यूरोप की दहलीज़ पर मौजूद करीब पांच लाख शरणार्थी कुल सीरियाई शरणार्थियों का महज 4% है
दुनिया को हिला कर रख देने वाले शरणार्थी संकट को महज़ युद्धग्रस्त सीरिया से बच कर यूरोप में दाखिल होने की कोशिश कर रहे सीरियाई लोगों के रूप में परिभाषित किया जा रहा है। हालांकि पश्चिमी देशों में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे लोगों की संख्या बहुत ही कम है, लाखों लोगों में से 10 फीसदी से भी कम लोग यूरोप पहुंच पाते हैं, बाकियों की पहुंच से पश्चिमी देश दूर ही हैं। इस पूरे हफ्ते हम एनडीटीवी पर आपके लिए पलायन से जुड़ी विशेष शृंखला ला रहे हैं, जिसके तहत हमने शरणार्थी संकट की अदृश्य जड़ों को ढूंढने की कोशिश की। पेश है इसी शृंखला की एक और कड़ी सीरिया-तुर्की बॉर्डर से...
सैनलियुर्फा, तुर्की : सीरियाई शहर कोबाने के द्वार पर दो लोग अपने घर का सारा सामान ट्रेक में भर रहे हैं। उनके पीछे दिख रहा कंटीले तारों से घिरा शहर अब मलबे में तब्दील हो चुका है और वहां खड़े तुर्की के पुलिस वाले लोगों के पहचान पत्र और उनकी गाड़ियों की जांच कर उन्हें वहां से गुजरने की इजाजत दे रहे हैं।
दो साल पहले कोबाने शहर पर इस्लामिक स्टेट के कब्जे के बाद ये दोनों सीरियाई अपना शहर छोड़ कर चले गए थे। हालांकि इस साल फरवरी महीने में कुर्दिश सेना ने वापस कोबाने शहर को जीत लिया और इसी के साथ अनिश्चितता से भरे डरे-सहमे लोगों की वापसी भी शुरू हो गई।
यूरोप नहीं जाना चाहते लाखों सीरियाई
यूरोप के दक्षिणी तटों पर नावों में लद कर आ रहे लोगों या फिर ऑस्ट्रिया, हंगरी और क्रोएशिया में दाखिल होने की कोशिश कर रही सैकड़ों औरतों, मर्दों और बच्चों की तस्वीरों से सीरियाई संकट का अंदाज़ा लगाया जाता रहा है। लेकिन तुर्की सीमा पर हम इस संकट की हकीकत से रूबरू हुए कि लाखों लोग पश्चिमी देश जाना ही नहीं चाहते या फिर सक्षम ही नहीं हैं।
तुर्की-सीरिया सीमा पर चेकपोस्ट के पास हमें एक और सीरियाई शख्स मिला, जो फिलहाल तुर्की में रहता है और कई बार कोबाने आता रहता है। वह कहता है, 'मैं वापस आना चाहता हूं।' वह यूरोप जाने का इच्छुक नहीं है और कहता है, 'मेरा परिवार यहां है, मेरे पिता, मां। वे बूढ़े हैं, मैं उन्हें छोड़ नहीं सकता है।'
कुर्दिश समूह के अनुमान के मुताबिक, कोबाने शहर का 70 फीसदी हिस्सा तबाह हो चुका है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आईएसआईएस इस पर दोबारा हमला नहीं करे। हाल ही में वे फिर से शहर में घुस आए थे और सैकड़ों लोगों को मार डाला। इससे एक बार शहर से पलायन शुरू हो गया।
सीरियाई शरणार्थियों का दर्द
हालांकि इस दौरान हमें कई ऐसे में सीरियाई मिले जो यूरोप जाने का जोखिम उठाने की बजाये सीमा के करीब ही पसंद करते हैं। 18 महीने पहले अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ दक्षिणी तुर्की के सुरुक शहर आए मुस्तफा कहते हैं कि वह अपने देश के करीब रहना चाहते हैं और इसी वजह से वह जाना नहीं चाहते। वह कहते हैं, 'मेरे बच्चे अपने चाचा-चाची को अब पहचान नहीं सकते, क्योंकि उन्होंने उन्हें लंबे अर्से से देखा ही नहीं है।'
हालांकि यूरोप ना जाने का फैसला करने वाले लोगों के लिए भी जिंदगी उतनी आसान नहीं। जैसा कि हमने पहले बताया था कि उनमें से कई लोग बेरोजगार और जिन्हें काम मिला भी है तो मानो बेगार जैसा। सुरुक में 12 साल उम्र तक के बच्चे न्यूनतम मजदूरी के भी दसवें हिस्से में घंटों काम करते हैं। (पढ़ें - आईएस के चंगुल से छूटकर गुलामों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर लोग)
