प्रकाश जावड़ेकर की फाइल तस्वीर
पेरिस:
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पेरिस में सोमवार को अमीर देशों को झकझोरने के लिए फिल्म 'ताजमहल' का मशहूर गाने का इस्तेमाल किया, 'जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा...।' जावड़ेकर ने कहा कि चेन्नई जैसी आपदाएं जहां-जहां होती हैं और जहां जलवायु परिवर्तन के असर को कम किया जा सकता है, वहां विश्व में ऐसे देशों को मुआवजा मिलना चाहिए। अभी इसके लिए कोई मैकेनिज्म नहीं है और जो हुआ वो आधा-अधूरा है।
यहां पेरिस में सवाल उठ रहा है कि क्या चेन्नई में हुई बर्बादी और तबाही के लिए जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है? जानकार यही कह रहे हैं कि ऐसी घटनाएं क्लाइमेट चेंज का ही नतीजा हैं और इसकी वजह है ग्लोबल वार्मिंग जो मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोपियन देशों के द्वारा वातावरण में फैलाए गए कार्बन की वजह से है। पेरिस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इस बात को लेकर लड़ाई तेज़ हो गई है। जहां अमेरिका और यूरोपियन यूनियन गरीब और विकासशील देशों से लॉस एंड डैमेज के लिए पैसे न मांगने को कह रहे हैं, वहीं भारत ने भी अमीर देशों से साफ़ कह दिया है कि कम से कम क्लाइमेट फाइनेंस के मामले में अमेरिका जैसे देशों को अपना वादा पूरा करना पड़ेगा और इस बार झूठा दिलासा नहीं चलेगा।
सच ये है कि एक ओर लगातार गरम हो रही धरती की वजह से प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर भारत जैसे देशों ने इसके लिए कोई खास तैयारी नहीं की है। इससे निबटने के लिया ढेर सारा पैसा चाहिए, जिसकी मांग अमीर देशों से की जा रही है।
जानकार कहते हैं कि भारत मुआवजे की मांग को लेकर काफी गंभीर है और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अपने भाषण में इसका जिक्र भी किया था। लेकिन पेरिस में अमीर देश कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। उनका कहना है कि विकासशील देशों को चेन्नई जैसी किसी आपदा के लिए कोई मुआवजा मांगने का अधिकार नहीं है।
एक्शन ऐड के अंतराष्ट्रीय नीति प्रबंधक हरजीत सिंह कहते हैं, 'ये जो आपदाएं हो रही हैं वो क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रही हैं। उनकी हम तैयारी कैसे करें... जिसमें हम बात करते हैं अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की या लोगों को निकालने का प्लान बनाने की। इसमें एक मुद्दा है लॉस एंड डैमेज का यानी जो ये तबाहियां हो रही हैं, जैसे हमने चेन्नई में देखी उत्तराखंड में देखी या ओडिशा में देखी... उसके लिए मुआवजा मांगा जा रहा है। उससे इन देशों को परेशानी हो रही है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि ये मामला कई बिलियन डॉलर में जाने वाला है।'
इसीलिए दबाव बनाने के लिए भारत ने साफ कर दिया है कि हमेशा की तरह इस बार अमीर देशों की नहीं चलेगी। पैसे की मदद के सवाल पर जावड़ेकर ने कहा कि हमारे यहां कहा जाता है कि जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा। इससे पहले जावड़ेकर ने बयान जारी कर कहा कि भारत इस बात को सुनिश्चित करेगा कि पेरिस सम्मेलन से हर साल की तरह सब देश झूठी उम्मीद लेकर घर न लौटें। अमीर देश अपने किए का भुगतान करें। जावड़ेकर ने कहा कि भारत के लिए ये सवा अरब लोगों के जीवन-मरण का सवाल है और इसलिए अगर अमीर और विकसित देश समझौते की भावना से हटे तो ये भारत को कतई मंजूर नहीं होगा।
