
नेपाल के एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बनने के लगभग दो दशक बाद इस हिमालयी राष्ट्र में राजशाही समर्थक विरोध प्रदर्शन बढ़ गए हैं. इसकी वजह है आर्थिक निराशा और वर्तमान नेताओं से जनता का मोहभंग. पिछले महीने राजशाही के समर्थन में निकाली गई रैली में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए. यह रैली हिंसक हो गई, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग गिरफ्तार हो गए.
ऐसा नहीं है कि राजशाही की बहाली की मांग को लेकर यह पहला विरोध प्रदर्शन था, दरअसल वहां इसकी मांग को लेकर लहर चल रही है और यह रैली कइयों में से एक था. राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और कमजोर आर्थिक विकास लोगों के बीच बढ़ते असंतोष के साथ ऐसी रैलियों की संख्या बढ़ गयी है.
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार नेपाल की पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी, राजशाही राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगडेन ने कहा कि राजा राष्ट्रीय पहचान और गौरव से जुड़े हुए हैं. लिंग्डन ने न्यूज एजेंसी को बताया, "हम राजशाही को एक सत्तारूढ़ संस्था के रूप में नहीं, बल्कि एक संरक्षक के रूप में चाहते हैं जो राष्ट्रीय हितों की रक्षा करती है और विदेशी हस्तक्षेप को रोकती है." 2017 में, आरपीपी ने संसद में सिर्फ एक सीट जीती. फिर 2022 के आखिरी चुनाव में, पार्टी के राजशाही और हिंदू समर्थक एजेंडे ने उसे 14 सीटें दिला दीं.
पिछले महीने एक शाही प्रदर्शन में शामिल हुए 43 साल के शिक्षक राजिन्द्र कुंवर ने कहा, "देश अस्थिरता का सामना कर रहा है, कीमतें ऊंची हैं, लोग बेरोजगार हैं, और शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है.. इसलिए हमें राजा की वापसी की जरूरत है."
किस परिस्थिति में हटी थी राजशाही?
77 साल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह को 2001 में ताज पहनाया गया था. उस समय उनके बड़े भाई राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह और उनके परिवार की महल के अंदर हत्या कर दी गई थी. इस नरसंहार में अधिकांश शाही परिवार का सफाया हो गया था.
ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह का राज्याभिषेक तब हुआ जब नेपाल के दूर-दराज के कोनों में माओवादी विद्रोह भड़क उठा. इसके बाद शाह ने 2005 में संविधान को सस्पेंड कर दिया और संसद को भंग कर दिया. इससे एक लोकतांत्रिक विद्रोह शुरू हो गया जिसमें माओवादियों ने नेपाल के राजनीतिक प्रतिष्ठान के साथ मिलकर सड़क पर विशाल विरोध प्रदर्शन किया.
जब शाह हटे तो कई लोग राजशाही के अंत की खुशी मनाने के लिए जमा हुए, जबकि कुछ राजभक्त रो पड़े.
हालांकि मुख्यधारा के राजनेताओं ने अतीत की ओर लौटने की मांग को खारिज कर दिया है. नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन में शासन करने वाली नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के चीफ व्हिप राजाराम बार्टौला ने कहा, "राजशाही एक असफल और पुरानी अवधारणा है." उन्होंने कहा, "21वीं सदी के जागरूक नेपाली राजशाही की वापसी को स्वीकार नहीं करेंगे."
विश्व बैंक का कहना है कि गरीब नेपाल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि इस महीने यह भी कहा गया कि 2025 वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद यानी रियल जीडीपी में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई. एक साल पहले इसी अवधि में 4.3 प्रतिशत की तेजी देखने को मिली थी. इस बार की वृद्धि के पीछे मुख्य रूप से "कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में तेजी" वजह रही है.
राजा लौटने की कर रहे तैयारी?
पावर से हटाए जा चुके राजा ने अबतक नेपाल की अस्थिर राजनीति पर टिप्पणी करने से काफी हद तक परहेज किया है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में, वो कई बार सार्वजनिक रूप से सामने आए हैं, मुख्य रूप से समर्थकों के साथ धार्मिक स्थलों का दौरा किया है.
पूर्व राजा ने कई जिलों के दौरे पर निकलने से पहले फरवरी में राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक बयान में कहा, "अब समय आ गया है… अगर हम अपने देश को बचाना चाहते हैं और राष्ट्रीय एकता बनाए रखना चाहते हैं, तो मैं सभी देशवासियों से नेपाल की समृद्धि और प्रगति के लिए हमारा समर्थन करने का आह्वान करता हूं."
हरि शर्मा ने कहा, "रॉयलिस्टों को अपनी मांगों और निराशाओं को व्यक्त करने का मौका मिल गया है, खासकर ऐसे वैश्विक माहौल में जहां दक्षिणपंथी रूढ़िवादी विचार जोर पकड़ रहे हैं."
(इनपुट- एएफपी)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं