
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1बी वीजा फीस बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर तक करने का ऐलान किया है.
- भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीजा पर निर्भरता कम कर मजबूत ऑफशोर और नियरशोर ऑपरेशनल मॉडल तैयार कर रही हैं.
- नई वीजा फीस 2027 से लागू होगी जिससे कंपनियां ऑफशोर काम और स्थानीय भर्ती पर ज्यादा ध्यान देंगी.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से पिछले दिनों H-1बी वीजा फीस को बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर तक करने का ऐलान किया गया है. उनके इस ऐलान के साथ ही ग्लोबल आईटी कंपनियों में हलचल मच गई है. वहीं इंडियन टेक प्रोफेशनल्स के बीच भारत में 'घर वापसी' की संभावना भी बढ़ रही है. हालांकि, भारतीय आईटी लीडर्स इस घटनाक्रम से ज्यादा प्रभावित नहीं हैं. ज्यादातर सीईओ की मानें तो उनकी कंपनियों ने इमीग्रेशन से जुड़ी बाधाओं का सामना करने के लिए मजबूत ऑफशोर और नियरशोर ऑपरेशनल मॉडल तैयार किए हैं. कई भारतीय आईटी कंपनियों ने पहले ही एच-1बी वीजा पर अपनी निर्भरता 50 फीसदी से भी कम कर दी है. यह इंडस्ट्री के मजबूत ऑफशोर और नियरशोर डिलीवरी मॉडल की ओर बदलाव की तरफ इशारा करता है.
ऑफशोर वर्क को बढ़ावा!
ट्रंप के फैसले का भारतीय आईटी कंपनियों के कामकाज पर खासा असर पड़ सकता है. माना जा रहा है कि अब कंपनियां नए वीजा आवेदन करने के बजाय ऑफशोर काम (भारत या दूसरे देशों से सेवा देना) और स्थानीय भर्तियों पर ध्यान बढ़ा सकती हैं. फाइनेंशियल एडवाइजर कंपनी मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट के मुताबिक, यह नियम 2027 से लागू होगा. अगर कोई कंपनी 5,000 एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करती है तो सिर्फ फीस का बोझ ही 50 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक इतने ज्यादा खर्च के बाद भारतीय आईटी कंपनियां नए वीजा के लिए आवेदन करना कम कर सकती हैं. इसकी जगह वो अमेरिकी ग्राहकों को भारत जैसे कम लागत वाले देशों से सर्विसेज प्रोवाइड कराएंगी या फिर अमेरिका में ही स्थानीय लोगों को नौकरी पर रखेंगी.
तो ऐसे बढ़ेगा कंपनियों का मुनाफा
लेकिन इसका एक असर यह भी होगा कि कंपनियों की ऑनसाइट कर्मचारियों पर आने वाली लागत भी कम हो जाएगी. इस स्थिति में भले ही भारतीय आईटी कंपनियों का अमेरिकी कारोबार से रेवेन्यू घटेगा लेकिन ऑनसाइट लागत भी कम हो जाने से उनका ऑपरेटिंग मार्जिन बेहतर हो सकता है. यानी कंपनियों का मुनाफा बेहतर रह सकता है. आईटी इंडस्ट्री बॉडी नैसकॉम का कहना है कि फीस सिर्फ नए एप्लीकेंट्स पर लागू होगी, मौजूदा वीजा धारकों पर नहीं. इससे फिलहाल की अनिश्चितता कम हुई है और कंपनियों को 2026 तक तैयारी करने का समय भी मिलेगा. इस दौरान वो स्थानीय भर्ती और ट्रेनिंग प्रोग्राम को तेजी से बढ़ा सकती हैं.
क्या है भारतीय कंपनियों की स्थिति
एक्सपर्ट्स की मानें तो पिछले 10 साल में भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में स्थानीय नौकरियां बढ़ाई हैं. आज सिर्फ 3 से 5 प्रतिशत सक्रिय कर्मचारी ही एच-1बी वीजा पर हैं. गूगल, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियां अब नए वीजा आवेदनों में सबसे आगे हैं. फिलहाल टीसीएस, इन्फोसिस, एचसीएल अमेरिका और एलटीआई माइंडट्री जैसी भारतीय कंपनियां भी टॉप प्रॉफिट वाली कंपनियों में शामिल हैं. गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका में जारी होने वाले एच-1बी वीजा का 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा भारतीय पेशेवरों को ही मिलता है.
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