अमेरिकी विदेश विभाग ने H-1B स्पेशलिटी अस्थायी व्यापार वीजा जारी नहीं करने का प्रस्ताव दिया है. यह वीजा अमेरिकी कंपनियों को देश में प्रौद्योगिकी पेशेवरों को छोटे से कार्यकाल के लिए साइट पर जाकर काम करने की अनुमति देता है. डोनाल्ड ट्रम्प सरकार ने अगर इस प्रस्ताव को मान लिया तो सैकड़ों भारतीयों की रोजी-रोटी पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक इस नियम से प्रतिवर्ष लगभग 8000 विदेशी कामगार प्रभावित होंगे.
अमेरिकी विदेश विभाग का कहना है कि अगर इस प्रस्ताव पर मुहर लगता है तो उन संभावनाओं और शंकाओं पर पूर्ण विराम लग जाएगा जो "बी-1 एच पॉलिसी के तहत" विदेशी पेशेवरों को कुशल श्रम के लिए अमेरिका में प्रवेश करने के लिए एक वैकल्पिक अवसर की इजाजत देता है. इससे अमेरिकी नियोक्ताओं को संभवत: अपने कुशल श्रमिकों को प्रोत्साहित करने का मौका मिल सकता है. इससे अमेरिकी श्रमिकों की रक्षा के लिए कांग्रेस द्वारा स्थापित "एच" गैर-आप्रवासी वर्गीकरण से संबंधित प्रतिबंधों और आवश्यकताओं को दरकिनार किया जा सकेगा.
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विदेश मंत्रालय का यह कदम, बुधवार को तब सार्वजनिक किया गया, जब 3 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दो हफ्ते से भी कम समय रह गया है. इससे कई भारतीय कंपनियों के प्रभावित होने की संभावना है जो अमेरिका में साइट पर नौकरियों को पूरा करने के लिए अपने तकनीकी पेशेवरों को बी-1 वीजा पर थोड़े समय के लिए भेजती हैं.
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दिसंबर 2019 में, कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल ने इन्फोसिस लिमिटेड के खिलाफ $ 800,000 के जुर्माने की घोषणा की थी और कहा था कि लगभग 500 इंफोसिस कर्मचारियों ने राज्य में एच-1 बी वीजा की बजाय कंपनी द्वारा प्रायोजित बी-1 वीजा पर काम किया है. विदेश मंत्रालय के इस प्रस्ताव से अमेरिका में विदेशी कार्यबल की संख्या कम हो सकेगी.
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