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असम में अवैध प्रवासियों से जुड़ी सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर आज होगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट आज असम के सिटीजनशिप एक्ट मामले में फैसला सुनाएगा. जानिए क्या है ये मामला और सुप्रीम कोर्ट में कब से चल रहा...

असम में अवैध प्रवासियों से जुड़ी सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर आज होगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट में आज संविधान पीठ असम के मामले पर सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ असम (Assam) में अवैध प्रवासियों से जुड़ी सिटीजनशिप एक्ट (Citizenship Act) की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अर्जी पर बृहस्पतिवार को फैसला सुनाएगा.चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुबह 10.30 बजे फैसला सुनाएगी. 12 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.  

इससे पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों का सटीक डेटा कलेक्ट कर पाना संभव नहीं है. ये लोग बिना डॉक्यूमेंट्स के भारत में चोरी-छिपे घुसते हैं.केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि पड़ोसी देश के असहयोग के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने में परेशानी का सामना करना पड़ा.फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत 1966 से 1971 तक असम में 32381 विदेशियों की पहचान की गई. केंद्र ने कहा कि अवैध प्रवासियों का पता लगाना, हिरासत में लेना और उन्हें वापस भेजना काफी मुश्किल है.

दरअसल, असम समझौते के तहत भारत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी.जिसमें कहा गया है कि जो लोग 1985 में बांग्लादेश समेत क्षेत्रों से 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा.नतीजतन इस प्रावधान ने असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की अंतिम तारीख 25 मार्च 1971 तय कर दी.

सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर 2023 को असम में सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A से जुड़ी 17 याचिकाओं पर 5 जजों की बेंच में सुनवाई शुरू कर दी थी.दो जजों की बेंच ने 2014 में इस मामले को कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के पास भेज दिया था.कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बताता हो कि 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का असर असम की जनसंख्या और सांस्कृतिक पहचान पर पड़ा हो.

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