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पाकिस्तान बना रहा 'मुस्लिम NATO'? सऊदी से डील के बाद पाक रक्षा मंत्री आसिफ ने प्लान बता दिया

सऊदी अरब और परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान के बीच एक बड़ा रक्षा समझौता हुआ है. इसके तहत पाकिस्तान या सऊदी, दोनों में से किसी भी देश के खिलाफ किसी भी आक्रामकता को दोनों के खिलाफ आक्रामकता माना जाएगा.

पाकिस्तान बना रहा 'मुस्लिम NATO'? सऊदी से डील के बाद पाक रक्षा मंत्री आसिफ ने प्लान बता दिया
पाकिस्तान बना रहा 'मुस्लिम NATO'?
  • पाकिस्तान और सऊदी अरब ने रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें हमले को दोनों के विरुद्ध आक्रमण माना जाएगा
  • पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि अन्य अरब देश भी इस रक्षा समझौते में शामिल हो सकते हैं, दरवाजे बंद नहीं
  • NATO एक रक्षात्मक सैन्य गठबंधन है, जो मुख्यतः पश्चिमी देशों द्वारा सोवियत रूस के मुकाबले के लिए बनाया गया था
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क्या पाकिस्तान एक ‘मुस्लिम NATO' बनाने की फिराक में है? दरअसल पाकिस्तान और सऊदी अरब ने एक ‘रणनीतिक पारस्परिक रक्षा' समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके अनुसार उनमें से किसी भी देश पर किसी भी हमले को ‘दोनों के विरुद्ध आक्रमण' माना जायेगा. यह कुछ ऐसा ही समझौता है जो पश्चिमी देशों के संगठन NATO में देखा जाता है. अब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि इस रक्षा समझौते में अन्य अरब देशों के प्रवेश से इनकार नहीं किया जा सका. यानी खाड़ी के दूसरे मुस्लिम मुल्क भी इसमें शामिल हो सकते हैं. पाक रक्षा मंत्री ने साफ कहा है कि कि "दरवाजे बंद नहीं हैं".

तो सवाल वही की क्या पाकिस्तान मुस्लिम मुल्कों का अपना NATO बना रहा है? चलिए समझने की कोशिश करते है. सबसे पहले आपको बताते हैं कि NATO है क्या.

नाटो संगठन क्या है?

NATO यानी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organisation). असल में दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के तुरंत बाद 30-देशों ने रक्षात्मक सैन्य गठबंधन बनाया और उसे नाटो नाम दिया. पश्चिमी यूरोपीय देशों ने उस समय के सोवियत रूस का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और कनाडा से हाथ मिलाकर इस संगठन को बनाया. इसका मुख्यालय यानी हेडक्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है. लेकिन इसपर अमेरिका समेत परमाणु हथियार रखने वाले अन्य पश्चिमी देशों (फ्रांस, यूके) का प्रभुत्व है.

पाकिस्तान क्या हिंट दे रहा है?

पाकिस्तान के जियो न्यूज के एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से सऊदी के साथ हुई डील पर बात की गई. इसमें उनसे पूछा गया कि क्या और अधिक अरब देश ऐसे समझौतते का हिस्सा बन सकते हैं. इसपर आसिफ ने कहा: "मैं इसका समय से पहले जवाब नहीं दे सकता, लेकिन मैं निश्चित रूप से कहूंगा कि दरवाजे बंद नहीं हुए हैं."

पिछले 40-50 वर्षों के मिडिल ईस्ट के इतिहास की ओर इशारा करते हुए आसिफ ने कहा कि उन्होंने हमेशा नाटो जैसी समान व्यवस्था की मांग की थी क्योंकि पाकिस्तान इन सबके बीच अधिक असुरक्षित है.

डॉन की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि यह देशों और यहां के लोगों, विशेषकर मुस्लिम आबादी का मौलिक अधिकार है कि वे मिलकर अपने क्षेत्र, देशों और राष्ट्रों की रक्षा करें."

उन्होंने यह भी कहा कि समझौते में ऐसा नहीं लिखा कि कोई अन्य देश इस समझौते में शामिल नहीं हो सकता. साथ ही ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान किसी अन्य देश के साथ इसी तरह के समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता हो.

अमेरिका को डर?

दरअसल एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने द फाइनेंशियल टाइम्स से नाम न छापने की शर्त पर बात करते हुए सुझाव दिया कि पाकिस्तान की परमाणु हथियार वाली सुरक्षा इस समझौते का एक हिस्सा है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान में लंबे अनुभव वाले पूर्व अमेरिकी डिप्लोमेट जल्मय खलीलजाद ने इस समझौते पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह "खतरनाक समय" में आया है. खलीलजाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और डिलीवरी सिस्टम हैं जो इजरायल सहित पूरे मिडिल ईस्ट के किसी लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं. वह ऐसे सिस्टम भी विकसित कर रहा है जो अमेरिका में लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं."

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