इस्लामाबाद:
कभी सैन्य तख्तापलट में सत्ता से बेदखल किए गए नवाज शरीफ एक बार फिर से पाकिस्तान के लोकतांत्रिक सिंहासन पर आसीन हो गए। ‘पंजाब का शेर’ कहे जाने वाले शरीफ ने भारत के साथ शांति प्रक्रिया बहाल करने का वादा किया है।
उन्होंने कहा कि बदलाव के लिए मुझे सबका साथ चाहिए। पाकिस्तान हम सबका है और मिलकर काम करना है। गंभीर मुद्दों पर सबको साथ आना होगा। हम मिल जाएं तो सारे मसले हल हो जाएंगे।
दहशतगर्दी की मार झेल रहे और दहशतगर्दों की पनाहगाह बन चुके पाकिस्तान में बहुत सारे लोग शरीफ से बड़ी उम्मीद लगाए हुए हैं। उन्हें लगता है कि पहले भी दो बार देश की बागडोर संभाल चुके शरीफ इस बार देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम करेंगे। यह बात दीगर है कि शरीफ को तालिबान के प्रति नरम माना जाता है।
इस्पात के बड़े कारोबारी से सियासतदां बने 63 साल के शरीफ को 1999 में परवेज मुशर्रफ ने सैन्य तख्तापलट कर सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद उन्हें जेल जाना और अपने मुल्क को भी छोड़ना पड़ा। सात साल अपनी सरजमीं से दूर रहने के बाद पाकिस्तान लौटे शरीफ ने जोरदार वापसी की और अवाम की हिमायत से फिर से सत्ता में लौटै।
11 मई के ऐतिहासिक आम चुनाव में शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। अलबत्ता, वह बहुमत के आंकड़े से कुछ दूर रह गई। सियासत के माहिर खिलाड़ी शरीफ ने निर्दलीय सांसदों की मदद से कुछ दिनों के भीतर बहुमत अपने पक्ष में कर लिया।
पाकिस्तान में क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का बोलबाला माना जा रहा था। अनेक जानकार इमरान के पाकिस्तान की सत्ता में दस्तक देने की भविष्यवाणी भी करने लगे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शरीफ ने इमरान की कथित ‘सुनामी’ को न सिर्फ रोका, बल्कि उसे पूरी तरह से विफल कर दिया। इमरान की पार्टी तीसरे स्थान पर रही।
शरीफ ने वादा किया है कि वह देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएंगे और सरकारी उपक्रमों में भ्रष्टाचार को दूर करेंगे। उन्होंने लाहौर और कराची के बीच बुलेट ट्रेन भी चलाने का वादा किया है।
वक्त ने करवट ली तो शरीफ सत्ता में हैं और मुशर्रफ अपने ही फार्महाउस में ‘कैदी’ बने हुए हैं। आत्मनिर्वासन से लौटे मुशर्रफ को अपातकाल लगाने सहित कई आरोप हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान शरीफ ने भारत के साथ शांति प्रक्रिया को पटरी पर लाने पर जोर दिया था।
शरीफ ने कहा था, हमें उस स्थान से शुरू करना होगा जहां हम 1999 में थे। वह एक तारीखी लम्हा था और मैं उसी रास्ते पर चलना पसंद करूंगा। हमें बैठकर शांतिपूर्ण ढंग से सभी मसलों को हल करना होगा। भारत ने उनके बयान का स्वागत किया है। बहरहाल, वह इंतजार करने और देखने का रुख अपनाए हुए है।
उधर, चुनाव के दौरान शरीफ का पूरा प्रचार अभियान अर्थव्यवस्था पर केंद्रित था। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक पर 146वें स्थान पर है।
शरीफ का जन्म 1949 में लाहौर के कारोबारी परिवार में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से शुरुआती तालीम हासिल की। पिता के इस्पात के कारोबार में लगने से पहले उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की।
सैन्य शासक जिया-उल हक की हुकूमत में वह वित्त मंत्री बने और उसके बाद पंजाब के मुख्यमंत्री बने। साल 1990 में वह पहली बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।
