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शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष मिशन बार-बार क्यों टल रहा? जानें रॉकेट साइंस में गलती की कोई जगह क्यों नहीं

Shubhanshu Shukla's Space Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला समेत 4 अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस मिशन को एक बार फिर तकनीकी वजह से टाल दिया गया है. जल्द नए लॉन्चिंग टाइम की घोषणा की जाएगी.

Shubhanshu Shukla's Space Axiom-4 Mission: बार-बार क्यों टल रहा स्पेस मिशन

‘यह कोई रॉकेट साइंस थोड़ी है'... जब भी किसी काम को आसान बताना होता है, हम इस बात को बोलते हैं. यह बताता है कि रॉकेट साइंस कितना जटिल काम होता है और इसको अंजाम तक पहुंचाने के लिए दुनिया के सबसे तेज दिमागों को एक साथ काम करना होता है. और जब इस रॉकेट पर कोई इंसान बैठा होता है तो गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती. भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष नापने को तैयार हैं, वो अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बनने और इंटरनेशन स्पेस स्टेशन जाने वाले पहले भारतीय बनने को तैयार हैं. लेकिन उनका स्पेस मिशन, Axiom-4 मिशन एक बार फिर टाल (Axiom 4 Mission Launch) दिया गया है. 

नासा और ISRO की पार्टनरशिप में जा रहा यह प्राइवेट मिशन एलन मस्क की कंपनी SpaceX के रॉकेट (फाल्कन 9) और अंतरिक्ष यान (ड्रैगन) के जरिए पूरा होने वाला है लेकिन इसके लॉन्च को पांचवीं बार टाला गया है. इस बार SpaceX और संभवतः दुनिया के सबसे भरोसेमंद रॉकेट फाल्कन 9 में लिक्विड ऑक्सीजन का रिसाव पाया गया है. यह तो इसमें पाई गई तकनीकी समस्या का एक पहलू मात्र है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसे तमाम स्पेस मिशन में ऐसे कौन से रिस्क शामिल होते हैं जिसकी वजह से जब तक पूरी तरह श्योर नहीं हुआ जाता, मिशन लॉन्च नहीं किया जाता. चलिए समझने की कोशिश करते हैं.

यहां गलती की कोई गुंजाइश नहीं है…

सबसे पहले आपको इंसानों को अंतरिक्ष में ले जा रहे तीन स्पेस मिशन के बारे में बताते हैं जिसको याद करने पर आज भी रूह कांप जाती है.

  1. 27 जनवरी, 1967 को ग्राउंड टेस्ट के दौरान आग लगने से अपोलो I मिशन की तैयारी कर रहे तीन अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई.
  2. 28 जनवरी, 1986 को नासा का अंतरिक्ष यान चैलेंजर अपने 10वें मिशन पर लॉन्च हुआ था. लेकिन लिफ्टऑफ के केवल 73 सेकंड बाद, लाइव टेलीविजन कवरेज में दिखा की शटल टूट गया और दृश्य से गायब हो गया. इस हादसे में अंतरिक्ष यान पर सवार सभी 7 अंतरिक्ष यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई.
  3. 1 फरवरी 2003 को, नासा का शटल कोलंबिया पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसपर सवार सात-अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई जिसमें भारत की शान, कल्पना चावला (भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक) भी शामिल थीं.

जब किसी सेटेलाइट को लेकर जा रहा रॉकेट लॉन्च के दौरान या अपने मिशन के किसी पोजिशन पर बर्बाद होता है तो उससे मिशन को झटका लगता है, करोड़ों रुपयों और सालों की मेहनत बर्बाद होती है. लेकिन अगर वो स्पेस मिशन अपने साथ इंसानों को अंतरिक्ष में ले जा रहा होता है तो एक गलती का मतलब सीधे मौत होती है. स्पेस में बचने की संभावना शुन्य होती है. इसीलिए लॉन्च के पहले हर तरह से इस बात को लेकर आश्वस्त होना होता है कि कोई गलती नहीं होगी. स्पेस साइंस को इतना रिस्की बनाने में कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें पृथ्वी की कक्षा तक पहुंचने के लिए आवश्यक अत्यधिक ऊर्जा और अंतरिक्ष का दुर्गम वातावरण भी शामिल है.

रिस्क, रिस्क और सिर्फ रिस्क

दिल्ली से मुंबई की लगभग 1500 किमी की सड़क यात्रा की तुलना आप धरती से आसमां की ओर केवल 150 किमी की यात्रा से भी किसी भी कीमत पर नहीं कर सकते. दोनों में जमीन आसमां का फर्क है. अंतरिक्ष में जाने के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसको रॉकेट के नीचले हिस्से से प्रोड्यूस करना और खुद उसी रॉकेट के नोज (सबसे उपरी हिस्से) पर बैठना हर लिहाज से रिस्की होता है. खुद अंतरिक्ष का वातावरण एक अंतरिक्ष यान और उसके उसके चालक दल के लिए अन्य चुनौतियां पेश करता है, जैसे उच्च स्तर का रेडिएशन और उपर जाने में तेजी से बढ़ने वाला बड़े-बडे़ कक्षीय मलबे.

अगर आप अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक चले भी गए तो पृथ्वी की अपेक्षाकृत अनुकूल सीमा तक वापस जाना आसान नहीं है. वजह है कि पुनः प्रवेश के समय धरती के वातावरण से घर्षण (फ्रिक्शन) अत्यधिक तापमान उत्पन्न करता है जो अंतरिक्ष यान के बाहरी हिस्से को जला सकता है. आपके रॉकेट और अंतरिक्ष यान का एक भी स्क्रू ढीला नहीं हो सकता. गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती.

2003 के हादसे के बाद से आज 22 साल गुजर चुके हैं और स्पेस साइंस आज कहीं आगे बढ़ गयी है. अब रॉकेट और अंतरिक्ष यान न सिर्फ वापस आते हैं बल्कि उनका फिर से इस्तेमाल भी होता है. आज इंसानी स्पेस मिशन में कोई हादसे की खबर नहीं आती (टचवुड) तो इसकी सबसे बड़ी वजह टेक्नोलॉजी में डेवलपमेंट के साथ यह तथ्य भी है कि तैयारी हर तरह से की जाती है. लॉन्च के पहले बार-बार टेस्टिंग की जाती है, और तब तक की जाती है जब तक कि मिशन के लिए पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाया जाता. उम्मीद है शुभांशु जल्द नए लॉन्च टाइम के साथ मिशन Axiom-4 पर जाएंगे और भारत के लिए वो अनुभव लेकर लौटेंगे जो उसके पहले इंसानी स्पेस मिशन- गगनयान पर काम आएगा.

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