
King Of Thailand Called Ram: पीएम मोदी 3 अप्रैल को 2 दिवसीय थाईलैंड दौरे पर पहुंचे हैं. थाईलैंड जिसे सियाम के नाम से भी जाना जाता था, अपनी अनोखी संस्कृति, समृद्ध इतिहास और मजबूत राजशाही परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. लेकिन एक सवाल जो अक्सर उठता है. सवाल ये कि थाईलैंड के हर राजा को ‘राम' की उपाधि क्यों दी जाती है? क्या यह केवल एक संयोग है, या इसके पीछे कोई ऐतिहासिक और धार्मिक कारण छिपा है? ऐसे में आपको बताते हैं इस परंपरा की पूरी कहानी..
थाईलैंड के राजा को राम की पदवी क्यों?
थाईलैंड और भारत का संबंध केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी बहुत गहरा रहा है. दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों की तरह थाईलैंड में भी हिंदू और बौद्ध परंपराओं का प्रभाव देखा जाता है. थाई समाज में रामायण को रामाकियन कहा जाता है, सिर्फ एक महाकाव्य नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है. यह न केवल थाई कला, नाटक और साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि उनके शासन की संरचना में भी जुड़ा हुआ है. ये बात साल 1782 की है जब चक्री वंश की स्थापना हुई. इसके पहले राजा पुत्थयोत्फा चालुलोक ने खुद को उपाधि के तौर पर 'फान दिन तोन' जोड़ा था जिसका मतलब 'आदि शासक' होता है. अब इस उपाधि की अपनी समस्याएं थीं. दरअसल, इस उपाधि को जारी रखने पर दूसरे राजा की उपाधि ‘मध्यम' और तीसरे शासक की उपाधि ‘अंतिम शासक' हो जाती. लंबे समय बाद थाईलैंड के चक्री राजवंश के छठे राजा वजिरावुध ने खुद को अंग्रेजी में 'राम सिक्स्थ' कहा था, और इसी के बाद थाई राजाओं की उपाधि के साथ अंक जोड़ने का चलन शुरू हुआ. वर्तमान में थाईलैंड के राजा की उपाधि ‘राम दशम' है. राम दशम थाईलैंड में ‘फुटबॉल प्रिंस' के नाम से भी मशहूर हैं. उन्हें दुनिया के सबसे अमीर शासक के तौर पर माना गया है.
200 से अधिक सालों की परंपरा

चक्री वंश ने 200 से अधिक सालों तक इस परंपरा को कायम रखा है, और आज भी थाईलैंड में शाही परिवार को उच्च सम्मान दिया जाता है. हालांकि, समय के साथ राजनीति और समाज में बदलाव आ रहे हैं, लेकिन राम की यह उपाधि अभी भी राजाओं की पहचान बनी हुई है. थाईलैंड के राजाओं को ‘राम' कहे जाने की परंपरा कोई संयोग नहीं, बल्कि गहरे ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी हुई है. यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि थाईलैंड की राष्ट्रीय पहचान और आध्यात्मिक विश्वास का हिस्सा है. भले ही समय बदले, लेकिन यह परंपरा दर्शाती है कि भारत और थाईलैंड का सांस्कृतिक रिश्ता कितना मजबूत और पुराना है और शायद यही वजह है कि थाईलैंड के हर राजा का नाम ‘राम' से शुरू होता है और ‘राम' पर ही समाप्त होता है. अब एक नजर थाईलैंड के अयोध्या नगरी पर भी.
थाईलैंड की अयोध्या
अयोध्या… यह नाम सुनते ही भगवान राम की नगरी का दृश्य हमारी आंखों के सामने आ जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि थाईलैंड में भी एक अयोध्या मौजूद है. इसे आज हम अयुत्थया के नाम से जानते हैं. थाईलैंड का ये प्राचीन नगर न केवल अपने गौरवशाली अतीत के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह भारत और थाईलैंड के गहरे सांस्कृतिक संबंधों का भी प्रतीक है. अयुत्थया की स्थापना 1351 ईस्वी में हुई थी, जब इसे स्याम यानी प्राचीन थाईलैंड के शासकों की राजधानी बनाया गया. इसका नाम संस्कृत शब्द अयोध्या से लिया गया है, जो वाल्मीकि रामायण में भगवान राम की राजधानी के रूप में वर्णित है. अयुत्थया में रामायण के पात्रों की कहानियों को मंदिरों, मूर्तियों और पेंटिंग्स में उकेरा गया है. यहां की राजशाही परंपरा में भी भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है.
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