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This Article is From Feb 06, 2019

129 साल जिंदा रही ये महिला, सिर्फ एक ही दिन रह पाई खुश, ऐसा क्या हुआ था उस दिन

रूस सरकार ने इस बात की पुष्टी कि है कोकु सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रहे जोसेफ स्टालिन (Joseph Stalin) के समय की आखिरी महिला हैं. यह बात उनके पेंशन डॉक्यूमेंट्स से पता चली. जोसेफ स्टालिन साल 1929 से 1953 के बीच सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स (USSR) के तानाशाह रहे. 

129 साल जिंदा रही ये महिला, सिर्फ एक ही दिन रह पाई खुश, ऐसा क्या हुआ था उस दिन
129 साल की बूढ़ी महिला सिर्फ एक दिन ही रह पाई खुश, ऐसा क्या हुआ था उस दिन
रूस:

दुनिया की सबसे उम्रदराज महिला, जिनकी 129 साल की उम्र में मृत्यु हुई. मरने से पहले उन्होंने अपनी ज़िंदगी के कुछ राज़ खोले, जिसमें से सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि वो अपनी पूरी ज़िंदगी में सिर्फ एक ही दिन खुश रहीं. यानी लगभग 47085 दिनों में यह महिला सिर्फ 1 ही दिन खुश रही. बता दें, 129 साल में 47085 होते हैं. मरने से पहले उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया कि मौत के खौफ के बजाय उन्हें तमन्ना थीं कि वो जल्दी मर जाएं.

डेलीमेल के मुताबिक मामला रूस के चेचन्या शहर की कोकु इस्तम्बुलोवा (Koku Istambulova) का है. उन्होंने मरने से पहले बताया कि वो अपनी पूरी ज़िंदगी में सिर्फ एक ही दिन खुश रहीं और वो दिन था जब वो अपने घर में आईं. ये घर उन्होंने खुद अपने हाथों से बनाया. उनकी पूरी ज़िंदगी का यही सिर्फ एकलौता ऐसा दिन था जिस दिन वो खुश हुईं.

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इतना ही नहीं उनकी सबसे बड़ी शिकायत ये रही कि वो 129 सालों तक ज़िंदा क्यों रहीं, वो जल्दी क्यों नहीं मर गईं. उनका कहना था लंबी ज़िंदगी जीना बेहद मुश्किल है, खासकर तब जब आपकी आंखों के सामने आपके अपने मरें. 

बता दें, रूस सरकार ने इस बात की पुष्टी कि है कोकु सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रहे जोसेफ स्टालिन (Joseph Stalin) के समय की आखिरी महिला हैं. यह बात उनके पेंशन डॉक्यूमेंट्स से पता चली. जोसेफ स्टालिन साल 1929 से 1953 के बीच सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स (USSR) के तानाशाह रहे. 

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उस दौर में कोकु इस्तम्बुलोवा (Koku Istambulova) ने रूस में बहुत खून खराबा देखा. लाशों के ढेर, अपने दो बेटों की आंखों के सामने मौत और इंसानों के शरीर को जानवरों को खाते हुए देखना, जैसे भयानक मंज़र 129 साल की ज़िंदगी में देखे. इसी वजह से वो जीने से ज्यादा मरने की इच्छुक रहीं. युद्ध में अपने घर और अपनों को खोने के बाद सिर्फ वही दिन उनके लिए खुशी का था, जिस दिन उन्होंने खुद से अपने लिए घर बनाया और उसमें सुकून से रहने आईं. 

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