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ट्रंप का यह नया प्लान दुनिया को हिलाकर रख देगा!

डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी बार सत्ता आते ही यूरोप को लेकर अमेरिका की नीतियों में बदलाव देखने को मिला है. अब अमेरिका के राष्ट्रपति का कथित तौर पर C5 वाला प्लान दुनियाभर में नए समीकरण की तरफ इशारा कर रहा है.

ट्रंप का यह नया प्लान दुनिया को हिलाकर रख देगा!

कूटनीति में माहिर माने जाने वाले अमेरिकी के पूर्व विदेश सचिव हेनरी किसिंजर ने कहा था- "अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक है, लेकिन दोस्त बनना घातक है." इन पंक्तियों का सही अर्थ शायद यूरोप समझ रहा है. डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी बार सत्ता आते ही यूरोप को लेकर अमेरिका की नीतियों में बदलाव देखने को मिला है. अब अमेरिका के राष्ट्रपति का कथित तौर पर C5 वाला प्लान दुनियाभर में नए समीकरण की तरफ इशारा कर रहा है. इस कथित योजना के केंद्र में दुनिया की पांच बड़ी ताकतें हैं:- अमेरिका, रूस, चीन, भारत और जापान हालांकि इसे लेकर अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि तो नहीं हुई है. लेकिन द पॉलिटिको में प्रकाशित रिपोर्ट ने हलचल जरूर मचा दी है. इस बात के संकेत साफ है कि ट्रंप की निगाहें अब अटलांटिक से हटकर एशिया और अपने पुराने प्रतिद्वंद्वियों की ओर मुड़ चुकी हैं, जिसका इशारा अमेरिका की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (National Security Strategy) में जरूर दिखता है. आखिर ट्रंप का कथित तौर पर नया प्लान क्या है? इस योजना से यूरोप के प्रभुत्व वाले G7 को दरकिनार कर नए 'हार्ड-पावर समूह' (C5) के जरिए विश्व शक्तियों का एक नया मोर्चा बनाने की तैयारी है?

यूरोप-अमेरिका की अटूट दोस्ती का अंत...!

आज से ठीक 80 साल पहले, जब वर्ल्ड ऑर्डर (World Order) बदला तो नई दुनिया की नींव में अमेरिका और यूरोप की अटूट दोस्ती का अध्याय भी शुरू हुआ. 8 मई 1945 को नाजी जर्मनी का पतन के बाद द्वितीय विश्व युद्ध की राख भी ठंडी हुई थी. इसी विश्व युद्ध के अंत के साथ दुनिया 2 गुटों में बंट गई- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और सोवियत संघ.

द्विध्रुवीय दुनिया (Bipolar World) में, 1947 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने "ट्रूमैन सिद्धांत" की घोषणा की थी. यह सिर्फ एक सिद्धांत नहीं, बल्कि अमेरिका का एक वादा था कि वह उन देशों की ढाल बनेगा, जो सशस्त्र समूहों या बाहरी दबावों से अपनी आजादी बचाना चाहते थे. यह एक तरह का अमेरिकी रक्षा कवच था कि अमेरिका बाहरी दबावों के खिलाफ अपने दोस्तों के साथ खड़ा रहेगा. जब यूरोप दो धड़ों में बंटा तो पश्चिमी यूरोप की सुरक्षा की गारंटी अमेरिका ने अपने कंधों पर ली और यह व्यवस्था अगले 4 दशकों तक कायम रही.

ट्रंप यूरोप को 2 हिस्सों में देखते हैं

ट्रंप प्रशासन का यह बदलाव सिर्फ रणनीतिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी है. नई अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अनुसार, अब यूरोपीय महाद्वीप की मूल समस्या बाहरी खतरे नहीं, बल्कि 'पश्चिमी' मूल्यों की उपेक्षा, आप्रवासन, गिरती जन्म दर और 'राष्ट्रीय पहचान का नुकसान' है. इसी के चलते ट्रंप प्रशासन की राय यूरोपीय देशों को लेकर भी बंटी हुई है. हंगरी, इटली जैसे देशों को लेकर अमेरिकी नीतियां काफी अलग है, जबकि ब्रिटेन-फ्रांस को लेकर अलग है.

