
Shubhanshu Shukla's Space Axiom-4 Mission: भारत इतिहास के दहलीज पर खड़ा है लेकिन इंतजार की घड़ी थोड़ी और बढ़ रही है. एक बार फिर एक भारतीय अंतरिक्ष को लांघने को तैयार है. राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में जाने के 41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जा रहा है. और खास बात यह है कि यह अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचने वाले पहले भारतीय के रूप में अपना नाम दर्ज करने को भी तैयार है. हम बात कर रहे हैं भारतीय वायुसेना के जांबाज टेस्ट पायलट शुभांशु शुक्ला की. 15 सालों तक एक कॉम्बैट पायलट रहे शुभांशु ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन, Axiom-4 पर जा रहे हैं. Axiom-4 मिशन की लॉन्चिंग भारतीय समयानुसार 11 जून को शाम के 5.30 बजे होनी थी लेकिन रॉकेट में तकनीकी खराबी की वजह से अभी लॉन्चिंग को और आगे टाल दिया गया है.
चलिए आपको बताते हैं कि शुभांशु शुक्ला समेत जिन 4 अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर एलन मस्क की कंपनी SpaceX का अंतरिक्ष यान ड्रैगन लेकर जा रहा है, वो कितना खास है.
Note- इन अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जो ड्रैगन अंतरिक्ष यान जा रहा है वो ब्रैंड न्यू है यानी एकदन नया है. उस खास यान का प्रयोग पहले नहीं हुआ है. उस अंतरिक्ष यान को SpaceX के सबसे मजबूत रॉकेट फैल्कन 9 की मदद से लॉन्च किया जाएगा. फैल्कन 9 एक रियूजेबल रॉकेट है यानी यह अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में पहुंचाने के बाद वापस धरती पर आ जाता है और इसका फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. SpaceX के अनुसार इस मिशन का समर्थन करने वाले पहले चरण के बूस्टर (फर्स्ट स्टेज बूस्टर) के लिए यह दूसरी उड़ान होगी, जिसने पहले एक स्टारलिंक मिशन लॉन्च किया था.
SpaceX का ड्रैगन अंतरिक्ष यान क्यों है खास?
- SpaceX की साइट के अनुसार ड्रैगन अंतरिक्ष यान ने अबतक 51 मिशन पूरे किए हैं और अब यह 52वें मिशन के लिए उड़ान भर रहा है. इससे पहले 46 बार यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गया है. 31 बार इसने धरती पर वापस आने के बाद फिर से अंतरिक्ष की यात्रा की है.
- ड्रैगन अंतरिक्ष यान 7 अंतरिक्ष यात्रियों को धरती की कक्षा यानी ऑर्बिट से और उससे आगे तक ले जाने में सक्षम है.
- इसकी सबसे खास बात यह है कि यह न सिर्फ अंतरिक्ष में जाता है बल्कि यह वापस भी आता है और इसे फिर से इस्तेमाल भी किया जा सकता है. यानी यह रियूजेबल है.
- ड्रैगन में ड्रेको थ्रस्टर्स लगे हैं. यह थ्रस्टर्स ड्रैगन को किसी ऑर्बिट में रहने के दौरान अपनी दिशा बदलने करने की अनुमति देते हैं. इसमें कल 8 सुपरड्रेकोज हैं जो अंतरिक्ष यान के लॉन्च एस्केप सिस्टम को शक्ति प्रदान करते हैं.
- इसकी उंचाई 8.1 मीटर है, यह 4 मीटर चौड़ा है, लॉन्च होते समय इसके पेलोड का वजन 6000 किलो का होता है, जबकि वापस धरती पर आते समय यह आधा वजन का हो जाता है यानी 3000 किलो का पेलोड.
जिस ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर शुभांशु एंड टीम जाएगी उसका नाम क्या है?
यह सवाल हमने एनडीटीवी के साइंस एडिटर पल्लव बागला से किया. उन्होंने बताया कि अभी इसका कोई नाम नहीं रखा गया है. शुभांशु एंड टीम जब ड्रैगन में पहुंचेगी तो एक शब्द में इसका नाम रखेगी. यही नाम इस ड्रैगन का हमेशा के लिए हो जाएगा. ऐसा मौका कुछ ही एस्ट्रोनॉट को मिलता है. जैसे जब सुनीता विलियम्स स्टारलाइनर से अंतरिक्ष में गईं थीं तो उन्होंने भी अपने ड्रैगन का नाम रखा था.
ड्रैगन अंतरिक्ष यान में कैसे बैठते हैं?
पल्लव बागला के अनुसार शुभांशु जिस रॉकेट में जा रहे हैं, वो ऊबर की तरह समझिए. भारत ने 550 करोड़ रुपये खर्च करके ये टिकट खरीदी है. इस क्रू ड्रैगन में एक बार में 7 लोग जा सकते हैं, लेकिन 4 ही इस बार जा रहे हैं. तो वो रिक्लाइनर की तरह बैठे होते हैं, और उनकी पोजीशन ऐसी होती है कि जी फोर्स का असर उनकी बॉडी पर सबसे कम असर हो. ये बंधे होते हैं ताकी गिरे नहीं. एक फ्रेंच एस्ट्रोनॉट थॉमस पेस्केट ने एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उनके पैर अंतरिक्ष यात्रा में बैठे-बैठे अकड़ गए थे. वो साढ़े छह फीट के हैं. रूसी रॉकेट में कंफर्ट कम होता है.
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