केपलर टेलिस्कोप ने ऐसा ग्रह ढूंढ निकाला है जिसमें सात घंटे होते ही साल खत्म हो जाता है.
नई दिल्ली:
धरती पर 365 दिन खत्म होने पर एक साल खत्म होता है. इसमें गर्मी, सर्दी, बारिश और बसंत है. लेकिन केपलर टेलिस्कोप ने ऐसा ग्रह ढूंढ निकाला है जिसमें सात घंटे होते ही साल खत्म हो जाता है. इसे अंतरिक्ष का सबसे तेज प्लेनिट कहा जा रहा है. इस ग्रह के ऑर्बिट पीरियड को जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. Phys.org की रिपोर्ट के मुताबिक इस प्लेनिट का ऑर्बिट पीरियड महज 6.7 घंटों के लिए ही होता है. इस प्लेनिट का नाम EPIC 246393474 b है और इस ग्रह का दूसरा नाम C12_3474 b भी है.
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प्लेनिट हंटिंग टेलिस्कोप है केपलर
केपलर को प्लेनिट हंटिंग टेलिस्कोप कहा जाता है. वो अब तक 2300 ग्रह की खोज कर चुका है. अब उसने धरती के पास ही इस ग्रह की खोज की है. 2013 में दो रिएक्शन फेल होने के बाद केपलर ने k2 मिशन की शुरुआत की थी. वैज्ञानिकों की मानें तो स्टेलर रेडिएशन के चलते यहां का वातावरण पूरी तरह खराब हो चुका है. ये ग्रह इस लिए भी खास है क्योंकि इसे धरती से 5 गुना बड़ा बताया जा रहा है. इस ग्रह में भारी पत्थर हैं जिसमें 70 प्रतिशत आयरल होने की संभावना है.
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यहा रहना काफी मुश्किल
अभी तक पता नहीं चल पाया है कि इस ग्रह में कितने घंटे का एक दिन होगा. वैज्ञानिक डे-टू-इयर के रेशो से पता लगाने में कामयाब हो पाए हैं कि यहां 7 घंटे का एक साल होगा. यहां का वातावरण भी का भी खराब है, ऐसे में यहां रहना मुश्किल है. फिलहाल वैज्ञानिक इस ग्रह पर रिसर्च कर रहे हैं.
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केपलर को प्लेनिट हंटिंग टेलिस्कोप कहा जाता है. वो अब तक 2300 ग्रह की खोज कर चुका है. अब उसने धरती के पास ही इस ग्रह की खोज की है. 2013 में दो रिएक्शन फेल होने के बाद केपलर ने k2 मिशन की शुरुआत की थी. वैज्ञानिकों की मानें तो स्टेलर रेडिएशन के चलते यहां का वातावरण पूरी तरह खराब हो चुका है. ये ग्रह इस लिए भी खास है क्योंकि इसे धरती से 5 गुना बड़ा बताया जा रहा है. इस ग्रह में भारी पत्थर हैं जिसमें 70 प्रतिशत आयरल होने की संभावना है.
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यहा रहना काफी मुश्किल
अभी तक पता नहीं चल पाया है कि इस ग्रह में कितने घंटे का एक दिन होगा. वैज्ञानिक डे-टू-इयर के रेशो से पता लगाने में कामयाब हो पाए हैं कि यहां 7 घंटे का एक साल होगा. यहां का वातावरण भी का भी खराब है, ऐसे में यहां रहना मुश्किल है. फिलहाल वैज्ञानिक इस ग्रह पर रिसर्च कर रहे हैं.
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