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This Article is From Mar 06, 2020

अमेरिकी संस्था ने CAA को लेकर की सुनवाई, मुसलमानों को लेकर जताई चिंता, कहा- मताधिकार से वंचित हो सकते हैं मुस्लिम

भारत ने यूएससीआईआरएफ और कुछ व्यक्तियों द्वारा की गई टिप्पणियों को पूर्व में तथ्यात्मक रूप से गलत, गुमराह करने वाली और मुद्दे को राजनीतिक रंग देने वाला बताया है.

अमेरिकी संस्था ने CAA को लेकर की सुनवाई, मुसलमानों को लेकर जताई चिंता, कहा- मताधिकार से वंचित हो सकते हैं मुस्लिम
नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन की एक तस्वीर.
वाशिंगटन:

विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता के हनन की निगरानी करने वाली एवं अमेरिकी कांग्रेस द्वारा गठित एक संघीय संस्था ने भारत के संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि इसके चलते वहां बड़े पैमाने पर मुस्लिम मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) के सदस्यों ने विशेषज्ञों की एक आमंत्रित समिति के साथ बुधवार को एक सुनवाई शुरू की, जिसके केंद्र में मुख्य रूप से सीएए और म्यामां में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा था. इस बैठक का मकसद इन मुद्दों के प्रति अमेरिकी सरकार के लिए नीतिगत सिफारिशें तैयार करना है.

यूएससीआईआरएफ अध्यक्ष टोनी पर्किंस ने इस बात का उल्लेख किया कि राष्ट्रीयता का अधिकार एक मूलभूत मानवाधिकार और नागरिक अधिकार है. उन्होंने कहा कि लोगों को यह मूलभूत मान्यता देने से इनकार करने से न सिर्फ उनके अधिकार छिन जाएंगे, बल्कि वे राजनीतिक प्रक्रिया में अपनी भागीदारी और भेदभाव एवं उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी उपायों के इस्तेमाल से भी वंचित हो जाएंगे. 

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संस्था की आयुक्त अनुरिमा भार्गव ने सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनपीआर) का जिक्र करते हुए कहा कि भारत सरकार के हालिया कार्य संकट पैदा करने वाले हैं. उन्होंने कहा, ‘यह आशंका है कि एनपीआर की योजना और राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर भारतीय मुसलमान मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. यह उन लोगों को लंबे समय तक के लिए डिटेंशन, निर्वासन और हिंसा के जोखिम में डाल देगा. हम देख रहे हैं कि यह प्रक्रिया पूर्वोत्तर के राज्य असम में की गई...क्षेत्र में अवैघ प्रवासियों की पहचान के लिए एनआरसी एक प्रणाली है.'

बता दें, भारत ने यूएससीआईआरएफ और कुछ व्यक्तियों द्वारा की गई टिप्पणियों को पूर्व में तथ्यात्मक रूप से गलत, गुमराह करने वाली और मुद्दे को राजनीतिक रंग देने वाला बताया है. भारतीय संसद द्वारा दिसंबर 2019 में पारित किया गया नया नागरिकता कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले गैर मुस्लिमों को नागरिकता की पेशकश करता है. भारत सरकार यह कहती आ रही है कि सीएए देश का आंतरिक मामला है.

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भार्गव ने कहा कि सभी धर्मों के कई भारतीय इस कानून का विरोध करने में प्रदर्शन के शांतिपूर्ण अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह बहुत अफसोस की बात है कि हमने प्रदर्शनकारियों पर और मुस्लिम समुदाय को लक्षित दिल्ली की हालिया हिंसा के खिलाफ सरकारी अधिकारियों की नृशंस कार्रवाई को देखा है.'

ब्राउन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान के अध्यापन से जुड़े आशुतोष वार्ष्णेय ने आयोग से कहा कि सीएए का इस्तेमाल कर एनआरसी काफी संख्या में मुस्लिमों को देशविहीन कर सकता है, चाहे उनका जन्म भारत में क्यों न हुआ हो और अपने पूर्वजों की तरह वे दशकों से देश में रहे हों. उन्होंने कहा, ‘यह एक अहम कारण है जिसके चलते प्रदर्शन नहीं रूक रहे हैं. प्रदर्शनकारी साफ तौर पर मुसलमानों के हाशिये पर जाने को देख रहे हैं....'

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उन्होंने कहा, ‘डर यह है कि यदि भारत के मौजूदा मुस्लिम नागरिक भारत में अपनी वंशावली के दस्तावेज पेश करने में अक्षम रहते हैं तो सीएए का इस्तेमाल करते हुए एनआरसी के जरिए उन्हें आसानी से घुसपैठिया करार दिया जा सकता है.' उन्होंने कहा कि इससे वे निष्कासन की वस्तु बन जाएंगे और मताधिकार से वंचित हो जाएंगे. यूएससीआईआरएफ के समक्ष बयान देते हुए सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिसी में विस्थापन एवं प्रवास कार्यक्रम के निदेशक और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के पूर्व रणनीतिक नीति सलाहकार अजीम इब्राहिम ने आरोप लगाया कि भारत के नागरिक के तौर पर मुसलमानों के अधिकार अब सीधे तौर पर खतरे में है.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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