में पिछले मंगलवार को सीनेट में पारित एक विधेयक के मुताबिक समलैंगिक विवाह के पक्षकारों, सहायक पक्षकारों और सभी सहयोगियों को तीन साल जेल की सजा और आठ हजार डॉलर के जुर्माने की सजा दी जा सकती है.

सीनेट के अध्यक्ष योरी लाटोर्टू ने बताया, ‘‘सीनेट के सभी सदस्यों ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया, जो सीनेट सदस्यों द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादों को प्रतिबिंबित करता है.’’ हैती के संविधान ने एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना की है, लेकिन देश में धार्मिक विश्वास गहरे पैठे हुए हैं.

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समलैंगिकता को पश्चिमी विचारधारा बताते हुए लाटोर्टू ने कहा, ‘‘हालांकि राज्य धर्मनिरपेक्ष है, लेकिन यह लोगों का विश्वास है जो अधिसंख्यक हैं.’ उन्होंने कहा कि देश को उसके मूल्यों और परंपराओं पर ध्यान देना होता है. दूसरे देशों में कुछ लोग इसे अलग तरह से देखते हैं, लेकिन हैती में इसे ऐसे ही देखा जाता है.

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यह विधेयक अब विमर्श के लिए के प्रतिनिधि सभा में जाएगा, हालांकि इसका कानून बनना लगभग तय है.

भारत में समलैंगिक संबंधों को लेकर स्थिति
भारत में लंबे समय से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की लड़ाई लड़ी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाहों को अवैध करार दिया है. भारत में आईपीसी की धारा 377 को समाप्त करने पर ही समलैंगिक विवाहों को मान्यता दी जा सकती है. इस कानून के तहत समलैंगिक संबंध अवैध हैं.  

दिसंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली होईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया था जिसमें दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था. उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उच्च न्यायालय ने अपने प्राधिकार का उल्लंघन किया और 1860 का कानून अब भी वैध है. पूर्व में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की योजना बनाई थी और इस फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश भी लाने पर विचार किया था लेकिन वह इस पर बात आगे नहीं बढ़ सकी.

VIDEO : भारत में बदलती धारणा


किस-किस देश में है समलैंगिक विवाह की मंजूरी
समलैंगिक विवाह नीदरलैंड, बेल्जियम, स्पेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका,नार्वे, जर्मनी और अमेरिका में मान्य हैं. ताइवान एशिया का पहला ऐस देश है जहां समलैंगिक विवाहों को मान्यता दी गई है.
(इनपुट एजेंसी से भी)

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