ये शरणार्थी अब सीरिया में नहीं रहते, इसका मतलब ये नहीं कि खतरा उन पर से टल गया है। हजारों सीरियाई शरणार्थियों की पनाहगाह बने सुरुक के एक सांस्कृतिक केंद्र पर हालिया हिंसा के निशान साफ दिखते हैं। आईएसआईएस ने तीन महीने पहले कोबाने जा रहे शांति रक्षक मिशन पर बम से हमला किया था, जिसमें 30 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
सैनलियुर्फा, तुर्की : सीरियाई शहर कोबाने के द्वार पर दो लोग अपने घर का सारा सामान ट्रेक में भर रहे हैं। उनके पीछे दिख रहा कंटीले तारों से घिरा शहर अब मलबे में तब्दील हो चुका है और वहां खड़े तुर्की के पुलिस वाले लोगों के पहचान पत्र और उनकी गाड़ियों की जांच कर उन्हें वहां से गुजरने की इजाजत दे रहे हैं।
दो साल पहले कोबाने शहर पर इस्लामिक स्टेट के कब्जे के बाद ये दोनों सीरियाई अपना शहर छोड़ कर चले गए थे। हालांकि इस साल फरवरी महीने में कुर्दिश सेना ने वापस कोबाने शहर को जीत लिया और इसी के साथ अनिश्चितता से भरे डरे-सहमे लोगों की वापसी भी शुरू हो गई।
यूरोप नहीं जाना चाहते लाखों सीरियाई
यूरोप के दक्षिणी तटों पर नावों में लद कर आ रहे लोगों या फिर ऑस्ट्रिया, हंगरी और क्रोएशिया में दाखिल होने की कोशिश कर रही सैकड़ों औरतों, मर्दों और बच्चों की तस्वीरों से सीरियाई संकट का अंदाज़ा लगाया जाता रहा है। लेकिन तुर्की सीमा पर हम इस संकट की हकीकत से रूबरू हुए कि लाखों लोग पश्चिमी देश जाना ही नहीं चाहते या फिर सक्षम ही नहीं हैं।
तुर्की-सीरिया सीमा पर चेकपोस्ट के पास हमें एक और सीरियाई शख्स मिला, जो फिलहाल तुर्की में रहता है और कई बार कोबाने आता रहता है। वह कहता है, 'मैं वापस आना चाहता हूं।' वह यूरोप जाने का इच्छुक नहीं है और कहता है, 'मेरा परिवार यहां है, मेरे पिता, मां। वे बूढ़े हैं, मैं उन्हें छोड़ नहीं सकता है।'
कुर्दिश समूह के अनुमान के मुताबिक, कोबाने शहर का 70 फीसदी हिस्सा तबाह हो चुका है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आईएसआईएस इस पर दोबारा हमला नहीं करे। हाल ही में वे फिर से शहर में घुस आए थे और सैकड़ों लोगों को मार डाला। इससे एक बार शहर से पलायन शुरू हो गया।
सीरियाई शरणार्थियों का दर्द
हालांकि इस दौरान हमें कई ऐसे में सीरियाई मिले जो यूरोप जाने का जोखिम उठाने की बजाये सीमा के करीब ही पसंद करते हैं। 18 महीने पहले अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ दक्षिणी तुर्की के सुरुक शहर आए मुस्तफा कहते हैं कि वह अपने देश के करीब रहना चाहते हैं और इसी वजह से वह जाना नहीं चाहते। वह कहते हैं, 'मेरे बच्चे अपने चाचा-चाची को अब पहचान नहीं सकते, क्योंकि उन्होंने उन्हें लंबे अर्से से देखा ही नहीं है।'
हालांकि यूरोप ना जाने का फैसला करने वाले लोगों के लिए भी जिंदगी उतनी आसान नहीं। जैसा कि हमने पहले बताया था कि उनमें से कई लोग बेरोजगार और जिन्हें काम मिला भी है तो मानो बेगार जैसा। सुरुक में 12 साल उम्र तक के बच्चे न्यूनतम मजदूरी के भी दसवें हिस्से में घंटों काम करते हैं। (पढ़ें - आईएस के चंगुल से छूटकर गुलामों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर लोग)
ये शरणार्थी अब सीरिया में नहीं रहते, इसका मतलब ये नहीं कि खतरा उन पर से टल गया है। हजारों सीरियाई शरणार्थियों की पनाहगाह बने सुरुक के एक सांस्कृतिक केंद्र पर हालिया हिंसा के निशान साफ दिखते हैं। आईएसआईएस ने तीन महीने पहले कोबाने जा रहे शांति रक्षक मिशन पर बम से हमला किया था, जिसमें 30 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
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