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This Article is From Jul 15, 2016

बेनजीर भुट्टो की खास दोस्त टेरेसा को था थैचर के ब्रिटिश पीएम बनने का मलाल, पढ़ें कुछ दिलचस्प बातें

बेनजीर भुट्टो की खास दोस्त टेरेसा को था थैचर के ब्रिटिश पीएम बनने का मलाल, पढ़ें कुछ दिलचस्प बातें
पति फिलिप के साथ ब्रिटेन की नई पीएम थेरेसा मे की फाइल फोटो
  • टेरेसा का सपना ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का था
  • मार्ग्रेट थैचर के पीएम बनने से उनका यह सपना टूट गया
  • बेनजीर भुट्टो ने उन्हें फिलिप मे से मिलवाया था, जिनसे उनकी शादी हुई
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नई दिल्ली: 'आज वोट देने की कम से कम लोग ही फिक्र करते हैं... क्योंकि उन्हें यह लगता है कि नेता वही करेगा जो उसे पसंद है। राजनीतिक दल के मुकाबले किसी टीवी शो को ज्यादा लोग वोट देते हैं। और जो लोग वोट देते हैं, वह सोचते हैं कि बंदर जैसे लिबास वाला आदमी के किसी दूसरी पार्टी की तुलना में अपने चुनावी वादे पूरे करने की ज्यादा संभावना है। हम इसे हंसी में उड़ा सकते हैं। लेकिन जब वे बीएनपी (ब्रिटिश नेशनल पार्टी) को वोट देने लगते हैं, तब यह स्वीकार करने का वक्त है कि चीजें बेहद खराब हो चुकी हैं। तो राजनेताओं को अपने अंदर झकना चाहिए। और लेडीज एंड जेंटनमेन यह कंज़र्वेटिव पार्टी के नेताओं पर भी लागू होता है।'

अपनी ही पार्टी पर उठाया था सवाल :
यह शानदार स्पीच हाल में ही ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनी टेरेसा मे ने वर्ष 2002 में एक कांफ्रेंस के दौरान दी थी। इस कांफ्रेंस में कंजर्वेटिव पार्टी के कई बड़े नेता मौजूद थे। उस वक्त टेरेसा मे कंज़र्वेटिव पार्टी की चेयरमैन थी। टेरेसा ने खुद अपने पार्टी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और इस पार्टी को 'नैस्टी पार्टी' यानि गंदी पार्टी का दर्जा दी थी। टेरेसा ने अपनी स्पीच में कंजर्वेटिव पार्टी की सोच को काफी संकीर्ण बताया था और पार्टी पर यह भी आरोप लगाया था कि वह महिला और अल्पसंख्यक विरोधी है।

मार्ग्रेट थैचर के पीएम बनने का था मलाल
1 अक्टूबर 1956 को जन्मी टेरेसा मे के पिता ब्रिटेन की एक चर्च में पादरी थे। टेरेसा जब महज 25 साल की थीं, तब उनके पिताजी की सड़क हादसे में मौत हो गई थी और इसके कुछ ही साल के बाद उनकी मां भी चल बसीं। बचपन से ही टेरेसा की राजनेता बनने की थी। इंग्लैंड के प्रसिद्ध अखबार 'डेली मेल' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, टेरेसा का सपना ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का था। वर्ष 1979 में मार्ग्रेट थैचर जब ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी, तब टेरेसा को इसका दुख था, क्योंकि इससे उनका सपना जो टूट गया था। टेरेसा के साथ ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े उनके दोस्त पैट फ्रैंकलैंड ने यह बात बताई है।

बेनज़ीर भुट्टो से थी अच्छी दोस्त, फिलिप मे से हुई है शादी
वर्ष 1980 में टेरेसा की शादी फिलिप मे से हुई। एक डिस्को में बेनज़ीर भुट्टो ने ही दोनों की मुलाकात करवाई थी। फिलिप, टेरेसा और भुट्टो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में साथ पढ़े थे और उनके बीच अच्छी दोस्ती थी। फिलिप मे, टेरेसा से उम्र में दो साल छोटे हैं और वह फाइनेंस सेक्टर में काम करते हैं। फिलिप की भी इच्छा राजनीति में जाने की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए।

टेरेसा मे तो पहली महिला प्रधानमंत्री नहीं बन पाई, लेकिन उनकी दोस्त बेनज़ीर भुट्टो ने पाकिस्तान की पहली प्रधानमंत्री बन कर इतिहास रचा। फिलिप और टेरेसा की क्रिकेट के प्रति भी काफी रुची रही है और कहा जाता है कि इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर ज्यॉफ्री बॉयकॉट टेरेसा के सबसे पसंदीदा खिलाड़ी रहे हैं। टेरेसा और फिलिप के कोई संतान नहीं है।   

टेरेसा की जूतियां बटोरती हैं सुर्खियां
टेरेसा मे अपने फैशन के लिए जानी जाती है और उन्हें बिट्रेन की सबसे स्टाइलिश महिला सांसद माना जाता है। वह अपनी जूतियों के लिए काफी चर्चा में रहती है। वह अलग-अलग स्टाइल की जूतियां पहनती रहती है और चीता प्रिंट वाली उनकी जूतियों को खूब सुर्खियां मिली। ऐसा कहा जाता है कि वह अपनी जूतियों को प्लास्टिक में कवर करके रखती हैं।

ब्रिटेन में जब टेरेसा की बात होती है, तो लोगों को उनकी जूतियां ज्यादा याद आती हैं। ब्रिटेन के कई मैगज़ीन और अख़बारों में उनकी जूती को लेकर कई स्टोरी छप चुकी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कई बड़े अखबारों में उनकी जूतियों पर चर्चा है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध टैब्लॉयड 'द सन' ने अपने फ्रंट पेज पर टेरेसा की जूती की बड़ी सी तस्वीर छापी है। तो वहीं 'द मिरर' ने भी टेरेसा की अलग-अलग जूतियों की तस्वीर के साथ स्टोरी की है।

शुरुआती असफलताओं के बावजूद हौसला रहा बुलंद
टेरेसा मे को राजनीती के शुरुआती दौर में ज्यादा सफलता नहीं मिली। वर्ष 1992 में उन्होंने नार्थ वेस्ट डरहम सीट से चुनाव लड़ा और हार गई। इसके बाद 1994 में हुए बार्किंग उप-चुनाव में टेरेसा को महज 1976 वोट मिले और वह चुनाव बुरी तरह हार गई।  हालांकि इस करारी शिकस्त के बावजूद उन्होंने हौसला बुलंद रखा और 1997 में मैडेनहेड सीट से पहली बार सांसद बनी और फिर वर्ष 2015 तक लगातार पांच चुनावों में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2010 में वह गृहमंत्री बनी और फिर प्रधानमंत्री बनने तक इसी पद पर कार्यरत रहीं।

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