श्रीलंका में देश की बदहाल अर्थव्यवस्था के लिए पिछली सरकार के खिलाफ सड़कों पर लोगों के उतरने की संपूर्ण घटना का एक वर्ष पूरा हो गया है. इस आंदोलन का परिणाम यह रहा कि शक्तिशाली राजपक्षे परिवार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था.इस आंदोलन के एक वर्ष पूरा होने पर कट्टरपंथी अंतर विश्वविद्यालय छात्र संघ ने विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन का आह्वान किया है.
पिछले साल हुए जन आंदोलन की वजह से तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को मालदीव भागना पड़ा, क्योंकि हजारों लोगों ने उनके इस्तीफे की मांग को लेकर उनका आधिकारिक आवास घेर लिया था. प्रदर्शनकारियों ने उन्हें देश के सबसे विकट आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया था.
पिछले साल मार्च के अंत में राजपक्षे के आवास के बाहर लोगों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था और जुलाई में अंतत: उनके अपदस्थ होने के साथ समाप्त हुआ.
इस आंदोलन की पहली सालगिरह पर विरोध प्रदर्शन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेता डॉ.पथुम केरनेर ने कहा, ‘‘गोटाबाया को अपदस्थ करने के साथ लोग आर्थिक संकट का तत्काल समाधान चाहते थे.'' उन्होंने कहा कि आंदोलन के दो लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है और राजनीतिक बदलाव दीर्घकालिक प्रक्रिया से ही हो सकता है.
डॉ.केरनेर ने कहा, ‘‘उम्मीद है कि अगले चुनाव के साथ ही बदलाव आएगा.'' उन्होंने कहा कि आर्थिक स्थिति पिछले साल के मुकाबले सुधरी है और आवश्यक वस्तुओं के लिए कतारों में खड़े होने से लोगों को राहत मिली है.''
डॉ. केरनेर के मुताबिक, पिछले साल करीब 20 लोगों की लंबी कतारों में खड़े रहने से मौत हो गई थी.
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