
- अमेरिका रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर 500 प्रतिशत टैक्स लगाने की योजना बना रहा है.
- सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने प्रस्तावित विधेयक के लिए राष्ट्रपति ट्रंप का समर्थन बताया है.
- विधेयक का उद्देश्य भारत और चीन जैसे देशों पर दबाव डालना है ताकि वे रूस से तेल न खरीदें.
- भारत वर्तमान में रूस से कच्चा तेल का आयात बढ़ा रहा है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण सस्ता हो गया है.
संयुक्त राज्य अमेरिका उन देशों पर टैक्स लगाने की योजना बना रहा है जो तीन साल पहले यूक्रेन के खिलाफ रूस के जंग शुरू करने के बाद भी उसके साथ व्यापार कर रहे हैं. साउथ कैरोलिना से रिपब्लिकन अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन सहित रूस के साथ व्यापार जारी रखने वाले देशों के सामानों पर 500 प्रतिशत टैरिफ लगाने वाले प्रस्तावित विधेयक का समर्थन किया है.
ग्राहम ने रविवार को एबीसी न्यूज को बताया कि ट्रंप ने उनसे कहा था कि इस आर्थिक प्रतिबंध विधेयक को "जुलाई ब्रेक" के बाद वोट के लिए अमेरिकी संसद में लाया जाना चाहिए.
आर्थिक प्रतिबंध विधेयक में क्या है?
सीनेटर ग्राहम के अनुसार इस प्रतिबंध विधेयक का उद्देश्य भारत और चीन जैसे देशों पर दबाव डालना है ताकि वो रूस से तेल और अन्य सामान न खरीदें. इसकी मदद से मॉस्को की युद्ध अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की जाएगी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन के साथ सीजफायल समझौते के लिए बातचीत की मेज पर धकेला जा सके.
अमेरिकी सीनेटर ने एबीसी को बताया, "यहां बड़ी सफलता है. तो यह बिल क्या करता है? यदि आप रूस से सामान खरीद रहे हैं और आप यूक्रेन की मदद नहीं कर रहे हैं, तो अमेरिका में आने वाले आपके उत्पादों पर 500 प्रतिशत टैरिफ लगेगा. भारत और चीन पुतिन का 70 प्रतिशत तेल खरीदते हैं. वे उनकी युद्ध मशीन को चालू रख रहे हैं. मेरे बिल में 84 को-स्पॉन्सर (समर्थन देने वाले सीनेटर) हैं. यह राष्ट्रपति को चीन और भारत और अन्य देशों पर टैरिफ लगाने की अनुमति देगा ताकि वे देश पुतिन की युद्ध मशीन का समर्थन रोक दें और उन्हें बातचीत की मेज पर ले आएं.''
हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ट्रंप के पास पूरी आजादी है. जब यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है तो वह यह तय कर सकते हैं कि इस पर हस्ताक्षर करें या नहीं.
कानून बना तो भारत पर क्या असर?
पश्चिमी देशों के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत और चीन जैसे देशो रियायती दर पर रूस से तेल खरीद रहे हैं. इसी वजह से वे अमेरिका के इस प्रस्तावित कानून के टारगेट पर आ गए हैं. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है. वह विदेशों से लगभग 5.1 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदता है, जिसे रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में बदला जाता है.
इसकी वजह से भारत में रूसी तेल के आयात में तेजी से वृद्धि देखी गई. पहले कुल कच्चे तेल के आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से भी कम थी लेकिन कुछ ही समय में यह बढ़कर 40-44 प्रतिशत तक पहुंच गयी. जून में, ईरान पर इजराइल के हमले से जब बाजार अस्थिर हुआ तो भारत ने रूसी तेल की खरीद और बढ़ा दी और सऊदी अरब और इराक जैसे मीडिल इस्ट देशों के मिलाकर जितना तेल आता है, उससे भी अधिक रूस से आयात किया.
भारतीय रिफाइनर्स को जून में प्रति दिन 2-2.2 मिलियन बैरल रूसी कच्चे तेल का आयात करने का प्रस्ताव दिया गया था, जो पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक है. मई में रूस से भारत का तेल आयात 1.96 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) था.
यदि अमेरिका प्रस्तावित विधेयक को लागू करता है, तो इससे अमेरिका में आयातित भारतीय उत्पादों पर 500 प्रतिशत का भारी टैरिफ लग सकता है. हालांकि, भारत अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया में है, जिससे भारत पर अमेरिकी टैरिफ में काफी कमी आने की संभावना है.
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