ढाका:
बांग्लादेश में कट्टरपंथी राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी की ओर से हड़ताल के आह्वान के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी रविवार को तीन-दिवसीय दौरे पर ढाका पहुंचे। करीब सात माह पूर्व देश के सर्वोच्च सांविधिक पद को ग्रहण करने वाले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का यह पहला विदेश दौरा है।
बांग्लादेश में कट्टरपंथी राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी के एक वरिष्ठ नेता को युद्ध अपराध के मामले में मौत की सजा सुनाए जाने को लेकर भड़की हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। बीते कुछ दिनों से जारी हिंसा में अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी है। देश के उत्तरी हिस्से में सैनिकों को तैनात किया गया है। बीते गुरुवार को जमात के उपाध्यक्ष दिलवर हुसैन सईदी को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधीकरण की ओर से मौत की सजा सुनाए जाने के बाद हिंसा शुरू हुई थी।
जमात कार्यकर्ताओं ने शनिवार रात एक ट्रेन को आग लगा दी और देश के पश्चिमोत्तर हिस्से में कई पुलिस प्रतिष्ठानों पर हमले किए। जमात की ओर से अपने नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने के विरोध में 48 घंटे के बंद का आह्वान किया गया है।
जमात-ए-इस्लामी द्वारा भड़काई गई हिंसा के बीच मुखर्जी की इस यात्रा का प्रतीकात्मक रूप से काफी महत्व है, जिसके तीन नेताओं को 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराध पंचाट ने जनसंहार, बलात्कार और मानवता के विरूद्ध अपराधों का दोषी ठहराते हुए उन्हें सजा सुनाई है।
इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति को बांग्लादेश में उनके समकक्ष मोहम्मद जिलुर रहमान 4 मार्च को देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करेंगे। मुखर्जी अपनी यात्रा के दौरान बांग्लादेश के शीर्ष नेताओं से विभिन्न मसलों पर विचार-विमर्श करेंगे, जिनमें प्रधानमंत्री शेख हसीना भी शामिल हैं।
मुखर्जी इस दौरान तीस्ता नदी जल बंटवारे और भू-सीमा समझौते को मंजूरी दिए जाने जैसे अनसुलझे मुद्दों का समाधान निकालने में भारत की प्रतिबद्धता से भी पड़ोसी देश को अवगत कराएंगे। यात्रा से पूर्व विदेश सचिव रंजन मथाई ने कहा था कि मुखर्जी की यात्रा का मकसद राजनीतिक विचार-विमर्श में शामिल होना नहीं है। राष्ट्रपति शीर्ष बांग्लादेशी नेतृत्व को भारत की प्रतिबद्धता से अवगत कराएंगे, जिनमें द्विपक्षीय संबंधों को एक नए आयाम पर ले जाना और अनसुलझे मुद्दों को सुलझाना शामिल है।
द्विपक्षीय संबंधों में आई मौजूदा सद्भावना में अहम स्थान रखने वाले तीस्ता जल बंटवारे मुद्दे का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध किया है, जिसके बाद यह मामला बीच में ही अटक गया है। 1974 के भू-सीमा समझौते के क्रियान्वयन तथा एक-दूसरे के कब्जे वाले हिस्सों की अदला-बदली के मामले को अभी भारतीय संसद की मंजूरी मिलना बाकी है। बांग्लादेशी संसद ने सालों पहले 1974 में भू-सीमा समझौते को मंजूरी प्रदान कर दी थी।
बांग्लादेश में कट्टरपंथी राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी के एक वरिष्ठ नेता को युद्ध अपराध के मामले में मौत की सजा सुनाए जाने को लेकर भड़की हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। बीते कुछ दिनों से जारी हिंसा में अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी है। देश के उत्तरी हिस्से में सैनिकों को तैनात किया गया है। बीते गुरुवार को जमात के उपाध्यक्ष दिलवर हुसैन सईदी को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधीकरण की ओर से मौत की सजा सुनाए जाने के बाद हिंसा शुरू हुई थी।
जमात कार्यकर्ताओं ने शनिवार रात एक ट्रेन को आग लगा दी और देश के पश्चिमोत्तर हिस्से में कई पुलिस प्रतिष्ठानों पर हमले किए। जमात की ओर से अपने नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने के विरोध में 48 घंटे के बंद का आह्वान किया गया है।
जमात-ए-इस्लामी द्वारा भड़काई गई हिंसा के बीच मुखर्जी की इस यात्रा का प्रतीकात्मक रूप से काफी महत्व है, जिसके तीन नेताओं को 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराध पंचाट ने जनसंहार, बलात्कार और मानवता के विरूद्ध अपराधों का दोषी ठहराते हुए उन्हें सजा सुनाई है।
इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति को बांग्लादेश में उनके समकक्ष मोहम्मद जिलुर रहमान 4 मार्च को देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करेंगे। मुखर्जी अपनी यात्रा के दौरान बांग्लादेश के शीर्ष नेताओं से विभिन्न मसलों पर विचार-विमर्श करेंगे, जिनमें प्रधानमंत्री शेख हसीना भी शामिल हैं।
मुखर्जी इस दौरान तीस्ता नदी जल बंटवारे और भू-सीमा समझौते को मंजूरी दिए जाने जैसे अनसुलझे मुद्दों का समाधान निकालने में भारत की प्रतिबद्धता से भी पड़ोसी देश को अवगत कराएंगे। यात्रा से पूर्व विदेश सचिव रंजन मथाई ने कहा था कि मुखर्जी की यात्रा का मकसद राजनीतिक विचार-विमर्श में शामिल होना नहीं है। राष्ट्रपति शीर्ष बांग्लादेशी नेतृत्व को भारत की प्रतिबद्धता से अवगत कराएंगे, जिनमें द्विपक्षीय संबंधों को एक नए आयाम पर ले जाना और अनसुलझे मुद्दों को सुलझाना शामिल है।
द्विपक्षीय संबंधों में आई मौजूदा सद्भावना में अहम स्थान रखने वाले तीस्ता जल बंटवारे मुद्दे का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध किया है, जिसके बाद यह मामला बीच में ही अटक गया है। 1974 के भू-सीमा समझौते के क्रियान्वयन तथा एक-दूसरे के कब्जे वाले हिस्सों की अदला-बदली के मामले को अभी भारतीय संसद की मंजूरी मिलना बाकी है। बांग्लादेशी संसद ने सालों पहले 1974 में भू-सीमा समझौते को मंजूरी प्रदान कर दी थी।
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