
- अमेरिकी विदेश मंत्री के अनुसार यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने के लिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत जरूरी है.
- रुबियो ने बताया कि पुतिन के पास दुनिया का सबसे बड़ा सामरिक और दूसरा सबसे बड़ा रणनीतिक परमाणु हथियार भंडार है.
- अमेरिका ने रूसी तेल खरीदार चीन पर टैरिफ नहीं लगाया ताकि वैश्विक ऊर्जा कीमतों में बढ़ोतरी न हो- रुबियो
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लंबे समय से एक वैश्विक नेता रहे हैं. इसलिए, यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को सुलझाने के लिए अमेरिका के पास उनसे बातचीत करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. उन्होंने रविवार को एबीसी न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "पुतिन पहले से ही दुनिया के मंच पर एक अहम नेता हैं."
उन्होंने कहा कि उनके पास दुनिया का सबसे बड़ा सामरिक परमाणु हथियारों का भंडार है और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रणनीतिक परमाणु हथियारों का भंडार भी है. वह पहले से ही दुनिया के बड़े नेताओं में शामिल हैं.
रूसी समाचार एजेंसी तास के अनुसार, उन्होंने कहा, "जब मैं लोगों को यह कहते सुनता हूं कि 'ओह, इससे पुतिन का कद बढ़ जाएगा,' तो मुझे हैरानी होती है. हम तो हर वक्त पुतिन के बारे में ही बात करते हैं. पिछले चार–पांच सालों से मीडिया भी लगातार पुतिन की ही चर्चा कर रहा है."
उन्होंने आगे कहा, "इसका मतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता पुतिन से बात किए बिना नहीं हो सकता. जब तक पुतिन से बातचीत नहीं होगी, तब तक यह युद्ध खत्म नहीं हो सकता. यह तो आम समझ की बात है, मुझे इसे समझाने की जरूरत नहीं है. इसलिए, लोग जो चाहें, कह सकते हैं."
चीन पर अमेरिका टैरिफ क्यों नहीं लगा रहा? रुबियो ने बताई वजह
अमेरिकी विदेश मंत्री रूबियो ने बताया है कि आखिर अमेरिका ने रूस के सबसे बड़े तेल खरीदार चीन पर कोई अतिरिक्त टैरिफ क्यों नहीं लगाया है, जबकि भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया था, जिसमें मॉस्को के साथ नई दिल्ली के व्यापार के लिए 25 प्रतिशत टैरिफ भी शामिल है. रुबियो ने इसकी वजह बताते हुए दावा किया कि चीन जो रूसी तेल खरीद रहा है, उसका अधिकांश हिस्सा परिष्कृत (रिफाइन) किया जा रहा है और फिर वैश्विक बाजार में बेचा जा रहा है. उन्होंने कहा कि चीन पर किसी भी अतिरिक्त टैरिफ से वैश्विक स्तर पर ऊर्जा कीमतें बढ़ सकती हैं. यानी तेल-गैस महंगा हो सता है.
रुबियो ने रविवार को फॉक्स बिजनेस के साथ इंटरव्यू में कहा, "ठीक है, यदि आप उस तेल को देखें जो चीन जा रहा है और रिफाइन किया जा रहा है, तो उसमें से बहुत कुछ वापस यूरोप में बेचा जा रहा है. यूरोप अभी भी प्राकृतिक गैस (रूस से) खरीद रहा है. अब, कुछ देश खुद को इससे दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यूरोप अपने प्रतिबंधों (रूस पर) के संबंध में और भी बहुत कुछ कर सकता है."
ट्रंप ने पुतिन से की है बात, लेकिन बात नहीं बनी
15 अगस्त को अलास्का के एक सैन्य अड्डे पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुलाकात हुई. यह बैठक करीब तीन घंटे तक चली. रूसी पक्ष की ओर से राष्ट्रपति के सहयोगी यूरी उशाकोव और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव मौजूद थे. वहीं, अमेरिकी पक्ष की ओर से विदेश मंत्री मार्को रुबियो और ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने भाग लिया.
बातचीत के बाद मीडिया को दिए गए बयान में पुतिन ने कहा कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध का हल इस शिखर सम्मेलन का सबसे अहम मुद्दा था. रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिका और रूस के रिश्तों को बेहतर बनाने और फिर से सहयोग शुरू करने की बात कही. साथ ही, उन्होंने ट्रंप को मास्को आने का निमंत्रण भी दिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि बातचीत में कुछ प्रगति जरूर हुई है. लेकिन, दोनों देश किसी ठोस समझौते तक नहीं पहुंच पाए हैं. रुबियो ने रविवार को कहा कि शांति समझौता करने के लिए पुतिन और जेलेंस्की दोनों को कुछ समझौते करने होंगे.
रुबियो ने एबीसी न्यूज को बताया, "जब तक दोनों पक्ष एक-दूसरे को कुछ न दें, तब तक शांति समझौता संभव नहीं है. जब तक दोनों तरफ से रियायत नहीं होंगी, शांति नहीं हो सकती."
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