उन्होंने कहा कि बदलाव के लिए मुझे सबका साथ चाहिए। पाकिस्तान हम सबका है और मिलकर काम करना है। गंभीर मुद्दों पर सबको साथ आना होगा। हम मिल जाएं तो सारे मसले हल हो जाएंगे।
दहशतगर्दी की मार झेल रहे और दहशतगर्दों की पनाहगाह बन चुके पाकिस्तान में बहुत सारे लोग शरीफ से बड़ी उम्मीद लगाए हुए हैं। उन्हें लगता है कि पहले भी दो बार देश की बागडोर संभाल चुके शरीफ इस बार देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम करेंगे। यह बात दीगर है कि शरीफ को तालिबान के प्रति नरम माना जाता है।
इस्पात के बड़े कारोबारी से सियासतदां बने 63 साल के शरीफ को 1999 में परवेज मुशर्रफ ने सैन्य तख्तापलट कर सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद उन्हें जेल जाना और अपने मुल्क को भी छोड़ना पड़ा। सात साल अपनी सरजमीं से दूर रहने के बाद पाकिस्तान लौटे शरीफ ने जोरदार वापसी की और अवाम की हिमायत से फिर से सत्ता में लौटै।
11 मई के ऐतिहासिक आम चुनाव में शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। अलबत्ता, वह बहुमत के आंकड़े से कुछ दूर रह गई। सियासत के माहिर खिलाड़ी शरीफ ने निर्दलीय सांसदों की मदद से कुछ दिनों के भीतर बहुमत अपने पक्ष में कर लिया।
पाकिस्तान में क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का बोलबाला माना जा रहा था। अनेक जानकार इमरान के पाकिस्तान की सत्ता में दस्तक देने की भविष्यवाणी भी करने लगे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शरीफ ने इमरान की कथित ‘सुनामी’ को न सिर्फ रोका, बल्कि उसे पूरी तरह से विफल कर दिया। इमरान की पार्टी तीसरे स्थान पर रही।
शरीफ ने वादा किया है कि वह देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएंगे और सरकारी उपक्रमों में भ्रष्टाचार को दूर करेंगे। उन्होंने लाहौर और कराची के बीच बुलेट ट्रेन भी चलाने का वादा किया है।
वक्त ने करवट ली तो शरीफ सत्ता में हैं और मुशर्रफ अपने ही फार्महाउस में ‘कैदी’ बने हुए हैं। आत्मनिर्वासन से लौटे मुशर्रफ को अपातकाल लगाने सहित कई आरोप हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान शरीफ ने भारत के साथ शांति प्रक्रिया को पटरी पर लाने पर जोर दिया था।
शरीफ ने कहा था, हमें उस स्थान से शुरू करना होगा जहां हम 1999 में थे। वह एक तारीखी लम्हा था और मैं उसी रास्ते पर चलना पसंद करूंगा। हमें बैठकर शांतिपूर्ण ढंग से सभी मसलों को हल करना होगा। भारत ने उनके बयान का स्वागत किया है। बहरहाल, वह इंतजार करने और देखने का रुख अपनाए हुए है।
उधर, चुनाव के दौरान शरीफ का पूरा प्रचार अभियान अर्थव्यवस्था पर केंद्रित था। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक पर 146वें स्थान पर है।
शरीफ का जन्म 1949 में लाहौर के कारोबारी परिवार में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से शुरुआती तालीम हासिल की। पिता के इस्पात के कारोबार में लगने से पहले उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की।
सैन्य शासक जिया-उल हक की हुकूमत में वह वित्त मंत्री बने और उसके बाद पंजाब के मुख्यमंत्री बने। साल 1990 में वह पहली बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।
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