भारत और सीरिया के बीच संबंध सदियों पुराने हैं. इनकी जड़ें प्राचीन सभ्यताओं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, औपनिवेशिक अनुभवों और स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक सहयोग में गहराई से जुड़ी हुई हैं. इन संबंधों ने समय-समय पर बदलते भू-राजनीतिक संदर्भों के बावजूद स्थायित्व बनाए रखा है. ऐतिहासिक व्यापार मार्ग जैसे सिल्क रूट और स्पाइस रूट के माध्यम से इन दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापार, वस्त्र, मसालों और धार्मिक विचारों का आदान-प्रदान होता रहा है. सीरियाई व्यापारी भारत के मालाबार तट तक आते थे. वे भारतीय सामान दमिश्क, अलेप्पो जैसे शहरों के बाजारों में ऊंचे दामों पर बेचते थे.
भारत और सीरिया दोनों ही प्राचीन सभ्यताओं के केंद्र रहे हैं. भारत की सिंधु घाटी और सीरिया की मेसोपोटामियन सभ्यता का अपना महत्व है. दोनों देशों में एक समानता पराधीनता का भी है. दोनों देशों का भाग्य एक लंबे समय से औपनिवेशिक शासन द्वारा निर्धारित होता था. भारत ब्रिटिश के अधीन था, जबकि सीरिया फ्रांसीसी नियंत्रण में था (मंडेट सिस्टम के तहत). दोनों देशों के लोगों ने औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया और स्वतंत्रता की आकांक्षा में समान भावनाएं साझा कीं. इन अनुभवों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच राजनीतिक और वैचारिक सहमति को मजबूत किया.
भारत-सीरिया के राजनयिक संबंध
स्वतंत्रता के बाद राजनयिक संबंध 1947 के बाद भारत और सीरिया ने 1952 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे, जब भारत स्वतंत्र हुआ तो दोनों देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सक्रिय सदस्य रहे. भारत और सीरिया शीत युद्ध के दौरान एक स्वतंत्र और विकासोन्मुखी नीति के समर्थक बने. जवाहर लाल नेहरू और हाफ़िज़ अल असद के दौर से लेकर हाल तक भारत ने सीरिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है.
भारत और सीरिया ने 1950–70 के दशक में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया. 2003 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीरिया का दौरा किया. इस दौरान कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. भारत ने लाइन ऑफ क्रेडिट और तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से सीरिया के पुनर्निर्माण में सहयोग किया.
2011 में सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान भारत ने संतुलित और हस्तक्षेप-मुक्त नीति अपनाई. भारत युद्ध के दौरान भी सीरिया के संपर्क में रहा और कई बार मानवीय सहायता भेजी. अब भी वह उस ऐतिहासिक रिश्ते को जारी रखना चाहता है चाहे सीरिया की राजनीतिक संरचना में कितना ही बदलाव क्यों न आए. सीरिया ने भारत के कश्मीर पर रुख का बार-बार समर्थन किया है. भारत ने भी गोलान हाइट्स पर सीरिया के दावे को स्वीकार किया है.

सीरिया की राजधानी दमिश्क में वहां के अधिकारियों से आपसी सहयोग पर चर्चा करते भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी.
सीरिया के हालात पर भारत का रुख कैसा रहा है
भारत ने हमेशा राजनीतिक समाधान का समर्थन किया और किसी एक पक्ष के पक्ष में खुला समर्थन नहीं किया. बल्कि ऐसे सीरिया के साथ काम करने की इच्छा जताता है जो एकता, मानवाधिकार और समावेशी शासन को बढ़ावा दे. भारत ने सीरिया के गृहयुद्ध के दौरान भी दमिश्क में अपना दूतावास चालू रखा और लगातार एक सीरियाई-नेतृत्व वाले, समावेशी राजनीतिक समाधान की वकालत की. इसमें एकतरफा हस्तक्षेप का विरोध करते हुए सीरिया की संप्रभुता का समर्थन किया गया. यह भारत की संयुक्त राष्ट्र-आधारित विदेश नीति और गैर-हस्तक्षेप सिद्धांत के अनुरूप है.
भारत के विदेश मंत्रालय में पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका विभाग के प्रभारी संयुक्त सचिव एम सुरेश कुमार के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने इसी हफ्ते (28 जुलाई) को सीरिया के विदेश और प्रवासी मामलों के मंत्री असआद अल-शाइबानी से मुलाकात की. इसकी सूचना सीरिया के विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक टेलीग्राम चैनल पर भी दी.भारत ने अहमद हुसैन अल-शराआ (अबू मोहम्मद अल-जोलानी) और हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व वाली सरकार को सीरिया की वैध सरकार के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है. हालांकि, दिसंबर 2024 में बशर अल-असद शासन के पतन के बाद भारत सहित कई देशों ने जोलानी के नेतृत्व वाले अस्थायी प्रशासन के साथ कूटनीतिक बातचीत की शुरुआत की है.
इस बैठक में द्विपक्षीय संबंधों, मानवीय सहायता और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा की खबर है. भारत ने सीरियाई-नेतृत्व और सीरियाई-स्वामित्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया का समर्थन करने की प्रतिबद्धता जताई, जो सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखे. यह संवाद इस ओर संकेत करता है कि भारत HTS के नेतृत्व वाले प्रशासन से व्यावहारिक दृष्टिकोण से संवाद के लिए तैयार है, लेकिन इसे सीरिया की वैध सरकार के रूप में मान्यता देने के बराबर नहीं समझा जाना चाहिए.
क्या एचटीएस एक आतंकवादी संगठन है
भारत का लंबे समय से संघर्ष क्षेत्रों में नई सरकारों को मान्यता देने में सतर्क दृष्टिकोण रहा है, खासकर HTS जैसी पृष्ठभूमि वाली ताकतों के प्रति, जिसकी जड़ें अल-कायदा से जुड़ी रही हैं. हालांकि अमेरिका ने जुलाई 2025 में अल-नुसरा फ्रंट/HTS को विदेशी आतंकवादी संगठन की सूची से हटा दिया. अमेरिका अपने आर्थिक और सामरिक हित के हिसाब से इस तरह के संगठनों को आतंकवादी का ठप्पा लगाता है और उसे खुद ही हटाता रहता है. जबकि अन्य देश अब भी इसे आतंकी संगठन मानते हैं.
अमेरिका ने दिसंबर 2024 में जोलानी पर घोषित 10 मिलियन डॉलर के इनाम को हटा लिया और HTS नेताओं से मुलाकात की. इससे उसके दृष्टिकोण में आए परिवर्तन का संकेत मिला. लेकिन अभी भी कई देशों द्वारा HTS को आतंकवादी संगठन माने जाने के कारण इसकी औपचारिक मान्यता जटिल बनी हुई है. जोलानी नेतृत्व वाली सरकार अंतरराष्ट्रीय वैधता की तलाश में अमेरिका, तुर्की और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों से संपर्क कर रही है.
भारत शायद सीरिया के राजनीतिक परिवर्तन पर व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहमति या स्पष्टता का इंतजार करेगा, इससे पहले कि वह मान्यता पर कोई निर्णायक कदम उठाए. अब तक भारत के विदेश मंत्रालय ने जोलानी के नेतृत्व वाली सरकार को मान्यता देने वाला कोई स्पष्ट बयान जारी नहीं किया है. इसके बजाय भारत की कार्रवाइयां यह दर्शाती हैं कि वह सीरिया में अपनी कूटनीतिक पहुंच और प्रभाव बनाए रखने के प्रयास में है, न कि HTS शासन को औपचारिक समर्थन देने में. भारत सीरिया के नए प्रशासन से दरअसल कई कारणों से संपर्क बढ़ा रहा है.
भारत का व्यापार और निवेश की सुरक्षा
युद्ध से पूर्व भारत और सीरिया के बीच करीब 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार होता था. अब जबकि सीरिया पुनर्निर्माण के दौर में है, भारत चाहता है कि उसकी कंपनियां निर्माण, फार्मा और आईटी जैसे क्षेत्रों में भूमिका निभाएं. इसके लिए स्थानीय प्रभावशाली समूहों से संवाद बनाए रखना जरूरी है. भारत का सीरिया के साथ लंबे समय से मानवीय सहयोग रहा है जैसे कि चिकित्सकीय सहायता (एंटी-कैंसर दवाएं भेजना). इस साल जुलाई में भारत ने पांच मीट्रिक टन दवाएं सीरिया भेजी. इसके अलावा वह सीरियाई छात्रों को भारत में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देता है. यह सब असद शासन के समय से ही होता रहा है. वर्तमान कूटनीतिक वार्ताएं भारत की सॉफ्ट पावर और विकासात्मक दृष्टिकोण को और मजबूती देती हैं.
भारत की वेस्ट एशिया नीति संतुलन पर आधारित है. अगर जोलानी जैसे नेता क्षेत्रीय वास्तविकता बनते हैं, तो उनसे संवाद रखना भारत की उपस्थिति बनाए रखने के लिए आवश्यक हो जाता है, चाहे वह आधिकारिक मान्यता के बिना ही क्यों न हो. भारत का उद्देश्य मध्य-पूर्व में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मजबूत करना, व्यापार गलियारों (जैसे इंडिया–मिडल ईस्ट–यूरोप कॉरिडोर) की रक्षा करना और असद-काल के बाद सिरिया में अपने निवेश व सहायता कार्यक्रमों को बचाए रखना है. भारत चाहता है कि वह चरमपंथी समूहों की गतिविधियों पर नजर रख सके और खुफिया आदान-प्रदान के माध्यम से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके.
सीरिया यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच प्रमुख व्यापार और ऊर्जा मार्गों के संगम पर स्थित है. सीरिया भारत को ईरान, सऊदी अरब, इजरायल, अमेरिका और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने का अवसर देता है. इससे भारत की मल्टी-अलाइन्मेंट (बहु-संरेखण) नीति को मजबूती मिलती है.
भारत सीरिया के पुनर्निर्माण और स्थिरता में सहयोग करते हुए, तुर्की प्रभाव का मुकाबला करने और कश्मीर जैसे मुद्दों पर सीरिया के भारत-समर्थक रुख को बनाए रखने की दिशा में काम कर रहा है. यह व्यावहारिक रुख भारत को दमिश्क में मौजूदा वास्तविक प्रशासन के साथ कार्य करने की अनुमति देता है.भारत अब पुरानी असद सरकार से हटकर नई संक्रमणकालीन सरकार के साथ अपने रिश्तों को पुनर्गठित कर रहा है, ताकि व्यापार, परियोजनाएं और ऋण-रेखाएं (जैसे स्टील, ऊर्जा, आईटी और फार्मा क्षेत्रों में) सुचारू रूप से जारी रहें और सुरक्षा जोखिमों का नए सिरे से आकलन किया जा सके.
अस्वीकरण:अज़ीज़ुर रहमान आज़मी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वेस्ट एशिया एंड नार्थ अफ़्रीकन स्टडीज विभाग में पढ़ाते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना ज़रूरी नहीं है.