
पाकिस्तान छोड़ने के लिए दबाव झेल रहे अफगानों के काफिले गिरफ्तारी के "अपमान" के डर से सीमा की ओर जा रहे हैं. पाकिस्तान की सरकार को अफगानिस्तान के इन प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई पर व्यापक जन समर्थन मिल रहा है. दरअसरल इस्लामाबाद 800,000 अफगानों के निवास परमिट को रद्द करने के बाद उन्हें वापस अफगानिस्तान भेजना चाहता है. उसने अपने इस डिपोर्टेशन प्रोग्राम का दूसरा चरण चला रखा है. वहां की सरकरा ने 2023 से बिना डॉक्यूमेंट वाले लगभग 800,000 अफगानों को पहले ही बाहर निकाल दिया है.
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, 1 अप्रैल से अब तक, यानी 9 दिन के अंदर 24,665 से अधिक अफगानी पाकिस्तान छोड़ चुके हैं. इनमें से 10,741 को वहां की पुलिस और सेना ने खुद निर्वासित किया है. यहां के मेगासिटी कराची में एक अफगान प्रवासी रहमत उल्लाह ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, "लोग कहते हैं कि पुलिस आएगी और छापेमारी करेगी. यही डर है. हर कोई इसके बारे में चिंतित है."
तट पर बसे शहर में सबसे बड़ी अनौपचारिक अफगान बस्तियों में से एक में समुदाय के नेता अब्दुल शाह बुखारी ने लगभग 700 किलोमीटर दूर अफगान सीमा के लिए प्रतिदिन कई बसें रवाना होते देखी हैं. अफगानिस्तान में लगातार युद्धों से भागकर पाकिस्तान आने वाले परिवारों ऐसी बस्तियों में अस्थायी घरों का चक्रव्यूह दशकों से बढ़ता जा रहा है. लेकिन अब, उन्होंने कहा, "लोग स्वेच्छा से वापस जा रहे हैं.. परेशानी या उत्पीड़न करने की क्या जरूरत है?"
“हर दिन परेशान किया जाता है"
एक ट्रक ड्राइवर गुलाम हजरत ने कहा कि वह कराची में कई दिनों तक पुलिस उत्पीड़न के बाद अफगानिस्तान से लगी चमन सीमा पर पहुंचा. "हमें अपना घर छोड़ना पड़ा. हमें हर दिन परेशान किया जा रहा था."
अफगान सीमा पर खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी पेशावर में, पुलिस अफगानों को पाकिस्तान छोड़ने का आदेश देने के लिए मस्जिद की मीनारों पर चढ़ जाती है: "पाकिस्तान में अफगान नागरिकों का प्रवास समाप्त हो गया है. उनसे खुद से अफगानिस्तान लौटने का अनुरोध किया जाता है."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने अफगानों पर अपने देश लौटने के लिए दबाव डालने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली "अपमानजनक रणनीति" की निंदा की है. इसके अनुसार अफगानिस्तान में उन्हें तालिबान द्वारा उत्पीड़न का जोखिम उठाना पड़ता है और गंभीर आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.
‘उनका देश अफगानिस्तान है'
दशकों तक लाखों अफगान शरणार्थियों को पनाह देने वाली पाकिस्तान की जनता आज उन्हें जबरन वापस भेजे जाने का समर्थन कर रही है. एक यूनिवर्सिटी टीचर परवेज अख्तर ने राजधानी इस्लामाबाद के एक बाजार में एएफपी को बताया, "वे यहां खाते हैं, यहां रहते हैं, लेकिन हमारे खिलाफ हैं. आतंकवाद वहां (अफगानिस्तान) से आ रहा है, और उन्हें पाकिस्तान छोड़ देना चाहिए; वह उनका देश है. हमने उनके लिए बहुत कुछ किया."
55 वर्षीय बिजनेसमैन मुहम्मद शफीक ने कहा, "वो वैध वीजा के साथ आएं और हमारे साथ बिजनेस करें." उनके विचार पाकिस्तानी सरकार से मेल खाते हैं, जिसने महीनों से सीमावर्ती क्षेत्रों में बढ़ती हिंसा के लिए "अफगान समर्थित अपराधियों" को जिम्मेदार ठहराया है और तर्क दिया है कि देश अब इतनी बड़ी प्रवासी आबादी का समर्थन नहीं कर सकता है.
हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि अफगानियों को निकालने का यह अभियान राजनीतिक है. 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से काबुल और इस्लामाबाद के बीच संबंधों में खटास आ गई है. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की पूर्व स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने एएफपी को बताया, "उनके निर्वासन का समय और तरीका दिखाता है कि यह तालिबान पर दबाव बढ़ाने की पाकिस्तान की नीति का हिस्सा है.. यह मानवीय, स्वैच्छिक और क्रमिक तरीके से किया जाना चाहिए था."
(इनपुट- एएफपी)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं