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This Article is From Mar 07, 2022

Explainer: क्या अहिंसा से Russia को War में हरा सकता है Ukraine? ज़ेलेंस्की पुतिन के खिलाफ अपना रहे ये रणनीति...

Ukraine Crisis: शांतिवाद की एक लंबी परंपरा रही है और इसके पैरोकारों में लियो टॉल्स्टॉय के रूप में एक प्रसिद्ध रूसी भी शामिल है. चूंकि, उन्होंने 1880-1910 के आसपास हुई सभी हिंसक घटनाओं की कड़ी निंदा की, लिहाजा इस बात के प्रबल सबूत हैं कि अहिंसक प्रतिरोध हिंसक प्रतिरोध से अधिक प्रभावी है, यहां तक ​​कि तानाशाही के खिलाफ भी.

Explainer: क्या अहिंसा से Russia को War में हरा सकता है Ukraine? ज़ेलेंस्की पुतिन के खिलाफ अपना रहे ये रणनीति...
Russia Ukraine: यूक्रेन के राष्ट्रपति क्या गांधी की अहिंसा से जीत पाएंगे?

रूस (Russia) के साथ युद्ध (War) के बीच यूक्रेन (Ukraine) ने रूसी सेना को छोड़ने वाले किसी भी व्यक्ति को नकद और माफी की पेशकश कर रहा है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) ने रूसी नागरिकों को उनकी भाषा में संबोधित करते हुए कहा कि वे भी विरोध करें. रूस में हजारों लोगों ने खतरे के बावजूद सड़कों पर प्रदर्शन किया है. कई सार्वजनिक हस्तियां, सैकड़ों रूसी वैज्ञानिक, यहां तक ​​कि 150 से अधिक मौलवियों ने पहले ही युद्ध का विरोध किया है. मॉस्को मेट्रो में महिलाओं के यूक्रेनी ध्वज से मिलते-जुलते कपड़े पहनकर विरोध जताने की खबरें हैं. एनॉनिमस नाम का समूह रूस के खिलाफ साइबर हमले कर रहा है. प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और खेल संगठनों ने रूस से रिश्ते तोड़ लिए हैं.यानी पुतिन के आक्रमण के खिलाफ बहुत सारी प्रतिक्रियाएं अहिंसक रही हैं, वे भी बेहद रचनात्मक तरीके से.

द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट के अनुसार लॉफबोरो विश्वविद्यालय के राजनीति एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय के वरिष्ठ व्याख्याता एलेक्जेंडर क्रिस्टोयानोपोलोस कहते हैं, "यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के खिलाफ प्रतिरोध तेज रहा है. यूक्रेन ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी हजारों लोग रूसी आक्रामता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

यूक्रेन में 18 से 60 साल के पुरुषों को जबरन लामबंद किया जा रहा है. सैकड़ों गैर-यूक्रेनी स्वयंसेवकों से लैस एक ‘अंतरराष्ट्रीय सेना' बनाई जा रही हैसैन्य साजो-सामान खरीदने में यूक्रेन की मदद करने के लिए दुनियाभर के लोग पैसे दान कर रहे हैं। पश्चिमी देश हथियार भेज रहे हैं.

क्या अहिंसक प्रतिरोध एक प्रभावी या बेहतर विकल्प हो सकता है?

शांति और अहिंसा के पैरोकारों को अक्सर भोला, खतरनाक या देशद्रोही कायर बताकर, उनका मजाक उड़ाया जाता है. अकादमिक हलकों में भी शांतिवाद को बदनाम या खारिज किया जाता है. बावजूद इसके, शांतिवाद की एक लंबी परंपरा रही है और इसके पैरोकारों में लियो टॉल्स्टॉय के रूप में एक प्रसिद्ध रूसी भी शामिल है. चूंकि, उन्होंने 1880-1910 के आसपास हुई सभी हिंसक घटनाओं की कड़ी निंदा की, लिहाजा इस बात के प्रबल सबूत हैं कि अहिंसक प्रतिरोध हिंसक प्रतिरोध से अधिक प्रभावी है, यहां तक ​​कि तानाशाही के खिलाफ भी.

