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राजस्थान में नि:शुल्क दवा योजना का लाभ रोजाना करीब दो लाख लोग उठा रहे हैं। राज्य में 15,355 दवा वितरण केंद्रों पर पिछले एक साल में करीब सात करोड़ लोग पहुंचे। छह करोड़ 86 लाख की आबादी वाला राजस्थान इस तरह की नि:शुल्क योजना चलाने वाला पहला राज्य है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले साल दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर इस योजना की शुरुआत की थी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने रविवार को बताया, "इस योजना का लाभ प्रतिदिन करीब दो लाख लोगों को मिल रहा है। कई मरीजों को इसका लाभ एक बार से अधिक मिल चुका है। राज्य में बने 15,355 दवा वितरण केंद्रों और सभी सरकारी अस्पतालों में उन्हें आवश्यक दवाएं नि:शुल्क दी जा रही हैं।"
अधिकारी ने दावा किया कि छह करोड़ 86 लाख की आबादी वाला राजस्थान इस तरह की नि:शुल्क योजना इतने बड़े पैमाने पर चलाने वाला पहला राज्य है। उन्होंने कहा, "योजना के दूसरे साल सरकार ने इसके लिए 300 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। मुख्यमंत्री ने दवा वितरण केंद्रों की संख्या और इस योजना के तहत दी जाने वाली दवाओं की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।"
अधिकारी ने कहा कि इस योजना के तहत करीब 400 जेनरिक दवाएं तथा शल्य चिकित्सा के उपकरण निशुल्क वितरण के लिए उपलब्ध हैं। ये दवाएं मरीजों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों तथा चिकित्सा कॉलेजों में नि:शुल्क दी जाती हैं।
राज्य सरकार, सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क जांच की व्यवस्था कराने की योजना भी बना रही है। मुख्यमंत्री गहलोत पहले ही आश्वस्त कर चुके हैं कि स्वास्थ्य से सम्बंधित किसी भी योजना में वित्तीय समस्या नहीं आएगी।
मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा, "यदि लोगों को नि:शुल्क दवा और अच्छी देखभाल दी जाती है तो सरकारी अस्पतालों पर उनका भरोसा बढ़ेगा।"
हाल ही में एक कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि राजस्थान मॉडल की सफलता को देखते हुए केंद्र सरकार इस योजना को पूरे देश में लागू करने के बारे में सोच रही है।
नि:शुल्क दवा वितरण योजना शुरू किए जाने के कारण पिछले एक साल में इलाज के लिए सरकारी अस्पताल पहुंचने वाले लोगों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "समाज का हर व्यक्ति इस योजना का लाभ पाने का पात्र है। गरीबों को प्राथमिकता दी जाती है। गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों और समाज के कमजोर तबके के लोगों को स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को लेकर अब चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।"
राज्य सरकार ने दो अक्टूबर, 2011 को महात्मा गांधी की 142वीं जयंती पर आधिकारिक रूप से यह योजना शुरू की थी।
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