पेरिस में ये हफ्ता काफी महत्त्वपूर्ण होगा। लॉस डैमेज और क्लाइमेट फाइनेंस महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं, जिन पर बहस होगी और इस पर नजर रखना काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये देखना दिलचस्पा होगा कि भारत अपने साथ कितने देशों को लामबंद कर पाता है।
यहां पेरिस में सवाल उठ रहा है कि क्या चेन्नई में हुई बर्बादी और तबाही के लिए जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है? जानकार यही कह रहे हैं कि ऐसी घटनाएं क्लाइमेट चेंज का ही नतीजा हैं और इसकी वजह है ग्लोबल वार्मिंग जो मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोपियन देशों के द्वारा वातावरण में फैलाए गए कार्बन की वजह से है। पेरिस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इस बात को लेकर लड़ाई तेज़ हो गई है। जहां अमेरिका और यूरोपियन यूनियन गरीब और विकासशील देशों से लॉस एंड डैमेज के लिए पैसे न मांगने को कह रहे हैं, वहीं भारत ने भी अमीर देशों से साफ़ कह दिया है कि कम से कम क्लाइमेट फाइनेंस के मामले में अमेरिका जैसे देशों को अपना वादा पूरा करना पड़ेगा और इस बार झूठा दिलासा नहीं चलेगा।
सच ये है कि एक ओर लगातार गरम हो रही धरती की वजह से प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर भारत जैसे देशों ने इसके लिए कोई खास तैयारी नहीं की है। इससे निबटने के लिया ढेर सारा पैसा चाहिए, जिसकी मांग अमीर देशों से की जा रही है।
जानकार कहते हैं कि भारत मुआवजे की मांग को लेकर काफी गंभीर है और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अपने भाषण में इसका जिक्र भी किया था। लेकिन पेरिस में अमीर देश कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। उनका कहना है कि विकासशील देशों को चेन्नई जैसी किसी आपदा के लिए कोई मुआवजा मांगने का अधिकार नहीं है।
एक्शन ऐड के अंतराष्ट्रीय नीति प्रबंधक हरजीत सिंह कहते हैं, 'ये जो आपदाएं हो रही हैं वो क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रही हैं। उनकी हम तैयारी कैसे करें... जिसमें हम बात करते हैं अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की या लोगों को निकालने का प्लान बनाने की। इसमें एक मुद्दा है लॉस एंड डैमेज का यानी जो ये तबाहियां हो रही हैं, जैसे हमने चेन्नई में देखी उत्तराखंड में देखी या ओडिशा में देखी... उसके लिए मुआवजा मांगा जा रहा है। उससे इन देशों को परेशानी हो रही है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि ये मामला कई बिलियन डॉलर में जाने वाला है।'
इसीलिए दबाव बनाने के लिए भारत ने साफ कर दिया है कि हमेशा की तरह इस बार अमीर देशों की नहीं चलेगी। पैसे की मदद के सवाल पर जावड़ेकर ने कहा कि हमारे यहां कहा जाता है कि जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा। इससे पहले जावड़ेकर ने बयान जारी कर कहा कि भारत इस बात को सुनिश्चित करेगा कि पेरिस सम्मेलन से हर साल की तरह सब देश झूठी उम्मीद लेकर घर न लौटें। अमीर देश अपने किए का भुगतान करें। जावड़ेकर ने कहा कि भारत के लिए ये सवा अरब लोगों के जीवन-मरण का सवाल है और इसलिए अगर अमीर और विकसित देश समझौते की भावना से हटे तो ये भारत को कतई मंजूर नहीं होगा।
पेरिस में ये हफ्ता काफी महत्त्वपूर्ण होगा। लॉस डैमेज और क्लाइमेट फाइनेंस महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं, जिन पर बहस होगी और इस पर नजर रखना काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये देखना दिलचस्पा होगा कि भारत अपने साथ कितने देशों को लामबंद कर पाता है।
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