अहिंसक प्रतिरोध से लंबी अवधि में मानवाधिकारों के लिहाज से अधिक सम्मानजनक परिणाम भी सामने आते हैं.

इस संबंध में और शोध किए जाने की जरूरत है, लेकिन हम यह जानते हैं कि अहिंसा नैतिकता का बड़े पैमाने पर रणनीतिक उपयोग करती है.

जैसा कि टॉल्स्टॉय ने माना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि हिंसा नहीं होगी, लेकिन अहिंसक प्रदर्शनकारियों के हिंसा भड़काने के बजाय उसका शिकार होने का खतरा ज्यादा रहता है.

महात्मा गांधी के अनुयायी भी इसी सिद्धांत पर अमल करते थे. वे जानते थे कि अहिंसक प्रदर्शनकारियों का हिंसक दमन दुनिया का ध्यान खींचेगा.

यह एक शक्तिशाली रणनीति है और साथ ही साथ खतरनाक भी, क्योंकि इसमें दुश्मन के हथियारों का सामना करने का जोखिम ज्यादा होता है और यह शायद काम भी न करे, लेकिन इससे नैतिक संतुलन और यहां तक कि शक्ति संतुलन को बदलने में मदद मिल सकती है.

अहिंसक प्रतिरोध में विरोधी भी इंसान

अहिंसक प्रतिरोध विरोधियों को इंसानों के रूप में देखता है और उन्हें तथा उनके समर्थकों को यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि वे क्या कर रहे हैं और उनकी निष्ठा किसके साथ है.

यह भी स्पष्ट नहीं है कि हिंसा हमेशा काम करती है या नहीं. हम अक्सर मानते हैं कि यह कारगर है, लेकिन किसी भी कदम का प्रभाव विरोधी की प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है, जो इसे या तो सह लेता है या फिर विरोध जताता है। इस बीच हिंसा का ध्रुवीकरण हो जाता है. यह प्रतिबद्धताओं को और मजबूत बनाता है.

यही नहीं, हिंसा लोगों की जान लेती है, उनके परिजनों, दोस्तों, रिश्तेदारों को दुख देती है, जो जवाब में बदला लेने की कोशिश कर सकते हैं.

यूक्रेन में जारी रूस की सैन्य कार्रवाई के मामले में कई लोग तर्क देंगे कि हिंसक प्रतिरोध ‘सिर्फ युद्ध के सिद्धांत' के कड़े मानदंडों को पूरा करता है। यह साम्राज्यवादी आक्रमण के खिलाफ जंग है, जो आंशिक रूप से मानसिक उन्माद, भू-राजनीतिक नुकसान और 1990 के दशक की क्रूर पूंजीवादी ‘शॉक थेरेपी' के प्रतिशोध से प्रेरित है.

यूक्रेनी नागरिकों ने वलोदिमीर जेलेंस्की को अपना राष्ट्रपति चुना. वे यूरोपीय संघ और पश्चिम के साथ घनिष्ठ संबंधों के पक्षधर हैं. नाटो के विस्तार से रूस को खतरा महसूस हो सकता है, लेकिन जो देश इसमें शामिल हुए, उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वे रूस से चिंतित थे। यह आक्रमण उनकी चिंता की पुष्टि करता है। ऐसे में लड़ाई का आह्वान समझ में आता है.

लेकिन अहिंसक प्रतिरोध के तरीके और भी हैं. कुछ यूक्रेनी नागरिकों ने रूसी टैंकों का रास्ता बाधित किया है. उन्होंने सैनिकों का सामना अपशब्दों, मंत्रोच्चारण और नारेबाजी से किया है. यूक्रेनी सड़क कंपनी ने हमलावर सैनिकों को भ्रमित करने के लिए लोगों को सड़क पर लगे संकेतक हटाने के लिए प्रोत्साहित किया है.

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