यही वजह है कि चुनिंदा दक्षिणपंथी यूरोपीय सरकारों के साथ अमेरिका अपने संबंधों को बेहतर करने की तरफ बढ़ रहा है. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी जैसे धुर दक्षिणपंथी नेताओं के प्रति ट्रंप का दोस्ताना रवैया जगजाहिर है. कथित तौर पर ऑस्ट्रिया, हंगरी, इटली और पोलैंड को यूरोपीय संघ से अलग उन देशों की सूची में शामिल किया गया है, जिनके साथ अमेरिका और अधिक काम करने के पक्ष में है.

रूस की तरफ झुकाव रखने वाले ट्रंप ट्रूमैन के वादे को भूल गए!

दरअसल, 'ट्रूमैन सिद्धांत' के वादे का मकसद था- सोवियत संघ के विस्तार को रोकना और USSR के प्रभाव के खिलाफ पूंजीवादी अमेरिका के वर्चस्व को बढ़ाना, लेकिन ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका रूस के नजदीक जाता दिख रहा है. यूक्रेन के खिलाफ जंग के ऐलान के साथ ही रूस पर यूरोप ने तमाम प्रतिबंध लाद दिए. इस मामले में अमेरिका ने भी भरपूर सहयोग किया, लेकिन अब ट्रंप प्रशासन की निगाहें कहीं और है. पुतिन पर ट्रंप की मेहरबानी दुनिया के लिए हैरान करने वाली है. राष्ट्रपति ट्रंप रूस को G8 से निष्कासित करना भी एक बड़ी गलती मानते हैं. अब जैसा नजर भी आ रहा है कि ट्रंप और पुतिन की दोस्ताना बातचीत में ना तो यूक्रेन का मजबूत पक्ष टेबल पर रखा जा रहा है और ना ही यूरोप अमेरिका के जरिए रूस पर दवाब बना पा रहा है.

जेडी वेंस के बयान पर यूरोप में हुआ हंगामा

वैश्विक राजनीति के जानकारों के बीच यह चर्चा बेहद आम है कि डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से ही यूरोपीय संघ और अमेरिका के रिश्ते उल्लेखनीय रूप से बिगड़ गए. इसी बीच वाशिंगटन से उठी नई आवाज़ों ने भी यूरोप को स्तब्ध कर दिया. अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वैंस ने जब म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में ट्रंप के बारे में बोलते हुए कहा था- New Sheriff in Town (शहर का नया मुखिया) तो इस विवादास्पद बयानों ने भी खलबली मचा दी.

अमेरिका की ओर से कभी ग्रीनलैंड को कब्जे में लेने की धमकी, तो कभी यूरोपीय संघ में लोकतंत्र की कमी के आरोपों ने भी रिश्तों को पटरी से उतारने का काम किया. यही नहीं, अमेरिकी को ओर से यूरोपीय राष्ट्रों को स्पष्ट संदेश दिया कि उन्हें "अपनी रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी" खुद उठानी होगी, नाटो के निरंतर विस्तार की अपेक्षा छोड़नी होगी और रक्षा खर्च में भारी वृद्धि के नए मानक पूरे करने होंगे.

चीन को लेकर भी नरम है USA

इतना ही नहीं, ट्रंप की ओर से चीन को शामिल करके 'G9' के गठन का सुझाव भी दिया. जबकि 8 साल पहले ट्रंप ने जब पहली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दुनिया के सामने रखी तो चीन की ओर इशारा करते हुए कहा था कि यह "महान शक्ति प्रतिस्पर्धा" के युग की शुरुआत की है. लेकिन अब, अमेरिका की नई रणनीति से भाषा में वह तल्खी पूरी तरह से गायब है. ट्रंप शी जिनपिंग के साथ बातचीत भी कर रहे हैं. दोनों नेताओं के बीच यूक्रेन युद्ध, फेंटेनाइल ड्रग की तस्करी और कृषि उत्पादों का व्यापार पर चर्चा जारी है. हाल की मुलाकात में चीन के राष्ट्रपति ने इतिहास में दोनों देशों के सहयोग का जिक्र करते हुए कहा था कि चीन और US ने फासीवाद और मिलिटरिज्म के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी. यह दोनों देशों के संबंधों के बीच नरमी का इशारा है.

इस वजह से भारत है अमेरिका की जरूरत

वहीं अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण को महत्वपूर्ण हित भी माना है. इसके चलते वॉशिंगटन के लिए भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका का क्वाड समूह मजबूत रहना जरूरी हो जाता है. क्वाड के प्रति समर्थन को दोहराते हुए हिंद-प्रशांत सुरक्षा में अधिक भूमिका निभाने पर भी जोर दिया गया है.

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